जिसे किसी से बदला लेना है और वो जेल में है तो खुले में कहां और कैसे मिलेगा? जवाब है- कचहरी. अगर किसी को किसी दबंग के सामने वर्चस्व साबित करना है, तो सबसे क़रीब से हमला किस जगह पर हो सकता है? जवाब है- कचहरी. अगर कोई बड़ा अपराधी जेल में महफ़ूज़ है, तो विरोधी गैंग के लोग उसे कहां घेरकर मारते हैं? जवाब है- जेल, कचहरी और कोर्ट के बीच. यानी जेल से कचहरी के बीच सरेआम हत्याओं का ऐसा दौर चलता रहा है, जो सरकार और समाज दोनों के लिए चिंता का विषय है.
लखनऊ में मुख़्तार अंसारी के क़रीबी शूटर गैंगस्टर संजीवा जीवा की कोर्ट रूम में घुसकर हत्या सिर्फ़ आपराधिक घटना नहीं बल्कि गुनाहों का ऐसा जाल है, जिसे हर हाल में तार-तार करना होगा. कानपुर, उन्नाव, लखनऊ, शाहजहांपुर, प्रयागराज, जौनपुर, आगरा, मैनपुरी समेत तमाम ऐसे ज़िले हैं, जहां जेल से लेकर कचहरी तक कई बार गोलियां चल चुकी हैं. कई लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं. यहां तक कि कई बार कचहरी में वकीलों की भारी भीड़ के बीच वकीलों को ही सरेआम मार दिया गया.
कोर्ट में पेशी पर होती है विरोधियों की निगाहें
कोर्ट में पेशी के दौरान होने वाली हत्याओं को लेकर एक ख़ास तरह का ट्रेंड हमेशा से देखा गया है. जब भी किसी की अदालत में पेशी होती है या किसी मुक़दमे में तारीख़ पड़ती है, तो विरोधी को भी इसकी ख़बर मिल जाती है. क्योंकि, अक्सर किसी एक ही अदालत में संबंधित मामले की सुनवाई होती है और केस लंबे चलते हैं इसलिए उस केस से संबंधित हर शख़्स को पता होता है कि अगली तारीख़ कब है. ऐसे में तारीख़ के दौरान कचहरी में हमलावरों के लिए साज़िश को अंजाम देना आसान होता है.
कोर्ट में किसी केस की सुनवाई के दौरान जब तारीख़ें लगातार पड़ती हैं, तो विरोधियों को ख़बर रहती है कि फलां केस में अगली बार किस-किस की पेशी होगी. यानी उस केस से संबंधित पक्ष और विपक्ष समेत उनके वकीलों को पता होता है कि इस मामले में क्या क्या चल रहा है. हाई प्रोफाइल मामलों में ये जानकारी पक्ष-विपक्ष के वकीलों को और उनके ज़रिये कचहरी में ज़्यादातर लोगों को मालूम हो जाती है. ऐसे में हमलावर उसी दिन-तारीख के हिसाब से हमले की साज़िश बनाते और अंजाम देते हैं.
जेल से निकलते ही निगरानी होने लगती है
अगर कोई बड़ा अपराधी, गैंगस्टर या दबंग शख़्स जेल से पेशी के लिए कोर्ट आता है, तो पहले पुलिस की जेल वैन सभी क़ैदियों को जेल से लाकर रिमांड रूम में रखती है. फिर एक-एक करके क़ैदियों को उनकी पेशी वाली अदालतों में ले जाया जाता है. इस दौरान कोई भी क़ैदी पुलिसवालों के साथ कम से कम आधा से एक किलोमीटर तक कचहरी में पैदल चलकर कोर्ट रूम तक पहुंचता है. वो आदमी सबकी निगाहों में होता है. वकील, पैरोकार, केस से संबंधित लोग हों या विरोधी. पुलिस सुरक्षा नाम की होती है.
कोर्ट में पेशी के दौरान होने वाली तमाम गोलीबारी की घटनाओं और हत्याकांड में जो भी हमलावर पकड़ में आया, उसे वकीलों की भीड़ ने ही काबू किया. कई बार बीच-बचाव में वकील घायल भी हो चुके हैं या मारे गए हैं. दरअसल, जो गैंगस्टर या बड़े अपराधी जेल में रहकर गैंग चलाते हैं, वो पेशी पर आने से बचते हैं. क्योंकि, विरोधी गैंग को पूरी ख़बर रहती है कि कौन से गैंगस्टर या अपराधी की कोर्ट में पेशी कब और कहां होनी है. हालांकि, बड़े गैंगस्टर की पेशी के लिए ख़ास इंतज़ाम किए जाते हैं.
