UP: सरेंडर को STF मुख्यालय खुद जा पहुंचने वाले डॉन त्रिुभवन सिंह से कांपता है मुख्तार अंसारी!

UP: सरेंडर को STF मुख्यालय खुद जा पहुंचने वाले डॉन त्रिुभवन सिंह से कांपता है मुख्तार अंसारी!

Lucknow News: जरायम की दुनिया अब तक यूपी के सबसे खूंखार माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के नाम से जानी-पहचानी जाती है. अगर आप ऐसा सोचते हैं तो यह गलत है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जबसे उन 61 मोस्ट वॉन्टेड माफियाओं की ब्लैक-लिस्ट तैयार की है, जिन्हें जल्दी से जल्दी खामोश करना है. उस लिस्ट में एक नाम ऐसा भी दर्ज है, जिसके नाम से गली के गुंडे से माफिया डॉन बना और आज उम्रकैद का सजाफ्याता मुजरिम बना मुख्तार अंसारी भी थरथर कांपता है. टीवी9 की विशेष सीरीज ‘UP MOST WANTED MAFIA’ में आज पढ़िए मुख्तार अंसारी के दुश्मन नंबर वन और माफिया डॉन बृजेश सिंह के जिगरी दोस्त त्रिभुवन सिंह की क्राइम कुंडली.

पूर्वांचल के जिला गाजीपुर का गांव है सैदपुर मुढ़ियार. इसी गांव का मूल निवासी है माफिया डॉन त्रिभुवन सिंह. वही त्रिभुवन सिंह, जिन्होंने किसी जमाने में पिता और पुलिस में हवलदार रहे भाई के कत्ल का हिसाब बराबर करने के लिए, मुख्तार अंसारी एंड गुंडा कंपनी के गुंडों के ऊपर ही गोलियां झोंक दी थीं. वो भी पुलिस की खाकी वर्दी पहनकर. कहते तो यह भी हैं कि त्रिभुवन सिंह और बृजेश सिंह ने जहां अपनों की हत्याओं का बदला लेने के लिए जरायम की जिंदगी के जंजालों में उलझना कुबूल किया.

वहीं, मुख्तार अंसारी ने जरायम की दुनिया में कूदकर, गैरों की गाढ़ी कमाई लूट-खसोट, कत्ल-ए-आम से हथियाकर, खुद को धन्नासेठ बना डालने के लिए पांव रखा था. अपराध की दुनिया में त्रिभुवन सिंह भी कूदे और मुख्तार अंसारी भी. मगर, दोनों की नियत में खोट या कहिए फर्क साफ और एकदम अलग नजर आता था. एक अपनी इज्जत, खुद की और अपनों की जिंदगी महफूज रखने की जंग में, जरायम की दुनिया के झंझावतों में फंसता चला गया तो वहीं दूसरा यानी मुख्तार अंसारी लूट-खसोट, धोखाधड़ी से अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए.

मई 1985 में वाराणसी में बृजेश सिंह के पिता हरिहर सिंह का कत्ल कर दिया गया. जिसके बदले में कुछ महीने बाद ही यानी 1986 में चंदौली के सिकरौरा गांव में पूर्व प्रधान समेट 7 लोगों की लाशें बिछा डालने का आरोप लगा, इन्हीं त्रिभुवन सिंह के जिगरी दोस्त बृजेश सिंह के ऊपर. कहते हैं कि उस गोलीकांड में बृजेश सिंह भी जख्मी हुए थे. उनके पैर में गोली लगी थी. उन सात कत्लों में नाम आने के बाद गिरफ्तार होकर जब बृजेश सिंह जेल पहुंचे तो वहां, यही त्रिभुवन सिंह पहले से बंद मिले. बस वो दोस्ती हुई कि आज तक बरकरार है. अब अगर पुलिस को त्रिभुवन सिंह न मिलें, तो वो बृजेश सिंह को और बृजेश सिंह न मिलें तो, त्रिभुवन सिंह को तलाशने लगती है. मतलब, दोनो में से अगर कोई एक भी पुलिस को मिल जाएगा तो समझिए, दूसरा मिल ही गया.

