पहले सजा-ए-मौत, फिर बरी और अब 27 साल बाद मिला न्याय

पहले सजा-ए-मौत, फिर बरी और अब 27 साल बाद मिला न्याय

सुप्रीम कोर्ट ने 1996 के लाजपत नगर बम विस्फोट मामले के चार दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। 13 लोगों की जान लेने वाले मामले की गंभीरता का हवाला देते हुए, अदालत ने आरोपियों को मामले की माफी के बिना शेष जीवन के लिए जेल की सजा सुनाई। जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई, विक्रम नाथ और संजय करोल की तीन जजों की बेंच ने बुधवार को फैसला सुनाया। यह फैसला मोहम्मद नौशाद और जावेद अहमद खान की दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ की गई अपीलों के आधार पर आया। पिछले 27 सालों में इस केस ने कई उतार-चढ़ाव देखे। कभी निचली अदालत की तरफ से दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई। लेकिन फिर हाई कोर्ट की तरफ से बरी कर दिया गया। अब हाई कोर्ट के फैसले के 11 साल  बाद सुप्रीम कोर्ट ने दोनों को उम्र कैद की सजा सुनाई है। जिसके बाद कल तक दिल्ली को दहलाकर मुस्कुराने वाले आतंकी मोहम्मद अली भट्ट और मिर्जा निसार हुसैना बाकी की जिंदगी जेल में गुजारेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनाई उम्रकैद की सजा 

अदालत ने राज्य की विशेष अनुमति याचिकाओं पर भी विचार किया, जिसमें नौशाद की मौत की सजा को कम करने और मौत की सजा पाए दो दोषियों मिर्जा निसार हुसैन और मोहम्मद अली भट्ट को बरी करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी। आतंकी हमले के 27 साल बाद आए आदेश में कहा गया कि भले ही यह दुर्लभतम मामला है, फिर भी कई कारकों पर विचार करते हुए, हम प्राकृतिक जीवन तक बिना छूट के कारावास की सजा देते हैं। आरोपी मिर्जा निसार हुसैन और मोहम्मद अली भट्ट को आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया है।


जिस शाम दहल उठा दिल्ली का लाजपत नगर

21 मई 1996, की वो तारीख घड़ी में शाम के करीब 6 बजकर 45 मिनट हो रहे थे। भीड़-भाड़ वाले लाजपत नगर के  सेंट्रल मार्केट में लोग खरीदारी में व्यस्त थे। चारों तरफ रौनक ही रौनक थी। तभी एक जबर्दस्त बम धमाका हुआ। पल भर में वहां मातम छा गया। इस हादसे में 13 लोगों की जान गई और 38 लोग घायल हुए। पुलिस के मुताबिक, धमाके के पीछे जम्मू-कश्मीर इस्लामिक फ्रंट की साजिश थी। 


1996 लाजपत नगर बम विस्फोट मामले का घटनाक्रम


21 मई, 1996 - लाजपत नगर के सेंट्रल मार्केट में बम विस्फोट में 13 लोगों की मौत।


26 अगस्त, 1996 - पुलिस ने एक महिला समेत 10 आरोपियों के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया। पुलिस ने 201 गवाहों की सूची भी पेश की।


20 नवंबर, 2000 - अदालत ने हत्या, हत्या के प्रयास, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों और विस्फोटक अधिनियम के तहत आरोप तय किए। आरोपी निर्दोष होने का दावा किया।


1 सितंबर, 2009 - जिला न्यायाधीश ने मामले को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एस.पी. गर्ग की अदालत में स्थानांतरित कर दिया।


7 सितंबर 2009 - गर्ग की अदालत में सुनवाई शुरू हुई।


30 मार्च, 2010 - अदालत ने फैसला टाल दिया।


8 अप्रैल, 2010 - अदालत ने छह आरोपियों को दोषी ठहराया और चार को बरी कर दिया।


13 अप्रैल, 2010 - अदालत ने सज़ा की मात्रा पर दलीलें सुनीं।


22 अप्रैल, 2010 - अदालत ने तीन दोषियों को मौत की सज़ा सुनाई, एक को उम्रकैद की सज़ा सुनाई। एक दोषी को सात साल की सज़ा मिली। दोषी अकेली महिला को चार साल और दो महीने की जेल की सजा मिलती है। 


2012 में दिल्ली हाई कोर्ट ने भट्ट और हुसैन को बरी कर दिया। संयोग से 7 साल बाद जुलाई 2019 में दोनों समलेटी बस ब्लास्ट मामले में भी बरी हो गए। 

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