वसुंधरा और पायलट के बिना राजस्थान की चुनावी गणित अधूरी, अपनी-अपनी पार्टी के लिए बने जरूरी

वसुंधरा और पायलट के बिना राजस्थान की चुनावी गणित अधूरी, अपनी-अपनी पार्टी के लिए बने जरूरी

देश में सियासी उठापटक का दौर लगातार जारी है। 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं। लेकिन उससे पहले इस साल के आखिर में देश के तीन महत्वपूर्ण राज्य छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा के चुनाव होंगे। इन तीनों ही राज्यों के चुनाव को भाजपा और कांग्रेस के हिसाब से सेमीफाइनल माना जा रहा है। इन तीनों ही राज्यों में भाजपा और कांग्रेस अपनी चुनावी तैयारियों में जुटी हुई है। राजस्थान को लेकर भी चर्चा जबरदस्त तरीके से जारी है। एक ओर जहां राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच अंतर्कलह जारी है। तो वहीं भाजपा भी कई खेमों में बंटी हुई है। राजस्थान में इन्हीं दोनों दलों के बीच मुकाबला रहता है। हर चुनाव में यहां सत्ता परिवर्तन होता रहा है। पिछले ढाई दशकों को देखें तो राजस्थान की कमान या तो भाजपा की ओर से वसुंधरा राजे ने संभाला है या फिर कांग्रेस की ओर से अशोक गहलोत रहे हैं।

चढ़ रहा है राजस्थान का सियासी पारा

राजस्थान में जबरदस्त तरीके से सियासी शोर बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों की ओर से राजस्थान को लेकर बैठक चल रही हैं। दोनों के नेता जमीन पर संघर्ष करते हुए दिखाई दे रहे हैं। एक ओर जहां राज्य के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत अपनी सरकार की उपलब्धियां गिना रहे हैं। तो वहीं भाजपा उनकी सरकार की नाकामयाबियों को लोगों के समक्ष बताने में जुटी हुई है। दोनों ओर से शब्द वाण भी चल रहे हैं। हालांकि, दोनों दलों की स्थिति फिलहाल एक समान है, जहां गुटबाजी जबरदस्त तरीके से हावी है। 


अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट

राजस्थान में फिलहाल अशोक गहलोत मुख्यमंत्री हैं। वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता है। लेकिन 2018 के चुनाव के बाद से लगातार अशोक गहलोत और युवा नेता सचिन पायलट के बीच अदावत देखी गई। दोनों ही नेताओं की ओर से एक दूसरे पर जबरदस्त तरीके से बयानबाजी हुई जिसमें सारी हदें भी पार हो गई। एक वक्त तो ऐसा लग रहा था कि सचिन पायलट पार्टी से बगावत कर सकते हैं। हाल फिलहाल में भी सचिन पायलट लगातार राज्य की अपनी ही गहलोत सरकार को चुनौती देते नजर आ रहे थे। हालांकि, चुनावी नुकसान को भांफते हुए कांग्रेस आलाकमान सक्रिय हुई। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच समझौते की कोशिश हुई। पर्दे के पीछे कितनी बात बन पाई है, इसको बता पाना मुश्किल है, लेकिन पर्दे के सामने से जो बात निकल कर आई है, उसमें कांग्रेस की ओर से साफ तौर पर कहा जा रहा है कि हम एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगे। सचिन पायलट की लोकप्रियता और उनकी नाराजगी को देखते हुए कांग्रेस की ओर से दावा किया जा रहा है कि हम सामूहिक चुनाव लड़ेंगे। कोई भी मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं होगा। ऐसे में कहीं ना कहीं इसे सचिन पायलट की जीत मानी जा रही है। कांग्रेस को पता है कि पार्टी में स्थिरता बनाए रखने के लिए सचिन पायलट जरूरी है। इतना ही नहीं, अशोक गहलोत अपने राजनीति के आखिरी पड़ाव पर हैं। वहीं सचिन पायलट युवा है, वह पार्टी के भविष्य हैं और राजस्थान में उनकी जमीनी पकड़ मजबूत है। 2018 में प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए सचिन पायलट ने जबरदस्त मेहनत की थी जिसका नतीजा कांग्रेस को चुनावी जीत मिली थी। 

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