किसी धर्म की पहचान आतंकवाद, लव जेहाद, गेमिंग जेहाद, धर्मांतरण, कथित तौर पर ‘काफिरों’ के खिलाफ जेहाद, अन्य धर्मों को अपने धर्म से नीचा और छोटा समझने जैसी साजिशों तक सीमित होकर रह जाए तो उस धर्म के अनयायियों, बुद्धिजीवियों और धर्मालंबियों की यह नैतिक ही नहीं बल्कि धार्मिक जिम्मेदारी भी बनती है कि वह अपनी कौम को ऐसी बुराइयों से दूर ले जाने के लिए अपने समाज में जनजागृति अभियान चलाएं। ऐसी कुरीतियों से निपटने की बजाए दूसरे धर्मों पर ‘कीचड़’ उछालना कभी भी, किसी भी तरह से तर्कसंगत नहीं हो सकता है। खासकर भारत जैसे धर्मनिरेपक्ष देश में तो ऐसी मानसिकता वाले लोग कतई स्वीकार नहीं किए जा सकते हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ कोर्ट और सरकार तो कार्रवाई करती ही है, लेकिन जब तक ऐसी मुहिम में आम जन का सहयोग नहीं मिलता है, तब तक सब अधूरा ही रहता है। ऐसे लोगों का समाज में अकाल पड़ता जा रहा है जो सच कहने या सुनने की हिम्मत रखते हों। इसीलिए उक्त तरह की समस्याएं और भी गहरी और गंभीर होती जा रही हैं, इसीलिए तो देश में लव जेहाद, धर्मांतरण जैसे नापाक कृत्यों में लगे लोगों के न केवल हौसले बुलंद हैं बल्कि अपने कृत्य के चलते यह लोग सभ्य समाज के माथे पर कलंक जैसे हो गए हैं। किसी धर्म के लोग देश की बहुसंख्यक आबादी का इस्लामीकरण करने का सपना पालते हुए 2047 तक हिन्दुस्तान का पूरी तरह से इस्लामीकरण करने का दावा करते हों तो और इसके बाद यह भी चाहते हों कि उनके खिलाफ दूसरे धर्म के लोग मुंह नहीं खोलें तो यह कैसे हो सकता है क्योंकि हर क्रिया की प्रतिक्रिया जरूर होती है। जैसा कि हाल में उतराखंड में देखने को मिला जहां, लव जेहाद की एक घटना की गूंज सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई।
गौरतलब है कि हाल ही में उत्तराखंड में कुछ हिन्दू संगठनों ने पुरोला में लव जेहाद के खिलाफ एक महापंचायत बुलाई थी, जिसको रोकने के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस रिट पर महापंचायत पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट या फिर संबंधित अधिकारियों से संपर्क करने की सलाह दी। उधर, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष महमूद असद मदनी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी को इस मामले में चिट्ठी लिखी। मदनी ने उत्तरकाशी की घटना पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने अपनी चिट्ठी में महापंचायत को रोकने के अनुरोध किया। मदनी ने कहा कि ऐसा नहीं होने पर उत्तराखंड में कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है। सवाल यही उठता है कि जमीयत ने सुप्रीम कोर्ट जाने का ही रास्ता क्यों चुना। वह इस घटना की निंदा करने से क्यों बच रहा है? किसी लड़की को अपना धर्म और नाम बदल कर बरगलाना, यहां तक कि उसे भगा तक ले जाना, इस्लाम और कुरान की रोशनी में कैसे जायज हो सकता है? ऐसी हजारों घटनाएं हो रही हैं, लेकिन मुस्लिम मौलाना और बुद्धिजीवी ऐसी घटनाओं की निंदा करने का कभी साहस नहीं करते हैं। उत्तराखण्ड की पुष्कर सिंह धामी सरकार धर्मांतरण विरोधी कानून का सख्ती से पालन भी करती है लेकिन उत्तराखंड सरकार योगी सरकार जैसी तेजी नहीं दिखा पा रही है।
