भारत के विधि आयोग ने बुधवार को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर राय और टिप्पणियां मांगने के लिए एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया। यह 21वें विधि आयोग द्वारा अगस्त 2018 में इसी मुद्दे पर एक परामर्श पत्र जारी करने के बाद से पांच साल के अंतराल के बाद आया है। नई अधिसूचना में कहा गया है कि इस विषय की प्रासंगिकता और महत्व के साथ-साथ इससे संबंधित अदालती आदेशों को देखते हुए, भारत के 22वें विधि आयोग ने इस विषय पर फिर से विचार करना आवश्यक समझा। इसी से बडा सवाल उठने लगा है कि क्या केंद्र की ओर से समान नागरिक संहिता को लेकर अपनी सक्रियता बढ़ा दी गई है।
दोबारा मांगी गई राय
विधि आयोग ने बताया है उसने राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा ‘समान नागरिक संहिता’ (यूसीसी) पर लोगों तथा मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के सदस्यों सहित विभिन्न हितधारकों के विचार आमंत्रित कर नये सिरे से परामर्श की प्रक्रिया बुधवार को शुरू कर दी। इससे पहले, 21वें विधि आयोग ने मुद्दे की पड़ताल की थी और समान नागरिक संहिता पर दो मौकों पर सभी हितधारकों के विचार मांगे थे। उसका कार्यकाल अगस्त 2018 में समाप्त हो गया था। 22वें विधि आयोग को हाल में तीन साल का कार्य विस्तार दिया गया है। इसने कानून एवं न्याय मंत्रालय द्वारा एक पत्र भेजे जाने के बाद समान नागरिक संहिता से जुड़े विषयों की पड़ताल शुरू कर दी है। नोटिस में कहा गया है, ‘‘बाइसवें विधि आयोग ने एक बार फिर समान नागरिक संहिता पर व्यापक स्तर पर लोगों और मान्यताप्राप्त धार्मिक संगठनों के विचार मांगने का फैसला किया है।’’
क्या है UCC
इसमें रुचि रखने वाले इच्छुक लोग व संगठन नोटिस जारी होने की तारीख की 30 दिन की अवधि के अंदर विधि आयोग को अपने विचार दे सकते हैं। नोटिस में कहा गया है कि जरूरत पड़ने पर आयोग व्यक्तिगत सुनवाई या चर्चा के लिए किसी व्यक्ति या संगठन को बुला सकता है। समान नागरिक संहिता का मतलब देश के सभी नागरिकों के लिए एक साझा कानून से है, जो धर्म पर आधारित न हो। समान नागरिक संहिता लागू करना भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के चुनाव घोषणापत्रों में प्रमुखता से शामिल रहा है। उत्तराखंड जैसे राज्य अपनी समान नागरिक संहिता तैयार करने की प्रक्रिया में जुटे हुए हैं। वहीं, भाजपा ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा किया था।
भाजपा के लिए बड़ा मुद्दा
समान नागरिक संहिता चुनावों के लिए भाजपा के घोषणापत्र का हिस्सा रहा है। नवंबर 2019 में, नारायण लाल पंचारिया ने इसे पेश करने के लिए संसद में एक विधेयक पेश किया, लेकिन विपक्ष के विरोध के कारण इसे वापस ले लिया गया। किरोड़ी लाल मीणा मार्च 2020 में फिर बिल लेकर आए, लेकिन इसे संसद में पेश नहीं किया गया। गौर करने वाली बात यह भी है कि राम मंदिर और अनुच्छेद 370 की राह में कई कानूनी अड़चनें थीं। लेकिन समान नागरिक संहिता में ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के अलावा कई राज्यों की हाईकोर्ट ने भी इसकी जरूरत बताई है। उत्तराखंड में इस पर काम शुरू हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार के खिलाफ दायर याचिका को भी खारिज कर दिया था।