मीटिंग-दर-मीटिंग हो रही हैं. अफसर से लेकर मातहत तक मुस्तैद हैं. पर्याप्त बिजली उपलब्ध है. मतलब मांग और आपूर्ति का अनुपात दुरुस्त है. फिर पूरे उत्तर प्रदेश में कोहराम है. क्या शहर, क्या गांव, हर जगह हाल-बेहाल है. लोकल फाल्ट बिजली महकमे का सबसे बड़ा अस्त्र है. इसी के सहारे अफसर बड़ी से बड़ी समस्या का हल दे रहे हैं. यूपी पॉवर कॉर्पोरेशन का दावा है कि तमाम दिक्कतों-दुश्वारियों के बीच शहरों में 24 घंटे और ग्रामीण इलाकों में 18 घंटे की बिजली आपूर्ति हो रही है.
आंकड़ों एक नजर डालें तो पता चलता है कि दो दिन पहले उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा लगभग 27 हजार मेगावाट बिजली की मांग रही. इतनी मांग यूपी बिजली आपूर्ति के इतिहास में कभी नहीं रही. इसके विपरीत 30 हजार मेगावाट बिजली उपलब्ध बताई गई है. इन आंकड़ों को देखने से लगता है कि सब चंगा है. कहीं कोई परेशानी नहीं है.
गांव से लेकर शहर तक में बिजली की बयार चल रही है. दो दिन पहले के सरकारी आंकड़े कहते हैं कि केवल ग्रामीण इलाके में नौ मिनट की बिजली कटौती की गई है. ऐसी ही आंकड़ेबाजी अफसरान लगभग रोज ही कर रहे हैं. एक तरह से कहा जा सकता है कि बिजली उपभोक्ता झूठ बोल रहे हैं. सिस्टम को बदनाम करने की कोशिश हो रही है.
रोजाना 650 ट्रांसफार्मर फुंक रहे
सरकारी दावों से इतर एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इन दिनों रोज 650 से अधिक ट्रांसफार्मर फुंक रहे हैं. दावा है कि इनकी मरम्मत 24 घंटे में कर दी जाए लेकिन कई बार दो-तीन दिन ये अपने अड्डे पर ही टंगे आसानी से देखे जा सकते हैं. कंट्रोल रूम में रोज लाखों की संख्या में कम्पलेन्ट दर्ज हो रही हैं. जेई-एई जैसे अफसरान कई बार अपना फोन बंद करने को मजबूर हैं. क्योंकि उपभोक्ता फोन पर अपशब्दों की बौछार कर देता है और उनके पास तुरंत कोई समाधान नहीं है.
उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा इस पर रोशनी डालते हैं. वह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में गर्मियों में बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए अफसरों को बेटी के शादी की तरह पहले से तैयारी करना चाहिए. असलियत यह है कि जो काम दिसंबर में शुरू होकर मार्च तक खत्म हो जाना चाहिए था, वह शुरू ही तब हुआ है जब मांग ने जोर पकड़ा. ट्रांसफॉर्मर फुंकने लगे. सब स्टेशनों पर जनता का गुस्सा फूटने लगा.
वह बताते हैं कि राज्य में लगे छोटे-बड़े ट्रांसफार्मर से लेकर ढीले-टूटे तार तक बदलने का काम दिसंबर से मार्च के बीच हो जाना चाहिए. यह बिजली महकमे के चार्टर का हिस्सा है. लेकिन इस बार यह काम अप्रैल में बमुश्किल शुरू हो पाया. ऐसे में दिक्कत तो होनी ही है. अब जनता को यह सब झेलना पड़ेगा क्योंकि इन दिनों मांग बढ़ी हुई है. जब मांग बढ़ती है तब तार खूब टूटते हैं. ट्रांसफार्मर भी खूब फुंकते हैं. फिर उन्हें ठीक करने की चुनौती आन खड़ी होती है. शेड्यूल मरम्मत का काम नहीं हो पाता. इमरजेंसी काल अटेंड करने में ही घंटों लगते हैं.
