फिल्में समाज का आईना होती हैं। भारत में फिल्मों का इतिहास काफी पुराना रहा है। धार्मिक हो या ऐतिहासिक मामले, भारत में हर मुद्दे को पर्दे पर लाने की कोशिश की जाती है। फिल्मों को जनता का प्यार मिलता है और नहीं भी मिलता है। हाल के दिनों में देखें तो ऐतिहासिक मुद्दे पर कई फिल्में आई हैं। तो वही पिछले हफ्ते रिलीज हुई आदि पुरुष भी महाकाव्य रामायण पर आधारित है। हालांकि, आदिपुरुष को लेकर विवादों का दौर लगातार जारी है। आदिपुरुष के निर्माताओं और लेखकों पर रामायण को तोड़ मरोड़ कर पेश करने के आरोप लगा रहे हैं। सोशल मीडिया पर इसको लेकर खूब बवाल हो रहा है। इतना ही नहीं, फिल्म को लेकर एक नाटक कहा जा रहा है इसमें राम जी, हनुमान जी जैसे देवाताओं की छवि खराब करने की कोशिश की गई है। इसके डायलक्स पर भी विवाद जारी है।
भाजपा की पिच पर बैटिंग
किसी फिल्म को लेकर इतना विवाद हो और उस पर राजनीति ना हो, यह इस देश में हो ही नहीं सकता। हालांकि, इस बार मामला थोड़ा उल्टा दिखाई पड़ता है। इस बार आदिपुरुष फिल्म को लेकर विपक्षी दल भाजपा पर हमलावर हैं। विपक्षी दलों को आदिपुरुष के बहाने भाजपा की पिच पर बैटिंग करने का बड़ा मौका मिल गया है। जो पार्टी राम मंदिर की जगह यूनिवर्सिटी बनाने की बात करती थी, वह भी इस मुद्दे को लेकर भाजपा पर सवाल खड़े कर रही है। कांग्रेस ने भी कई मौकों पर रामायण को लेकर सवाल खड़े किए हैं लेकिन आदिपुरुष के बहाने उसे भी भाजपा पर निशाना साधने का बड़ा मौका मिल गया है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर आदिपुरुष को लेकर भाजपा इतना नरम रुख क्यों रख रही है? अक्सर ऐतिहासिक फिल्मों पर छेड़छाड़ का आरोप लगाने वाले भाजपा समर्थित राष्ट्रवादी संगठन भी क्यों खामोश है?
भाजपा नेताओं ने अपनी चुप्पी पर सवाल
कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दल तो इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने की बात कर रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर विवाद शुरू होने से पहले भाजपा नेता इस फिल्म के समर्थन में खड़े थे। कई भाजपा नेताओं ने तो फिल्म की फर्स्ट स्क्रीनिंग भी देखी है। लेकिन जैसे ही फिल्म को लेकर विवाद शुरू हुआ, भाजपा नेताओं ने अपनी चुप्पी साध ली। फिल्म को लेकर विवाद जारी है। आप के संजय सिंह इसको लेकर केंद्र पर हमलावर है। उन्होंने कहा कि जब भगवान श्री राम का अपमान करने वाली फ़िल्म पास हो रही थी, तो क्या भाजपाईयों का सेंसर बोर्ड भांग खाकर सो रहा था? उन्होंने साफ तौर पर कहा कि भाजपा ने धर्म को ही धंधा बना लिया है।
कांग्रेस का वार
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि क्रोनोलॉजी समझिए, पहले मर्यादा पुरुषोत्तम राम को इन्होंने धीरे-धीरे युद्धक राम बना दिया। हनुमान जी ज्ञान, भक्ति और शक्ति के प्रतीक है उनको एंग्री बर्ड बना दिया, और तीसरा क्रोनोलॉजी यह है कि जो बजरंग दल के लोग बोलते हैं वो शब्द भगवान बजरंगबली से बुलवा रहे हैं, ये इनकी क्रोनोलॉजी है। नाना पटोले ने कहा कि कांग्रेस के समय में रामायण और महाभारत सीरियल को फिल्माया गया था। कांग्रेस ने उस समय में रामायण और महाभारत की वास्तविकता रखी थी। भाजपा खुद बोलती है कि वो हिंदु की सरकार है तो हनुमान जी को इस तरह से टपोरी जैसे वक्तव्य करवाने का पाप भाजपा ने किया है...ये भाजपा का दोष है, उन्हें माफी मांगनी चाहिए और इस फिल्म(आदिपुरुष) को बैन करना चाहिए।
विपक्ष की सक्रियता इसलिए भी तेज है जो कि वह भाजपा को anti-hindu दिखाने की होड़ में जुटी हुई हैं। अगर उन्हें इसमें थोड़ी भी कामयाबी मिलती है तो 2024 के लिहाज से यह बड़ी उपलब्धि होगी।
बैकफुट पर भाजपा
किसी भी फिल्म को लेकर अक्सर हमलावर रहने वाले वरिष्ठ भाजपा नेता और मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी इस मामले को लेकर चुप हैं। हालांकि, आज से कुछ महीने पहले जब फिल्म का टीजर जारी किया गया था तब नरोत्तम मिश्रा ने इस पर सवाल उठाए थे और साफ तौर पर कहा था कि हमेशा एक ही धर्म को निशाने पर क्यों लिया जाता है? आपको फिलहाल स्क्रीन पर एक तस्वीर दिखाते हैं। इस तस्वीर को देखने के बाद भाजपा नेताओं के चुप्पी का अंदाजा आपको लग सकता है। निर्माताओं की ओर से योगी आदित्यनाथ, शिवराज सिंह चौहान, एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फडणवीस, मनोहर लाल खट्टर, हिमंत बिस्वा सरमा, पुष्कर सिंह धामी और नरोत्तम मिश्रा का आभार जताया गया है। ये सभी भाजपा से संबंधित है। यही कारण है कि विपक्ष और हमलावर है तथा भाजपा की चुप्पी पर सवाल उठने लगे हैं।
विवाद बढ़ा और पत्रकारों ने जब तक केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर से ही सवाल पूछ लिया तो उन्होंने सधे हुए शब्दों में जवाब दिया। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि किसी की भावनाओं को आहत नहीं होने दिया जाएगा।
पर्दे के पीछे के राज क्या हैं, यह हम तो नहीं जानते। अगर जानते भी हैं तो कुछ चीजों को पर्दे के पीछे ही रहने देना चाहिए। हालांकि, यह सत्य है किस देश में धर्म के नाम पर राजनीति होती रही है। राजनीतिक दलों को भी ऐसा लगता है कि धर्म और जाति की राजनीति किए बिना उनका उभार नहीं हो पाएगा। हालांकि हम सभी को धर्म को धंधा बनाने वाले राजनेताओं को रोकने की आवश्यकता है और हमें इसकी ताकत मिली हुई है। यही तो प्रजातंत्र है।