त्रिभुवन सिंह, बृजेश सिंह के लिए मजबूत कवच की तरह रहे

त्रिभुवन सिंह उम्र में बड़े हैं. इसलिए बृजेश सिंह उन्हें बड़े भाई और पिता तुल्य सम्मान देते हैं. जबकि वहीं दूसरी ओर बदले में, त्रिभुवन सिंह भी बृजेश सिंह के लिए मजबूत कवच बने रहने में कभी पीछे नहीं रहे. दोनो दांत काटे की दोस्ती वाले दोस्तों की इस जुगल जोड़ी का मगर, दुश्मन नंबर पहला और आखिरी एक ही है….बदमाश मुख्तार अंसारी. त्रिभुवन और बृजेश सिंह जाति समीरकरण के चलते तो करीब हैं हीं. दोनो ने अपने अपने परिवार के कई सदस्यों को खोया है. इसलिए उनका दर्द भी एक सा ही है. दोनो की ससुराल एक ही गांव में होने के चलते भी, इनकी एक दूसरे के बीच आपसी समझ-सामंजस्य की कहानियां, पूर्वांचल के गैंगस्टर्स के घरों में आज भी कही-सुनी सुनाई जाती रहती हैं.

त्रिभुवन सिंह और बृजेश सिंह को कोई बड़ा फर्क है तो वह यह कि, एक गरम मिजाज (बृजेश सिंह) तो दूसरा नरम मिजाज (त्रिभुवन सिंह) है. अक्सर जब जब बृजेश सिंह तैश में आकर कोई ऐसा कदम उठाने जा रहे होते हैं कि, जो उनके लिए और त्रिभुवन सिंह को, दोनो ही परिवारों के आइंदा अहित में होगा, तो बड़े भाई की तरह अवसर गंवाए बिना, त्रिभुवन सिंह, बृजेश सिंह के पांव उस तरफ बढ़ने से रोक लेते हैं. और बृजेश भी, त्रिभुवन सिंह की हर बात मानने में खुद का सम्मान समझते नहीं अघाते हैं.

रेलवे और बालू के ठेके पर त्रिभुवन-बृजेश का रहता था दबदबा

बात अगर काले-कारोबारों की करें तो बृजेश और त्रिभुवन सिंह रेलवे ठेके, बालू ठेके, रेलवे स्क्रैप और कोयला आपूर्ति के ठेके लेते हैं.और यही सब धंधा चूंकि कल के गली के गुंडे और आज, उम्रकैद के सजायाफ्ता मुजिरम मुख्तार अंसारी का है. तो ऐसे में दुश्मनी का इनके बीच जो आलम बीते तीन-चार दशक से मौजूद वो फिर गलत कैसे हो सकता है? हां, इतना जरूर है कि जिस माफिया मुख्तार अंसारी के चलते आज भी आमजन की रूह फनाह होती है.

वहीं मुख्तार, बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह के नाम से मुंह खोलना भूल जाता है. थरथर कांपने लगता है. क्योंकि मुख्तार जानता है कि, जो त्रिभुवन सिंह पुलिस की वर्दी पहन कर या अपने गुंडों को पुलिस वर्दी पहनाकर, मुख्तार अंसारी के शूटर को पुलिस कस्टडी में गोली से उड़वा सकता है. वो त्रिभुवन सिंह भला मौका मिलने पर, मुख्तार अंसारी के भेजे या बदन में में गोलियां झोंकने में भला क्यों शर्माएगा?

दोनों माफिया डॉन दोस्त जेल से बाहर

कानून की शायद ही ऐसी किसी धारा में मुकदमा बाकी बचा हो, जिसमें त्रिभुवन सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज न हो चुका हो. यहां यह भी जिक्र जरूरी है कि. अधिकांश मुकदमे त्रिभुवन सिंह और बृजेश सिंह पर एक साथ ही दर्ज हुए हैं. और इनमें से अधिकांश मुकदमों में दोनों माफिया डॉन दोस्त बरी भी हो चुके हैं. जबकि कुछ मुकदमे अभी भी अदालतों में लंबित है. त्रिभुवन सिंह की जान को चूंकि जेल में भी खतरा बना रहता है.

