नई दिल्ली: अदालत की छुट्टियों को ‘औपनिवेशिक विरासत’ बताते हुए एक संसदीय पैनल ने सिफारिश की है कि लंबित मामलों की बढ़ती संख्या से निपटने के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एक साथ न जाकर बारी-बारी से छुट्टियों पर जाएं. द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी 133वीं रिपोर्ट में कहा, ‘लंबित मामलों को कम करने के लिए एक बहु-आयामी रणनीति की आवश्यकता है. हालांकि, साथ ही यह एक निर्विवाद तथ्य है कि न्यायपालिका में छुट्टियां एक औपनिवेशिक विरासत हैं और पूरी अदालत के सामूहिक रूप से छुट्टियों पर जाने से वादकारियों को गहरी असुविधा होती है.’
भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी की अध्यक्षता वाले संसदीय पैनल ने अदालत की छुट्टियों पर भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा के एक सुझाव का भी समर्थन किया, जिसमें कहा गया था, ‘सभी न्यायाधीशों के एक ही समय में छुट्टी पर जाने के बजाय, अलग-अलग न्यायाधीशों को साल भर में अलग-अलग समय पर छुट्टी लेनी चाहिए. ताकि अदालतें लगातार खुली रहें और मामलों की सुनवाई के लिए हमेशा बेंच मौजूद रहें. न्यायपालिका द्वारा इस पर विचार किया जाना चाहिए.’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अदालतों में न्यायाधीशों के एक साथ छुट्टियों पर जाने की प्रथा को खत्म करने की मांग मुख्य रूप से दो कारकों के कारण उठती है, एक तो हमारी अदालतों में लंबित मामलों की भारी संख्या है, और दूसरा अदालतों की छुट्टियों के दौरान वादकारियों को होने वाली असुविधा है. आम आदमी की धारणा है कि इतनी बड़ी संख्या में मामले लंबित होने के बावजूद उनके न्यायाधीश लंबी छुट्टियों पर चले जाते हैं. इसके अलावा, छुट्टियों के दौरान, अवकाश अदालतों या बेंच की संख्या कम होने के बावजूद वादियों को बहुत परेशानी उठानी पड़ती है.’
इस रिपोर्ट में दर्ज है कि सरकार ने अदालत की छुट्टियों के कार्यक्रम में बदलाव की वकालत की है. कानून और न्याय विभाग ने कहा, ‘सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की छुट्टियों को अन्य देशों के उच्च न्यायालयों के साथ-साथ देश के अन्य संवैधानिक संस्थानों में वर्तमान अभ्यास के साथ-साथ मौजूदा विशाल लंबित मामलों के संदर्भ में समग्र रूप से फिर से देखने की आवश्यकता है. पेंडिंग मामलों के अलावा और नियमित आधार पर नए मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है.’ सरकार पहले भी कोर्ट की छुट्टियों का मुद्दा उठा चुकी है. तत्कालीन कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में 15 दिसंबर, 2022 को हर साल लंबित मामले रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ने का हवाला देते हुए लंबी छुट्टियां लेने के लिए न्यायपालिका की आलोचना की थी,
इसके एक दिन बाद, भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने घोषणा की कि सुप्रीम कोर्ट की शीतकालीन छुट्टियों के दौरान कोई भी अवकाश पीठ नहीं बैठेगी. यह पता चला है कि सरकार ने उच्च न्यायालयों से छुट्टियों की अवधि तय करने का अनुरोध किया था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अदालतें कम से कम 222 कार्य दिवसों तक काम करें. लेकिन पैनल ने पाया कि उच्च न्यायालयों ने औसतन 210 दिनों तक काम किया. भारत की अदालतें आमतौर पर 7 सप्ताह का ग्रीष्मकालीन अवकाश और दो सप्ताह का शीतकालीन अवकाश लेती हैं.
छुट्टियों के बावजूद, भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अन्य देशों की सर्वोच्च अदालतों की तुलना में अधिक कार्य दिवस होते हैं. उदाहरण के लिए, अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट 79 दिनों तक बैठता है और बीच में कुछ महीनों के लिए कोई मौखिक बहस निर्धारित नहीं होती है. विधि आयोग ने 2009 में, ‘न्यायपालिका में सुधार- कुछ सुझाव’ शीर्षक से अपनी 230वीं रिपोर्ट में कहा था कि लंबित मामलों से निपटने में मदद के लिए न्यायपालिका के सभी स्तरों पर अदालत की छुट्टियों में 10-15 दिनों की कटौती की जानी चाहिए.