इसे परंपरा कहिए या मजबूरी। राजस्थान में राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा ऐन मौके पर ही करती हैं, लेकिन इस बार कांग्रेस में नई पहल की चर्चा शुरू हुई है।
चर्चा ये है कि कांग्रेस इस बार चुनाव की घोषणा से पहले ही अपने उम्मीदवार फील्ड में उतार देगी। इस चर्चा को हवा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के उस बयान से मिली है जो उन्होंने हाल ही यूथ कांग्रेस के कार्यक्रम में दिया था।
पहले गहलोत के बयान को पढ़िए…..
दिल्ली में लंबी बैठकों का सिस्टम बंद होना चाहिए। दो महीने पहले टिकट फाइनल कर दें, जिसे टिकट मिलना है, उसे इशारा कर दें। वो लोग काम में लग जाएं। हमने प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा को भी कहा है, दो महीने पहले टिकट तय हो जाएं। जिन्हें टिकट मिलना है, वह दो महीने पहले ही तय हो जाएं।
आखिर गहलोत क्यों चाहते हैं कि चुनाव से दो माह पहले टिकट तय हो जाएं? क्या इतनी जल्दी टिकट घोषित होने से कांग्रेस ज्यादा सीटें जीत सकती है? क्या पहले उम्मीदवार घोषित करने से टिकट से वंचित दावेदारों से बगावत का खतरा नहीं रहेगा? इस रिपोर्ट में जानते हैं आखिर गहलोत ने दो माह पहले टिकट तय करने का फॉर्मूला पार्टी के सामने क्यों रखा है?
राजस्थान में पहली बार ऐसा प्रयोग क्यों?
कांग्रेस के जानकारों का मानना है कि CM गहलोत इस बार सरकार रिपीट के लिए हर वह फार्मूला आजमाने के लिए तैयार है, जो कांग्रेस को हर हाल में जीत दिला सके। वे लगातार सरकार रिपीट की बात कहकर खुद की पार्टी, आम जन और विरोधियों में यह नैरेटिव सेट करने की कोशिश कर रहे हैं कि इस बार कांग्रेस फिर से सत्ता में आ सकती है। कांग्रेस का मानना है कि CM के अलग-अलग जिलों में लगातार दौरे और राहत कैंपों में लगातार बढ़ रही लाभार्थियों की संख्या से यह नैरेटिव बनता भी जा रहा है।
ऐसे में गहलोत का मानना है कि अगर चुनाव से दो माह पहले टिकट घोषित कर दिए जाते हैं तो कांग्रेस उम्मीदवारों को फील्ड में प्रचार करने का पूरा मौका मिल जाएगा। साथ ही इस दौरान अगर टिकट घोषणा के बाद कहीं कोई बगावती तेवर उठते हैं तो समय रहते उनको भी साधा जा सकेगा। ऐसा अक्सर होता आया है कि चुनाव के ऐन वक्त टिकट घोषित होने से बगावत के हालात को रोकने में कांग्रेस कमजोर पड़ जाती है। पिछले चुनाव में भी कई सीटों पर ऐसा हो चुका है।
कर्नाटक में कामयाब रहा ये फॉर्मूला, अब राजस्थान में तैयारी
कांग्रेस ने हाल ही कर्नाटक में BJP को सत्ता से बाहर करके सरकार बनाई है। कर्नाटक में कांग्रेस ने चुनाव से करीब डेढ़ माह पहले अपने ज्यादातर उम्मीदवार घोषित कर दिए थे। उम्मीदवारों की पहली और दूसरी सूची तो कांग्रेस ने चुनाव घोषणा होने से पहले ही जारी कर दी थी। कर्नाटक में 10 मई को मतदान होना था, जबकि कांग्रेस ने अपनी पहली सूची 17 मार्च को दिल्ली में मंजूर कर दी थी