3.53 करोड़ उपभोक्ताओं के लिए संकट
उत्तर प्रदेश में बिजली उपभोकताओं संख्या लगभग 3.53 करोड़ हैं. इनका कुल स्वीकृत लोड 75 हजार मेगावाट है. इसके विपरीत पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन के 132 केवी सब स्टेशनों की कुल क्षमता 55 हजार मेगावाट के आसपास है. बिजली चोरी का लगभग 20 फीसदी लोड अलग से है. 132 केवी सब स्टेशन ही वह इकाई हैं, जहां से बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की जाती है.
आंकड़े यह बताने को पर्याप्त हैं कि जितना कनेक्शन और लोड स्वीकृत है, हमारे सब स्टेशन उसके हिसाब से अपडेटेड नहीं हैं. ट्रांसफार्मर और तारों के हाल भी किसी से छिपे नहीं हैं. नतीजा, ब्रेक डाउन के रूप में सामने आ रहा है. उसे ठीक करने को पर्याप्त स्टाफ नहीं है. वर्षों से बिजली कम्पनियां संविदा कर्मियों के सहारे हैं.
मांग बढ़ते ही सिस्टम कांपने लगता है
यूपी की बिजली पर बेहद करीब से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार हेमंत श्रीवास्तव कहते हैं कि इन सब दुश्वारियों के बीच लो वोल्टेज आम है. मांग बढ़ने के साथ ही सिस्टम काँपने लगता है. बिजली की उपलब्धता होने के बावजूद अगर दिक्कत बनी हुई है तो इसके कारण स्पष्ट हैं. ढीले तार, टूटे तार, ट्रांसफॉर्मर की मरम्मत, सब स्टेशनों का समय से उच्चीकरण जरूरी है. यह काम इस बार बहुत देर से शुरू हुआ. ऐसे में दिक्कत होनी ही है. अफसर इसे ईमानदारी से स्वीकार भी नहीं कर रहे हैं. उन्हें दस्तावेजों में सब दुरुस्त रखना होता है. दिक्कत इसलिए भी आ रही है.
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा कहते हैं कि रोगी, रोग स्वीकार कर ले तो वह इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाएगा और पक्का ठीक होकर लौटेगा. यूपी की समस्या यह है कि जिम्मेदार लोग यह स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि दिक्कत है. इसीलिए जरूरी उपाय नहीं हो पा रहे हैं.
पूर्वी उतर प्रदेश स्थित महराजगंज के नवीन विशेन बताते हैं कि जिला मुख्यालय पर भी पांच-छह घंटे बिजली गायब हो रही है. अफसर कहते हैं कि लोकल फाल्ट की वजह से दिक्कत है तो चित्रकूट के शेखर द्विवेदी बताते हैं कि मुख्यालय पर कुल जोड़कर 10-12 घंटे बिजली मिल पा रही है. मिर्जापुर के शुभ्रांशु शेखर के मुताबिक उनके यहां पांच से छह घंटे बिजली गायब है.
बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए मौजूदा सरकार ने बिजली की दो यूनिट्स पर काम तेज कर दिया है. इनमें 660 मेगावाट की ओबरा सी और जवाहरपुर यूनिट्स अगले महीने तक शुरू हो जाने की उम्मीद है. कोई नई इकाई न भी लगे, लोकल फाल्ट, सब स्टेशन, ट्रांसफार्मर की समय से मरम्मत होती रहे और बिजली चोरी रुक जाए तो आपूर्ति की दिक्कतें काफी हद तक खत्म हो जाएंगी.
साल 2021 में अधिकतम मांग 22395 मेगावाट रही जो साल 2022 में बढ़कर 26589 मेगावाट तक पहुंची. बिजली महकमे के लोग इस साल अधिकतम मांग 28 हजार मेगावाट मानकर चल रहे हैं. हाल के वर्षों में चाहे योगी सरकार हो, अखिलेश यादव की या मायावती की, बिजली की उपलब्धता बनी हुई है. दिक्कत सब स्टेशन, ट्रांसफार्मर अपग्रेडेशन में है. मरम्मत में हैं. सारी परेशानियों के मूल में यही है.