बात उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की कि जाए तो उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा मतांतरण विरोधी कानून लागू करने के बाद प्रदेश में मतांतरण व लव जिहाद पर अंकुश लगा है। अभी तक 427 मामले दर्ज कर 833 लोगों को किया गिरफ्तार किया जा चुका है। योगी सरकार ने 27 नवंबर 2020 को मतांतरण विरोधी कानून लागू किया था। उससे पहले प्रदेश में मतांतरण व लव जिहाद के सैंकड़ों मामलों की शिकायतें आ रही थीं। कानून लागू होने के बाद सबसे ज्यादा विरोध भी कांग्रेस ने ही किया था। योगी सरकार ने इस मामले में अपना रवैया सख्त ही रखा, जिसके चलते आज प्रदेश में मतांतरण के मामलों की संख्या में काफी ज्यादा गिरावट आ गई है। 30 अप्रैल 2023 तक मतांतरण के 427 मामले दर्ज किए गए। वहीं 833 लोगों की गिरफ्तारी की जा चुकी है। 185 मामलों में पीड़ितों ने कोर्ट के सामने जबरन मतांतरण की बात कबूली है। वहीं नाबालिगों का मतांतरण करवाने को लेकर 65 मामले दर्ज किए जा चुके हैं। बरेली में मतांतरण के सबसे ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। मतांतरण के अभियान में जुटे लोगों ने दिव्यांगों को भी नहीं बख्शा था।a
यूपी में दिव्यागों का मतांतरण करवाने वाले रैकेट का भंडाफोड़ पुलिस ने किया था। इस कानून के तहत लव जिहाद को रोकने के लिए अंतर-धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों को शादी करने से दो महीने पहले जिला मजिस्ट्रेट को सूचित करने का प्रावधान किया गया है। कानून लागू होने के बाद योगी ने स्पष्ट किया था कि बेटियों की सुरक्षा और सम्मान के लिए उनकी सरकार प्रतिबद्ध है। ज्ञातव्य हो कि मतांतरण विरोधी कानून तब लागू होता है जब कभी धोखे में रख कर, लालच देकर, जबरन अथवा किसी अन्य प्रकार से दबाव देकर, विवाह कर मतांतरण करवाया जाता है। यदि नाबालिग, अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति की महिला का मतांतरण या सामूहिक मतांतरण करवाया जाता है, या फिर मात्र विवाह के लिए मतांतरण किया जा रहा है तो वह विवाह अमान्य होगा।
मतांतरण विरोधी कानून में दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को अपराध की गंभीरता के आधार पर 10 साल तक की जेल, जुर्माने की राशि 15 हजार से 50 हजार तक का प्रावधान है। जबरन मतांतरण कराने पर न्यूनतम 15 हजार रुपये के जुर्माने के साथ एक से पांच साल की कैद का प्रावधान तो एससी व एसटी समुदाय के नाबालिगों और महिलाओं के मतांतरण पर तीन से 10 साल की सजा का प्रावधान है। जबरन सामूहिक मतांतरण के लिए तीन से 10 साल जेल और 50 हजार जुर्माना लगाया जाता है।
अफसोस की बात यह है कि अक्सर यह देखने को मिलता है कि मुसलमानों का बड़ा तबका इस्लाम पर थोपी गई कुरीतियों का विरोध करने की बजाए उसके साथ खड़ा रहता है। राजीव गांधी की सरकार के समय सुप्रीम कोर्ट ने एक बुजुर्ग मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया तो इन लोगों ने इतना बवाल काटा कि वोट बैंक को खुश करने के चक्कर में राजीव गांधी सरकार को कानून बनाकर इस फैसले पर रोक लगानी पड़ गई। इसी प्रकार तीन तलाक, हलाला, बहुविवाह प्रथा, लव जेहाद जैसे घटनाओं के समय पर भी यही रवैया देखा जाता है।