पहली सूची कांग्रेस ने 25 मार्च को घोषित करके अपने 124 उम्मीदवार करीब डेढ़ माह पहले मैदान में उतारकर BJP से रणनीतिक रूप से बढ़त हासिल कर ली थी। इसके बाद कांग्रेस ने 42 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट भी चुनाव घोषणा से पहले ही 6 अप्रैल को जारी कर दी।
गौरतलब है कि कर्नाटक में चुनाव आयोग की तरफ से 13 अप्रैल को चुनाव की अधिसूचना जारी की गई थी, जबकि कांग्रेस इससे पहले अपने 166 उम्मीदवार जनता के सामने पेश कर चुकी थी। बाकी उम्मीदवार भी चुनाव की घोषणा होने के दो-तीन दिन में कांग्रेस ने घोषित कर दिए थे। जबकि BJP टिकट घोषित करने में देरी करने के कारण नुकसान में रही।
BJP ने हालांकि चुनाव घोषणा के दो दिन पहले 11 अप्रैल को 189 उम्मीदवारों की घोषणा की, लेकिन तब तक कांग्रेस के उम्मीदवार फील्ड में पकड़ बनाकर BJP से आगे निकल चुके थे। कांग्रेस के उम्मीदवारों को फील्ड में काम करने का भरपूर समय मिला और पहले दिन से ही कांग्रेस चुनाव प्रचार में BJP से आगे निकल गई।
टिकट जल्दी घोषित करने का फायदा मिला
कर्नाटक के चुनावी नतीजों से यह साफ हो गया कि कांग्रेस को जल्दी टिकट घोषित करने का फायदा मिला। कांग्रेस ने चुनाव से करीब डेढ़ माह पहले जो 166 उम्मीदवारों की लिस्ट घोषित की थी, उनमें ज्यादातर उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई। यही कारण है कि 224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस 113 सीटों के बहुमत के आंकड़े काे आसानी से पार करते हुए 136 सीटें जीतने में सफल रही। कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि कर्नाटक में कांग्रेस की जीत में अन्य कारणों के साथ-साथ सबसे अहम कारण यह रहा कि उसने अपने टिकटों की घोषणा समय से पहले की।
राजस्थान का पिछला चुनाव बड़ा उदाहरण: नामांकन के अंतिम दिन तक जारी होते रहे टिकट
2018 के चुनाव में राजस्थान में 6 अक्टूबर को चुनाव की अधिसूचना जारी हुई। 7 दिसंबर को चुनाव होने थे। इसके लिए 12 नवंबर से नामांकन प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन कांग्रेस ने नामांकन प्रक्रिया शुरू होने तक एक भी प्रत्याशी की घोषणा नहीं की थी। कांग्रेस की 152 उम्मीदवारों की पहली सूची 15 नवंबर को रात साढ़े 12 बजे जारी हुई। इसके बाद दूसरी सूची 17 नवंबर को। फिर तीसरी सूची 18 नवंबर को जारी की गई।
19 नवंबर नामांकन का अंतिम दिन था। यानी नामांकन के अंतिम दिन से एक दिन पहले तक कांग्रेस की सूचियां जारी होती रहीं। बीकानेर पूर्व और पश्चिम सीट के लिए तो प्रत्याशियों की फाइनल घोषणा 18 नवंबर को ही की गई। उम्मीदवार घोषित करने में हुई देरी का कांग्रेस को नुकसान भी उठाना पड़ा। हालांकि, जोड़-तोड़ के जरिए कांग्रेस ने सत्ता हासिल कर ली, लेकिन वह बहुमत के आंकड़े को पार नहीं कर पाई। 100 सीटों पर कांग्रेस को हार झेलनी पड़ी।
लेट घोषणा का सबक पहली सूची में 152 उम्मीदवार थे, 70 हार गए
माना जाता है कि पिछले चुनाव में गहलोत-पायलट में टिकट बंटवारे में खींचतान के कारण उम्मीदवार घोषित करने में कांग्रेस ने देरी की। पहली सूची में 152 उम्मीदवार घोषित किए गए थे, लेकिन इनमें से 70 सीटों पर कांग्रेस हार गई। हार वाली सीटों में से कुछ सीटें ऐसी भी थीं जहां कांग्रेस के नेताओं ने ही बगावत करके कांग्रेस को हरा दिया। उदाहरण के लिए इनमें गंगानगर, शाहपुरा, बस्सी, मारवाड़ जंक्शन, सिरोही जैसी सीटें शामिल थीं।
