UP: मायावती सोशल मीडिया और दलित प्रेरणा पार्क बन रहे रील्स डेस्टिनेशन

UP: मायावती सोशल मीडिया और दलित प्रेरणा पार्क बन रहे रील्स डेस्टिनेशन

‘बच्चों ने रील्स में देखा था कि नोएडा में कोई मायावती पार्क है, इसलिए उन्हें घुमाने ले आए. यहां तो सब आते ही रील्स बनाने हैं, किसी को मतलब नहीं है किसने बनवाया, क्यों बनवाया’. ये कहना है नोएडा के नजदीक बसे गाजीपुर के अनुज कुमार का. वो अपनी पत्नी और बच्चों को नोएडा फिल्म सिटी के पास स्थित सेक्टर 95 के प्रसिद्ध राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल और ग्रीन पार्क घुमाने आए थे. पति-पत्नी म्यूजियम की सीढ़ियों के बाहर बैठे आराम कर रहे थे और उनके बच्चे पार्क साइड रील्स बना रहे थे.

रविवार की दोपहर जब हम पार्क के गेट पहुंचे तो वहां काफी भीड़ थी. 15 रुपये का एक टिकट लेने के लिए काउंटर पर भीड़ थी. साथ ही चेतावनी का नोटिस भी लगा था जिसमें लिखा पार्क के अंदर आपत्तिजनक वीडियो न बनाएं, अन्यथा कार्रवाई की जाएगी. बहरहाल, जब गेट नंबर 5 से हमने पार्क में एंट्री ली तो ऐसा नजारा था मानो क्रिकेट स्टेडियम में सब लोग मोबाइल हाथ में लिए हों और टॉर्च जलाकर उसे लहरा रहे हों. दलित प्रेरणा स्थल पार्क में हर तरफ कोई शख्स हाथ में मोबाइल लिए कुछ रिकॉर्ड कर रहा था.

अक्टूबर 2011 में जब उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने इस दलित प्रेरणा स्थल का उद्घाटन किया ता, तो उन्होंने कहा था कि ये दलित स्मारक भव्यता का नमूना है जो दलित नेताओं व उनके इतिहास को समर्पित है.

मायावती ने जिस कालखंड में ये बात कही थी, तब भारत में सोशल मीडिया का प्रसार उतना नहीं था. युवा वर्ग साइबर कैफे में जाकर फेसबुक या ऑर्कुट पर आईडी बना रहे थे और एक नई दुनिया से जुड़ रहे थे. धीरे-धीरे वक्त बदलता गया और स्मार्टफोन की भरमार आ गई. इंटरनेट सस्ता हो गया. इंटरनेट यूजर्स की ट्विटर, इंस्टाग्राम पर सक्रियता बढ़ने लगी. दूसरी तरफ राजनीति भी जमीन से लेकर सोशल मीडिया तक लड़ी जाने लगी.

जब ट्विटर पर एक्टिव हुईं मायावती

अक्टूबर 2018 में खुद बसपा सुप्रीमो मायावती खुद ट्विटर पर आ गईं. हालांकि, बाकी राजनीतिक दलों की तुलना में उनका यहां आगमन काफी लेट था, लेकिन जब से मायावती ने ट्विटर पर कदम रखा है, उसके बाद से वो पहले की तरह प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए भी कम ही नजर आती हैं. अधिकतर ट्वीट के जरिए ही देश के तमाम मुद्दों पर उनकी प्रतिक्रिया आती है.

ये वो दौर है जब बहुजन समाज पार्टी राजनीतिक तौर पर हाशिये पर है. 2012 में मायावती से यूपी की सत्ता छिनी थी, उसके बाद से वो पूरे परिदृश्य से ही गायब होती चली गईं. 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा की सेहत और ज्यादा बिगड़ गई. 2007 में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आने मायावती की पार्टी 2022 आते-आते 403 सीटों वाली यूपी विधानसभा में महज 1 सीट ही जीत सकी. कहा जाता है कि ये सीट भी उम्मीदवार ने अपने व्यक्तिगत दम पर जीती. यानी राजनीतिक तौर पर मायावती पूरे सीन से गायब हैं, बावजूद इसके उनकी सक्रियता ट्विटर तक ही सिमटी हुई है और उनके बनाए गए प्रेरणा स्थल भी रील्स बनाने के काम ही आ रहे हैं.

