लखनऊ: 2017 के विधानसभा चुनाव की असफलता के बाद राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच रिश्ते ठंडे बस्ते में चले गए थे, लेकिन 2024 में मोदी सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए नीतीश विपक्षी एकता की मुहिम में जुटे हैं. नीतीश ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से अलग-अलग मुलाकात करके वक्त की नजाकत समझाते हुए दोनों दलों को यूपी में साथ आने को कहा.
इसके बाद दोनों दलों के आलाकमान में बात आगे बढ़ाने पर सहमति बनी और दोनों दलों के बीच बैक चैनल्स बातचीत शुरू हो गई है. इसके बाद 23 जून को विपक्षी दलों की बैठक में अखिलेश, खरगे, राहुल आमने-सामने होंगे. अखिलेश का पहले से ही आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी के साथ गठबंधन है.
हालांकि, अभी बातचीत की शुरुआत है. सीट बंटवारे से लेकर मुद्दे, उम्मीदवार जैसे तमाम मसलों पर अंतिम मुहर लगना आसान काम नहीं है, लेकिन अगर ये शुरुआत सफलता का रूप लेती है तो इस बार यूपी के तीन लड़के मिलकर मोदी-योगी से 2024 में टकराते दिखेंगे.
गठबंधन चाहते हैं तभी तो बैठक में आ रहे अखिलेश- प्रमोद तिवारी
इस मुद्दे पर कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने कहा कि जहां तक आरएलडी का सवाल है, वह अखिलेश को जानते हैं. काफी पढ़े-लिखे हैं. सबसे बड़े सूबे के 5 साल तक मुख्यमंत्री भी रहे हैं. वो सियासत को असलियत समझते हैं. अखिलेश यादव 23 जून को बैठक में पटना जा रहे हैं. वह गठबंधन चाहते हैं, तभी जा रहे हैं. वह पहले भी कह चुके हैं कि बीजेपी को हराना उनकी प्राथमिकता है.
साथ ही प्रमोद तिवारी ने कहा कि हम तो ONE बनाम ONE बीजेपी के सामने चाहते हैं. कुछ पार्टियां जो परोक्ष रूप से गठजोड़ से बाहर रहेंगी, वो लोकतंत्र बचाने की मुहिम के खिलाफ बीजेपी की मदद करेंगी.
कपिल सिब्बल भी निभा रहे अहम भूमिका
सूत्रों के मुताबिक, भले ही प्रियंका गांधी भविष्य में यूपी की प्रभारी महासचिव नहीं रहें, लेकिन बात अगर सही दिशा में आगे बढ़ी तो यूपी के इस महागठबंधन की तस्वीर तय करने में उनकी बड़ी भूमिका होगी. इसके साथ ही लंबे अरसे तक कांग्रेस में रहे सपा समर्थन से निर्दलीय राज्यसभा सांसद बने कपिल सिब्बल भी इसमें अहम भूमिका निभा रहे हैं.
सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस छोड़ने के बाद भी सिब्बल के सोनिया गांधी से रिश्ते बेहतर हैं. पिछले दिनों इस बाबत सोनिया से मुलाकात भी कर चुके हैं. वहीं, सिब्बल के यादव परिवार से दशकों पुराने रिश्ते जगजाहिर हैं. सूत्रों के मुताबिक, सपा 2014 और 2019 के मुकाबले अभी कांग्रेस को 10-12 से ज्यादा सीटें देने के हक में नहीं है. बाकी आरएलडी को वो अपने कोटे से सीटें देगी. वहीं, कांग्रेस 2009 के लोकसभा चुनावों का हवाला देते हुए करीब दो दर्जन सीटें मांग रही है.