दूसरी लिस्ट में 32 उम्मीदवारों में से 16 हारे, बागियों को नहीं रोक पाई कांग्रेस
नामांकन की आखिरी तारीख 19 नवंबर से दो दिन पहले 17 तारीख को दोपहर में जारी की गई कांग्रेस की दूसरी सूची में 32 उम्मीदवार मैदान में उतारे गए थे। इनमें से कांग्रेस के 16 उम्मीदवार हार गए थे। दूदू और गंगापुर सिटी जैसी सीटों पर कांग्रेस अपनों की बगावत के कारण चुनाव हार गई। असल में टिकट बंटवारे में देरी और गुटबाजी के कारण कांग्रेस समय रहते अपने उम्मीदवारों और बागियों के बीच तालमेल बैठाने में सफल नहीं हो पाई।
तीसरी सूची में दो टिकट बदले, कुछ जगह गठबंधन किया, लेकिन ज्यादातर सीटें हारी
नामांकन की अंतिम तारीख से एक दिन पहले कांग्रेस ने तीसरी सूची जारी की थी। 18 सीटों के लिए जारी सूची में बीकानेर ईस्ट, बीकानेर वेस्ट और केशोरायपाटन, इन तीन सीटों पर उम्मीदवार बदले गए। मुंडावर, भरतपुर, मालपुरा, बाली, कुशलगढ़ सीट पर अलग-अलग पार्टियों से गठबंधन किया गया। इन 18 सीटों में से कांग्रेस सिर्फ तीन सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी। इनमें नोहर और बीकानेर वेस्ट पर उसके खुद के उम्मीदवार जीते, जबकि जिन सीटों पर गठबंधन किया गया था उनमें से सिर्फ भरतपुर की सीट पर जीत मिल सकी। बाकी सीटें कांग्रेस ने गंवा दीं।
एक्सपर्ट बोले - पिछली बार कांग्रेस ने की थी बड़ी गलती, 15-20 दिन में पूरा क्षेत्र कवर करना मुश्किल
सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट अनिल शर्मा कहते हैं कि पिछली बार कांग्रेस ने चुनाव के ऐन वक्त उम्मीदवारों के नाम घोषित किए। नामांकन की अंतिम तारीखों के दौरान उम्मीदवार मैदान में उतारे गए। ये सबसे बड़ी गलती थी। चुनाव से 15-20 दिन पहले अगर नाम घोषित किए जाते हैं तो उम्मीदवार अपने चुनाव अभियान को अच्छी तरह से गति नहीं दे पाते।
अनिल शर्मा कहते हैं- मेरा मानना है कि दो माह पहले नाम डिक्लेयर नहीं कर सकते तो संबंधित उम्मीदवार को समय रहते इशारा कर दिया जाए कि आप इस सीट से चुनाव लड़ेंगे तो वे अपनी बेहतर तैयारी कर सकते हैं। क्योंकि चाहे महंगाई राहत शिविर हो, चाहे कोई अन्य गतिविधि, कांग्रेस की ग्राउंड फोर्सेज इतनी ज्यादा दिखाई नहीं दे रही है जितनी चुनावी साल में फील्ड में दिखाई देनी चाहिए।
अगर कैंडिडेट्स को चुनाव से पहले दो माह का टाइम मिलेगा तो वे पूरी तैयारी के साथ चुनाव लड़ पाएंगे। बूथ लेवल पर चुनावी मैनेजमेंट बेहतर कर सकेंगे। दो माह पहले चुनाव में प्रत्याशी तय करने से फायदा यह होगा कि वे अपने क्षेत्र के लोगों के बीच ज्यादा बार जा पाएंगे। BJP और कांग्रेस में सबसे बड़ा अंतर जो देखने में आता है वह है बूथ मैनेजमेंट। अगर चुनाव से पहले समय रहते कांग्रेस अपने उम्मीदवार तय करती है तो उसका फायदा कैंडिटेट्स और कांग्रेस दोनों को होगा।