दिल्ली की जेल में भी रह चुके हैं त्रिभुवन सिंह

इसलिए उन्हें यूपी जेल प्रशासन अक्सर एक जेल से दूसरी जेल में एहतियातन शिफ्ट करती रहती है. एक साल के लिए उन्हें दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद करके रखा गया था. वो मामला मकोका कानून से जुड़े मुकदमे का था. जब उन्हें दिल्ली लाया गया था. तिहाड़ जेल से उन्हें निकाल कर यूपी की पीलीभीत जेल भेजा गया था. मकोका के मुकदमे में वे बरी हो चुके है. यह वही त्रिभुवन सिंह हैं, जिनका नाम आजगमढ़ के पखरी कांड में खूब उछला था.

जरायम की दुनिया का खुद को बादशाह मानने वाले इन्हीं त्रिभुवन सिंह के मिर्जापुर जेल में बंद रहने के दौरान, एक बार छापा पड़ गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, तब इनकी जेल बैरक में टीवी लगा मिला था. जोकि नियम विरूद्ध था. इनकी बैरक में वीडियो कांफ्रेंसिंग का कैमरा भी उस छापे में खराब मिलने के चलते तब, मिर्जापुर के जेल अफसरों की जमकर बेइज्जती की गई. जेल के भीतर में जबरदस्त रुतबे के आलम का हाल जानने के लिए यही बहुत है कि, त्रिभुवन सिंह की मिर्जापुर जेल में बंदी के दौरान, वहां पड़े छापे में इनसे मिलने आने वाले मुलाकातियों के मोबाइल नंबर तक विजिस्टर रजिस्टर ने गायब मिले.

त्रिभुवन सिंह को दिल्ली की तिहाड़ जेल से यूपी की पीलीभीत जेल और फिर पीलीभीत जेल से निकाल कर, मिर्जापुर जेल में साल 2016 में ले जाकर बंद किय गया था. फिलहाल जेल में बंद त्रिभुवन सिंह का नाम जबसे, योगी आदित्यनाथ की नजर टेढ़ी होने के बाद. यूपी पुलिस द्वारा हाल ही में बनाई गई 61 मोस्ट वॉन्टेड माफियाओं की ब्लैक लिस्ट मे शुमार होने से, वे फिर चर्चाओं में हैं.

त्रिभुवन सिंह का एक और भी किस्सा मशहूर है. यह बात रही होगी साल 2009 की. एक दिन त्रिभुवन सिंह लखनऊ के विज्ञानपुरी स्थित एसटीएफ मुख्यालय अपनी कार (बुलेटप्रूफ पजेरो) से खुद ही जा पहुंचे. विजिटर रजिस्टर में अपने असली नाम पते से इंट्री की और एसटीएफ प्रमुख के सामने जाकर खड़े हो गए. और बोले, “मैं आपका 20-22 साल से मोस्ट वॉन्टेड फरारा गैंगस्टर त्रिभुवन सिंह हूं. आप मुझे गिरफ्तार कर लीजिए.” यह सुन-देखकर एसटीेएफ प्रमुख को ही खुद की आंखों पर विश्वास नहीं हुआ कि, जिस वॉन्टेड अपराधी की तलाश में उनकी टीमें दुनिया भर में कई साल से धूल फांक रही हैं. वो शख्स इस कदर की बेखौफी के साथ खुद ही एसटीएफ प्रमुख के सामने सरेंडर करने पहुंच जाएगा!

एसटीएफ चीफ ने पूछ कि एसटीएफ के सामने ही सरेंडर करने क्यों आए कोर्ट क्यों नहीं गए? जैसे बाकी सब फरार अपराधी कोर्ट ही पहुंचते हैं सरेंडर के लिए? जवाब में यही त्रिभुवन सिंह बोले, ‘कोर्ट भी कौन सा अपने घर ले जाकर मुझे पालती-पोसती. कोर्ट में सरेंडर करता तो कोर्ट भी आपको ही बुलाकर (एसटीएफ या पुलिस) आपके ही हवाले कर देती. इसलिए हम सीधे आपके ही पास चले आए हैं.

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