राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने युवाओं से खुद को सशक्त बनाने और समाज में सकारात्मक प्रभाव लाने के लिए भगवान बुद्ध की शिक्षाओं से सीख लेने का आह्वान किया। बौद्धों के दूसरे सबसे पवित्र दिन ‘आषाढ़ पूर्णिमा’ के अवसर पर सोमवार को यहां राष्ट्रीय संग्रहालय में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान मुर्मू का एक रिकॉर्ड किया गया वीडियो संदेश प्रसारित किया गया। संस्कृति मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में राष्ट्रपति मुर्मू के हवाले से कहा गया है कि भगवान बुद्ध की तीन शिक्षाओं-शील, सदाचार और प्रज्ञा-का पालन करके युवा पीढ़ी खुद को सशक्त बना सकती है और समाज में सकारात्मक प्रभाव ला सकती है। उन्होंने कहा, ‘‘आषाढ़ पूर्णिमा पर हम भगवान बुद्ध के ‘धम्म’ से परिचित हुए, जो न केवल हमारी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, बल्कि यह हमारे दैनिक जीवन की एक अनिवार्य विशेषता भी है।’’
मुर्मू ने कहा कि बुद्ध के धम्म से वाकिफ होने के लिए ‘‘हमें शाक्यमुनि द्वारा सारनाथ की पवित्र भूमि पर दिए गए प्रथम उपदेश को जानना और समझना चाहिए।’’ कार्यक्रम का आयोजन संस्कृति मंत्रालय के तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) ने किया था। संस्कृति और विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने अपने संबोधन में एक सामान्य व्यक्ति की बोधिसत्व के स्तर को प्राप्त करने की यात्रा का वर्णन किया। उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी अपने मूल्यों से जुड़े हुए हैं, फिर भी हम अपने कार्यों के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं। सही कार्य हमारे भाग्य को बदल सकते हैं।’’ राष्ट्रपति ने सोमवार को कर्नाटक के राजभवन में आयोजित एक कार्यक्रम में कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के सदस्यों, विशेषकर महिलाओं को शिक्षा का महत्व भी समझाया।
इस दौरान, उन्होंने विशेष रूप से जेनु कुरुबा और कोरागा समुदायों के पीवीटीजी सदस्यों के साथ बातचीत की और उनसे विभिन्न सरकारी पहलों का लाभ उठाने के लिए भी कहा।राजभवन द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, ‘‘राष्ट्रपति ने पीवीटीजी समुदाय, विशेषकर महिलाओं के लिए शिक्षा के अत्यधिक महत्व पर जोर दिया। उन्होंने समुदाय एवं महिलाओं को आदिवासी महिला सशक्तिकरण योजना सहित विभिन्न पहल का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया।’’ मुर्मू ने कर्नाटक में इस समुदाय से डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने वाली पहली महिला से मिलकर खुशी भी व्यक्त की।