ट्विटर पर एंट्री से ठीक सात साल पहले अक्टूबर 2011 में जब मायावती ने पार्क जनता को समर्पित किया था, तब उन्होंने इसकी भव्यता को खूब सराहा था. निश्चित ही इस स्मारक की भव्यता है. ओखला बर्ड सेंक्चुरी के किनारे ये करीब 80 एकड़ जमीन में फैला है. हाथी की मूर्तियां हैं. फव्वारे भी हाथी की मूर्तियों वाले हैं. बेहद आकर्षक पार्क है. इसकी जो मुख्य इमारत है उसमें म्यूजियम भी है जहां बाबा साहब अंबेडकर, बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक स्व. कांशीराम और मायावती की मूर्तियां लगी हैं. हालांकि, जब हम पहुंचे तो ये म्यूजियम बंद था. लेकिन इसके बाहर जो युवाओं की टोली रील्स बना रही थी उनको इस बात का इल्म तक नहीं था कि अंदर क्या है, कौन है, क्यों है.

बदलते वक्त के साथ दलित स्मारक की बदलती तस्वीर है. बाबा साहेब अंबेडकर या कांशीराम की जयंती जैसे अवसरों पर जरूर यहां दलित नेता या विचारकों की मौजूदगी रहती है लेकिन आमतौर पर यहां रील्स बनाने वाले युवाओं के ग्रुप्स ही दिखाई देते हैं.

दूर-दूर से रील्स बनाने आते हैं युवा

हम पार्क में घूम कर रील्स बनाने वालों को देख ही रहे थे कि अचानक बारिश आ गई. कुछ लोगों ने आपदा में अवसर भी तलाश लिया और बारिश में ही रील्स बनाने लगे जबकि बाकी भीड़ म्यूजियम के गेट के सामने जमा हो गई. यहां एक डांसर आकाश भी थे. वो अपने डांस मूव्स दिखा रहे थे. लोग उनके चारों तरफ जमा हो गए और परफॉर्मेंस पर बीच-बीच में तालियां भी बजाते रहे.

आकाश एक अच्छे डांसर की तरफ परफॉर्म कर रहे थे. आकाश ने बताया कि वो दिल्ली से आए हैं. आकाश ने बताया कि उन्हें इस पार्क के बारे में कोई जानकारी नहीं है, वो बस इतना जानते हैं कि ये रील्स के लिए काफी फेमस लोकेशन है और इसीलिए वो यहां आए हैं.

एटा के रहने वाले 18 वर्षीय विकास भी यहां रील्स बनाने ही पहुंचे थे. एक दलित परिवार से ताल्लुक रखने वाले विकास ने बताया कि उन्होंने सुना है कि ये पार्क मायावती ने बनवाया है. विकास से जब पूछा गया कि क्या वो कांशीराम को जानते हैं तो उनका जवाब ना में था.

इस पार्क में हमें सर्वसमाज के लोग नजर आए. टोपी-दाढ़ी वाले लोग भी यहां घूम रहे थे. बुर्के वाली महिलाएं भी अपने बच्चों के फोटो क्लिक कर रही थीं. कोई हाथी की मूर्ति की आधारशिला पर फोटो ले रहा था तो कोई पार्क में ‘पतली कमरिया तेरी हाय…हाय…’ सॉन्ग पर अपनी इंस्टा रील को कंप्लीट कर रहा था. युवाओं की एक टोली ऐसी भी थी जो राजपूत लिखा पोस्टर लेकर पहुंचे थे और बारी-बारी से फाउंटेन में लगे हाथियों के सामने हाथ में उस पोस्टर को लेकर फोटो खिंचवा रहे थे.

अपनी बूढ़ी मां के साथ बिहार से आए एक युवा ने तो इस पार्क के बारे में जो जवाब दिया वो सुनकर हम भी हैरत में पड़ गए. हमने जब उनसे पूछा कि ये किसका पार्क है, किसने बनवाया है, तो उन्होंने जवाब दिया कि ये पार्क गांधी ने बनवाया है. इतना कहकर इस युवा ने अपनी मां का हाथ पकड़ा और पार्क के गेट से एग्जिट ले लिया.

लेकिन अब तक हमें इंस्टाग्राम पर मायावती पार्क की जो रील्स नजर आ रही थीं, हमने उन्हें बनते हुए लाइव देखा. टीनेजर ग्रुप फुल जोश और स्वैग के साथ यहां रील्स बनाने पहुंचता है और दलित स्मारक निर्माण के उद्देश्य की चिंता से दूर वो अपनी रील लाइफ में मस्त नजर आता है.

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