भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राएं नये भारत-सशक्त भारत की इबारत लिखने के अमिट आलेख हैं। उनके नेतृत्व में उभरता नया भारत विकसित एवं विकासशील देशों के बीच सेतु बन रहा है। हाल ही में अमेरीका एवं मिस्र की ऐतिहासिक एवं सफल यात्राओं के बाद मोदी फ्रांस की दो दिवसीय यात्रा पर हैं। इस वर्ष भारत और फ्रांस के बीच राजनीतिक साझेदारी के 25 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं और मोदी का यह फ्रांस दौरा काफी अहम है। पिछले 25 वर्षों में दोनों देशों के बीच कई द्विपक्षीय समझौते हुए हैं लेकिन इस बार होने वाले समझौतों से दोस्ती का नया दौर शुरू होगा। भारत की विदेशों में बढ़ती साख को इस यात्रा से एक नई ऊंचाई मिलेगी। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भारतीय प्रधानमंत्री मोदी को फ्रांस के सर्वोच्च सम्मान ग्रैंड क्रॉस ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर से सम्मानित किया। मोदी बैस्टिल दिवस परेड में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए, जिसमें फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, फ्रांस की प्रथम महिला ब्रिजेट मैक्रों और अन्य अतिथिगण भी थे। इस परेड के लिए भारतीय नौसेना के जवान भी पहुंचे हैं। फ्रांस की इस यात्रा के दौरान होने वाले विभिन्न समझौते भारत की रक्षा, प्रौद्योगिकी, तकनीकी एवं सामरिक जरूरतों को पूरा करने में अहम कदम साबित होंगे। व्यापार व उद्योग के साथ-साथ प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में फ्रांस के साथ द्विपक्षीय सहयोग से नई उम्मीदें जागेंगी। इस यात्रा के दौरान किये गये प्रधानमंत्री के प्रयास मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भरता, नये भारत-सशक्त भारत एवं सतत विकास की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होंगे।
फ्रांस एक ऐसा देश है जो हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा है। भारतीय सेना को मजबूत करने की बात हो या फिर परमाणु परीक्षण का दौर, वह भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा दिखाई देता रहा है। वर्ष 1998 में जब भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण से पूरी दुनिया को चौंका दिया था और उस समय डरी एवं सहमी शक्तियों ने भारत पर प्रतिबंध लगा दिए थे तब फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति जैक शिराक ने भारत का साथ दिया और कहा था कि हमें एशिया की उभरती हुई महाशक्ति को नजरंदाज नहीं करना चाहिए। आज भी एक मित्र की भांति फ्रांस भारत के साथ खड़ा है। फ्रांस के द्वारा भारत को इतना सम्मान एवं महत्व देने के पीछे कई कारण हैं। इनमें भारत की बड़ी होती अर्थव्यवस्था और बड़ा बाजार प्रमुख है। भारत की शांति एवं सद्भाव की नीति है। दुनिया की महाशक्तियों से संतुलन बनाने में भारत उसका मुख्य आधार है। भले ही भारत फ्रांस से सैन्य सामग्री खरीदने वाला प्रमुख देश है। इन दिनों रूस और चीन काफी नजदीक आये हैं। रूस के नए विकल्प के तौर पर फ्रांस से बेहतर कोई और देश नहीं हो सकता है जो रक्षा सहयोग तो करता ही है साथ ही तकनीक में भी सहयोग कर रहा है। भारत के लिये रूस की जो जगह है, वह स्थान फ्रांस को देने के लिये भारत को सोचना चाहिए, भारत ऐसा ही सोचेगा यह फ्रांस को अहसास है। यह अहसास भी दोनों देशों की मित्रता को प्रगाढ़ करने का बड़ा आधार है। यही कारण है कि फ्रांस और भारत के संबंधों को कई पहलुओं और कई नजरियों से आंका जा रहा है, उसका विश्लेषण किया जा रहा है। इतिहास में देखें तो दोनों देशों का आपस में जो तालमेल है, वो दो सभ्यताओं का हो सकता है, दो विचारधाराओं एवं संस्कृतियों का हो सकता है।
भारत भी ऐसे देश से दोस्ती बढ़ाना चाहेगा, जो उसके विकास एवं मजबूती का आधार हो। फ्रांस भारत की शांति का पक्षधर रहा है, इसलिये विश्वस्तर पर भारत में पड़ोसी देश द्वारा पल्लवित आतंकवादी घटनाओं का विरोध करता रहा है। अब तो यह भी लगने लगा है कि फ्रांस ने पश्चिमी दुनिया में भारत के विश्वस्त दोस्त और सहयोगी साझेदार के रूप में रूस की जगह ले ली है। भारत ने फ्रांस का तब से विशेष सम्मान करना शुरू कर दिया है, जब फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र में चीन द्वारा कश्मीर पर बुलाई गई बैठक में भारत के रुख का समर्थन किया था। फ्रांसीसियों ने पहले भी वैश्विक आतंकवादी मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का समर्थन किया था। पुलवामा हमले के बाद भारत ने कूटनीति के मोर्चे पर पाकिस्तान एवं चीन को पूरी तरह से अलग-थलग कर दिया था। इसी के कारण पुलवामा हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने प्रस्ताव पेश किया था।
