एक बार फिर महिला चिकित्सालय में आने वाली गर्भवतियों को बहलाकर निजी चिकित्सालय ले जाने वाली कुछ महिलाओं ने हंगामा किया। इन महिलाओं को सुरक्षा कर्मियों ने बाहर निकालने का प्रयास किया तो महिलाओं ने उनसे अभद्रता की, जिसका किसी ने वीडियो बना लिया और इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित कर दिया।
रात में बाहरी महिलाएं गर्भवतियों को चिकित्सक न होने और प्रसव सही से न कराने की बात कहती हैं। झांसे में आते ही निजी चिकित्सालय की एंबुलेंस को बुलाकर भर्ती करा देती हैं। इसके लिए निजी चिकित्सालय अच्छा कमीशन देते हैं। आम शोहरत है कि इस काम के लिए एक पूरा सिंडिकेट काम करता है ।शनिवार रात गर्भवती अपने परिवार के साथ आई। साथ आशा कार्यकर्ता भी थी। बाहरी महिलाएं गर्भवती और परिवार को समझाने लगीं, आशा कार्यकर्ता ने विरोध पहले किया तो विवाद होने लगा। विवाद बढ़ने पर हंगामा हो गया। मेडिकल कालेज के प्राचार्य डा. आर्य देश दीपक ने बताया कि जानकारी मिली है। चिकित्सालय में बाहरी महिलाओं को प्रवेश नहीं दिया जाएगा।
पूर्व में भी मेडिकल कॉलेज की तत्कालीन प्राचार्य वाणी गुप्ता ने इस सिंडिकेट को तोड़ने का भरकस प्रयास किया था और देर रात खुद आकर कई मामले खुद से पकड़े थे । आम चर्चा है कि अपने इसी सख्त रवैये के चलते वाणी गुप्ता सिंडिकेट के निशाने पर आ गईं और एक नाटकीय घटना क्रम में वाणी गुप्ता को केजीएमसी लखनऊ से सम्बद्ध कर देशदीपक तिवारी को हरदोई मेडिकल कॉलेज का प्रभार सौंप दिया गया । वाणी गुप्ता को जिन आरोपों के चलते हटाया गया वो भी काफी दिलचस्प थे , उन पर आरोप लगाया गया कि देर रात एक प्रसूता के परिजन की शिकायत पर उन्होंने स्वंय आकर प्रसूता का इलाज करवाया , चिकित्सक को बुलवाया जिसके चलते महिला अस्पताल की सीएमएस और अन्य स्टाफ का उनसे सामंजस्य नही बैठ पा रहा था सो उन्हें पद से हटाया जाता है । दिलचस्प ये भी था कि जिस जच्चा बच्चा की जान वाणी गुप्ता ने अपनी देखरेख में इलाज करवाकर बचाई थी उसके परिजन प्राचार्य वाणी गुप्ता पर हुई इस कार्रवाई के विरोध में कमिश्नर तक की चौखट पर जा पहुंचा । तत्कालीन प्राचार्य वाणी गुप्ता के पक्ष में कई जनप्रतिनिधियों और संगठन के पदाधिकारियों ने उच्च अधिकारियों को पत्र भी लिखे थे पर सूत्र बताते हैं कि सिंडिकेट का कॉकस इतना मजबूत है कि वाणी गुप्ता के खिलाफ बैठाई गयी जांच अभी तक ठंडे बस्ते में ही पड़ी हुई है ।
मेडिकल कॉलेज को सरकार ने करोड़ों खर्च कर संसाधन मुहैया करवाये हैं , ऐसे में अगर कोई प्रसूता रात के वक़्त महिला अस्पताल पहुंचे और वहां मौजूद स्टॉफ उसके परिजनों से कह दे कि यहां कोई संसाधन उपलब्ध नही हैं। परिजन परेशान तो होंगे ही और उनकी इसी परेशानी का फायदा उठाते हैं ये कमीशनखोर जो प्राइवेट अस्पतालों में सुविधाओं की बात बता अपने जाल में फंसा लेते हैं प्रसूता और उसके परिजनों को । कई बार मामले सामने आए जिसमे मानक विहीन अस्पतालों में मरीज ले जाए गए और वहां उनकी जान पर आफत बन आयी । ये सिंडिकेट कैसे खत्म होगा ये सवाल भविष्य की गर्त में ही है फिलहाल ।