कश्मीर में महिलाएं आत्मनिर्भरता की राह पर तेजी से आगे बढ़ रही हैं। इसके लिए परिवार का पूरा सहयोग और समर्थन मिलने के साथ ही उन्हें अपना कारोबार शुरू करने के लिए आर्थिक मदद से लेकर अपने उत्पादों की मार्केटिंग तक के काम में शासन-प्रशासन का सहयोग भी मिल रहा है। देखा जाये तो कश्मीर में आज सफल महिला उद्यमियों की अनेकों कहानियां आपको देखने-सुनने को मिल जायेंगी जो समाज के लिए प्रेरणा के तौर पर भी उभरी हैं। आज की रिपोर्ट में हम दो कश्मीरी महिलाओं की बात करेंगे और बताएंगे कि कैसे कश्मीरी कला और संस्कृति को आगे बढ़ाते हुए वह कारोबारी के तौर पर सफल हो रही हैं।
सना आफताब की कहानी
सबसे पहले बात करते हैं सना आफताब की। श्रीनगर जिले की रहने वालीं सना कश्मीरी जड़ी-बूटियों और केसर से युक्त साबुन बना रही हैं जोकि काफी हिट हो रहे हैं। सना ने माउंटेन सोप कंपनी नाम से एक कंपनी शुरू की है और इसे बहुत सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। सना आफताब ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान उन्होंने यूट्यूब पर साबुन बनाने की प्रक्रिया देखी जोकि उन्हें अच्छा लगी। इसके बाद उन्होंने शौक के तौर पर साबुन बनाना शुरू किया और अब यह शौक सफल कारोबार का रूप ले चुका है। उन्होंने कहा कि आम तौर पर साधारण साबुन के इस्तेमाल से हमारी त्वचा रूखी हो जाती है लेकिन ऑर्गेनिक साबुन त्वचा को मुलायम बनाए रखता है। मूल रूप से पहले मैंने अपने निजी इस्तेमाल के लिए साबुन बनाना शुरू किया और बाद में मैंने इसे अपने रिश्तेदारों और करीबी दोस्तों को बांटना शुरू किया और एक बार जब उन्होंने इसका इस्तेमाल किया तो उनकी डिमांड बढ़ गयी जिसके बाद मैंने इनका निर्माण व्यापक स्तर पर शुरू किया। सना ने कहा कि अपने दोस्तों की सलाह पर मैंने माउंटेन सोप कंपनी शुरू की और अब इस कंपनी के ग्राहकों की अच्छी खासी संख्या है जो हमारे साबुनों को मंगाने के लिए ऑनलाइन ऑर्डर करते हैं।
साइमा शफी की कहानी
वहीं, इंजीनियर से कुम्हार बनीं साइमा शफी की बात करें तो आपको बता दें कि वह कश्मीर में मिट्टी के बर्तनों को नया स्वरूप देने की कोशिश कर रही हैं। कश्मीर घाटी में युवा इंजीनियर साइमा पारंपरिक कुम्हारों के रुके हुए पहियों को फिर से चालू करने के लिए मिट्टी के बर्तनों को आधुनिक रूप देकर इस व्यवसाय को नया रूप देने की कोशिश कर रही हैं। हम आपको बता दें कि साइमा शफी दिन में सिविल इंजीनियर का काम करती हैं और शाम को कुम्हार का रूप ले लेती हैं। श्रीनगर में अपने छोटे-से स्टूडियो में उन्होंने कहा कि वह घाटी के पारंपरिक कुम्हारों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए मिट्टी से रसोई में उपयोग होने वाले बर्तनों को बना रही हैं और लोगों के बीच इनकी मांग भी बढ़ रही है।