फ्रांस न केवल भारत में आतंकवाद को समाप्त करने में सहयोगी बन रहा है, बल्कि भारत को एक शक्तिसम्पन्न देश बनाने में भी हरसंभव सहयोग कर रहा है। फ्रांस से हमारी सैन्य शक्ति मजबूत हुई है, वहां से हमें लड़ाकू विमान से लेकर पनडुब्बी तक मिल रही है। मोदी की इस यात्रा के दौरान दोनों देश महत्वपूर्ण रक्षा और व्यापारिक समझौते पर मुहर लगायेंगे। भारतीय नौसेना के लिए फ्रांस के साथ 26 राफेल एम मरीन लड़ाकू विमानों का सौदा होने की उम्मीद है। दुनिया की एक बड़ी ताकत बनते भारत को फ्रांस की मित्रता से अनेक लाभ हैं। भले ही रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में पिछले कुछ सालों में भारत ने दूरगामी प्रभाव वाले कदम उठाए हैं, जिसकी बदौलत हमारे रक्षा आयात में कुछ कमी जरूर आई है। इसके बावजूद भी ये सच्चाई है कि रक्षा जरूरतों को पूरा करने में बाहरी मुल्कों और विशेषतः फ्रांस पर निर्भरता को पूरी तरह से खत्म करने में भारत को अभी लंबा सफर तय करना पड़ेगा। यह बात फ्रांस भलीभांति जानता है। इसीलिये भारत के इस रक्षा बाजार पर अमेरिका के साथ ही फ्रांस की भी नजर है।
प्रधानमंत्री मोदी की यह फ्रांस यात्रा दुनिया की गैर-जिम्मेदार बड़ी शक्तियों की दादागिरी को समाप्त करने की दिशा में मिल का पत्थर साबित होगी। भारत दुनिया में ऐसे राष्ट्रों को संगठित करना चाहता है जो युद्ध विरोधी हों। इसी उद्देश्य से भारत, फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने 8 जून को ओमान की खाड़ी में अपना पहला त्रिपक्षीय समुद्री अभ्यास सफलतापूर्वक संपन्न किया। इसमें आईएनएस तरकश, फ्रांसीसी जहाज सुरकौफ, फ्रेंच राफेल विमान और यूएई नौसेना समुद्री गश्ती विमान की भागीदारी थी। इस अभ्यास में सतही युद्ध जैसे नौसेना संचालन का एक व्यापक स्पेक्ट्रम देखा गया था, जिसमें सतह के लक्ष्यों पर मिसाइल से सामरिक गोलीबारी और अभ्यास, हेलीकोप्टर क्रॉस डेक लैंडिंग संचालन, उन्नत वायु रक्षा अभ्यास और बोर्डिंग संचालन शामिल थे। युद्ध चाहने वाले देशों के लिये अपनी सोच बदलने को विवश करना ऐसे संगठनों एवं सांझें प्रयत्नों से ही संभव होगा। मोदी की यात्रा से ठीक पहले इस तरह के अभ्यास का उद्देश्य तीनों नौसेनाओं के बीच त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ाना और समुद्री वातावरण में पारंपरिक और गैर-पारंपरिक खतरों को दूर करने के उपायों को अपनाने का मार्ग प्रशस्त करना था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के फ्रांस दौरे पर दुनिया की नजरें लगी हुई हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि फ्रांस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रभावशाली सदस्य है और उसने अमेरिका की तरह भारत से कभी भी विशुद्ध सौदेबाजी नहीं की। चीन की बढ़ती आक्रामकता एवं विस्तारवादी सोच को रोकने के लिए अमेरीका एवं फ्रांस दोनों देश भारत के बहुत करीब आए है। दोनों देशों के भारत प्रशांत क्षेत्र में साझा हित और सौर ऊर्जा तकनीक के प्रसार की संभावनाएं हैं। युद्ध, हिंसा, साम्प्रदायिक उन्माद एवं आतंकवाद को पोषित करने वाले चीन एवं पाकिस्तान को सबक सिखाना दुनिया की सबसे बड़ी जरूरत हो गयी। ऐसा करना इसलिए आवश्यक हो गया है क्योंकि पाकिस्तान जहां आतंकवाद को सहयोग-समर्थन और संरक्षण देने से बाज नहीं आ रहा है, वहीं चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते एशिया ही नहीं, पूरे विश्व के लिए खतरा बन गया है। मानकर चलिए कि मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों के बीच होने वाली वार्ताओं से व्यापार और अर्थशास्त्र से लेकर ऊर्जा सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी, रक्षा और सुरक्षा सहयोग और भारत-प्रशांत में सहयोग जैसे मुद्दों पर ऐसा सकारात्मक वातावरण बनेगा, जिससे समूची दुनिया शांति, सहयोग, सह-जीवन एवं आतंकवाद मुक्ति का अहसास कर सकेगी। विशेषतः आतंकवाद मुक्त विश्व की संरचना दोनों देशों की प्राथमिकता है।
-ललित गर्ग
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)