Varansi: कैंसर पीड़ित ने आखिरी ख्वाहिश में 3 घंटे ​​​​​​​बजाई वायलिन, बोली-40 कीमोथेरेपी के बाद अब म्यूजिकोथेरेपी जरूरी

Varansi: कैंसर पीड़ित ने आखिरी ख्वाहिश में 3 घंटे ​​​​​​​बजाई वायलिन, बोली-40 कीमोथेरेपी के बाद अब म्यूजिकोथेरेपी जरूरी

कहानी खत्म हुई और ऐसी खत्म हुई कि लोग रोने लगे, तालियां बजाते हुए। ये लाइन वाराणसी के अरविंद पांडेय पर फिट बैठती है। अरविंद कोलन कैंसर के लास्ट स्टेज पर हैं। अब दवाएं भी काम नहीं कर रही हैं। इनकी आखिरी ख्वाहिश थी कि वह मंच से वायलिन बजाएं और उन्हें पूरी दुनिया सुनें।

शुक्रवार को अरविंद की आखिरी ख्वाहिश पूरी हुई है। उन्होंने वाराणसी के टाटा कैंसर अस्पताल में 3 घंटे तक 4 शिष्यों के साथ वायलिन बजाई। एक प्यार का नगमा है.. गाने के म्यूजिक सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो गए। उन्हें सुनने के लिए कैंसर हॉस्पिटल के डॉक्टर, मरीज और शहर के वरिष्ठ करीब 150 लोग पहुंचे।

अरविंद पांडेय ने बताया, साल 2017 में कैंसर डिटेक्ट हुआ। मुंबई में जाकर इलाज कराया और ठीक हुआ। कोविड के दौरान कैंसर फिर से उभर गया। उस समय मेडिकल सुविधाएं ठप थीं। ऐसे में समय से इलाज नहीं मिला। कंडीशन खराब होती चली गई। अंत में डॉक्टरों ने भी हाथ खड़े कर लिए। 40 कीमोथेरेपी कराई। फायदा नहीं मिला। अब बस म्यूजिकोथेरेपी की जरूरत है।

संकट मोचन के अलावा कभी नहीं गया बड़े मंच पर

अरविंद पांडेय कहते हैं, उन्होंने बेहद साधारण जीवन जिया है। मैंने संकट मोचन संगीत समारोह के अलावा बड़े मंच पर प्रस्तुति नहीं दी है। मैंने 70 से ज्यादा वायलिन वादक तैयार किए हैं। मेरे छात्रों को इंडियन और वेस्टर्न सब कुछ आता है। मेरे छात्र अमेरिका और जापान समेत पूरी दुनिया में हैं।

इसमें से कई छात्र तो सॉफ्टवेयर इंजीनियर, एमडी डॉक्टर और प्रशासनिक सेवाओं में हैं। मेरी सबसे छोटी शिष्य 7 साल की तुषारिका सिंह राव्या हैं। आज की प्रस्तुति को सुनने के लिए मेरा एक शिष्य अमेरिका से आया है। बेंगलुरु और मुंबई से भी मेरे छात्र आए हैं।

आइए जानते हैं वायलिन वादक अरविंद पांडेय की कहानी...

राज कपूर से मिला म्यूजिक का मोटिवेशन

अरविंद ने कहा, म्यूजिक का मोटिवेशन राजकपूर और मुकेश पर फिल्माए गाना जाने कहां गए वो दिन से मिला और वायलिन वादक बनने की ठानी। साल 1992 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में B.MUS, M.MUS और डिप्लोमा कोर्स किया। यहां पर मेरी गुरु थीं, विश्व प्रसिद्ध प्रो. एन राजम। उनके साथ संकट मोचन संगीत समारोह में भी संगत किया। लेकिन, इस बीच शादी हो गई।

PhD करके संगीत में करियर बनाना चाहते थे। मगर परिवार चलाने के लिए नौकरी की जरूरत थी। प्रो. गोपाल दास मिश्रा के अंडर में रिसर्च जॉइन भी किया, लेकिन कंटीन्यू नहीं रख सका। वाराणसी के आर्यन इंटरनेशनल स्कूल में म्यूजिक टीचर बना। कई बार वायलिन के क्षेत्र में आगे बढ़ने की सोची, लेकिन प्राइवेट नौकरी के सीमित समय और पारिवारिक जिम्मेदारियों में यह पाॅसिबल न हो सका। यहीं पर बच्चों को वायलिन सिखाता रहा।

बेटी IIM से कर रही MBA

अरविंद ने कहा, मेरी बेटी अब IIM काशीपुर से MBA और बेटा BHU से ग्रेजुएशन कर रहा है। पत्नी हाउस वाइफ है। साल 2017 में कैंसर डिटेक्ट हुआ। पढ़ाई-लिखाई और घर चलाने की जिम्मेदारी ने म्यूजिक को करियर बनाने से रोका, साथ में कैंसर का इलाज तोड़ता चला गया।

मुंबई में जाकर कैंसर का इलाज कराया और ठीक हुआ। नौकरी छूट चुकी थी। लेकिन, कोविड के दौरान कैंसर फिर से उभर गया। अब दवाएं भी काम नहीं कर रही हैं। अब मैं खुद को अपने मन जिंदगी जीने को मोटिवेट करता हूं।

Leave a Reply

Required fields are marked *