बड़े अपराधियों की पेशी शो ऑफ की तरह होती है
बड़े गैंगस्टर या बड़े अपराधियों पर एक से ज़्यादा मुकदमे होते हैं. इसलिए कुछ मामलों में सज़ा हो जाए, तो भी बाक़ी मामलों में पेशी जारी रहती है. ऐसे में गैंगवार में उनके मारे जाने की आशंका रहती है. पुलिस-प्रशासन ख़ुद संज्ञान लेकर तो कभी कोर्ट के आदेश पर ऐसे अपराधी, गैंगस्टर, दबंग या राजनीतिक रूप से अहम व्यक्ति की सुरक्षा के अतिरिक्त इंतज़ाम करती है. मुख़्तार, अतीक, संजीव जीवा, मुन्ना बजरंगी, सुशील मूंछ, मंजीत उर्फ़ मंगे, बबलू श्रीवास्तव आदि ऐसे नाम हैं, जिन्हें पेशी पर एक अलग गाड़ी में लाया जाता रहा.
हाई प्रोफाइल क़ैदियों या ख़ूंख़ार अपराधियों की पेशी किसी शो ऑफ से कम नहीं होती. कई बार उन्हें वज्र वाहन में लाया जाता है. उसके आगे पुलिस की एक गाड़ी भी रहती है. जब कोर्ट रूम में पेशी होनी होती है, उसी समय उन्हें गाड़ी से निकाला जाता है. साथ ही उन्हें कचहरी से लेकर कोर्ट रूम तक ऐसे रास्ते से ले जाते हैं, जहां ज़्यादा भीड़ न हो. इतना ही नहीं पुलिस की गुज़ारिश पर ऐसे लोगों की पेशी भी फौरन हो जाती है. कोर्ट के बाहर इंतज़ार नहीं करवाया जाता, वर्ना हमले का ख़तरा बढ़ जाता है.
20 पुलिसवालों की सुरक्षा में भी हो जाती है हत्या
बड़े गैंगस्टर्स की पेशी पुलिस-प्रशासन के लिए सिरदर्द से कम नहीं होती. अदालतों ने भी इसीलिए पुलिस, जेल और प्रशासन की अपील पर कई साल पहले से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग शुरू कर दी है. लेकिन, अदालतों में तमाम वजहों से केस लंबे चलते हैं. ख़ासतौर पर जब किसी मामले में गवाही होती है, तो अपराधी या आरोपी को पेश होना पड़ता है. इसी दौरान आरोपी पर हमले का ख़तरा और गवाह की जान पर संकट बना रहता है. ऐसे में दोनों ओर से हमले के लिए कचहरी सबसे मुफ़ीद जगह साबित होती है.
तमाम घटनाएं इस बात की गवाह हैं कि 20-20 पुलिसकर्मियों की सुरक्षा के बीच भी हमलावर हत्या करने में कामयाब हो जाते हैं. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि तमाम बार जो लोग हमला करने आते हैं, वो पहले से रेकी करके सबकुछ परख लेते हैं. जेल से कोर्ट तक पेशी पर आने का रास्ता, पुलिसवालों की संख्या और संबंधित शख़्स के वकील का चैंबर. हमलावरों की नज़र हर तरफ़ रहती है. कोर्ट, कचहरी में होने वाले हत्याकांड में हमलावर भले ही एक-दो होते हैं, लेकिन साज़िश में कई लोग शामिल रहते हैं.
जेल जाकर भी रेकी करवा लेते हैं अपराधी
जेल से कचहरी तक बेख़ौफ़ होकर हत्या करने और करवाने वालों से जुड़ा एक सच जानकर आप हैरान रह जाएंगे. अगर किसी अपराधी को किसी ऐसे शख़्स की हत्या करनी या करवानी है, जो जेल में बंद है, तो वो अपराधी अपने आदमी को किसी मामले में जेल भिजवा देता है. फिर जेल में उस शख़्स पर नज़र रखी जाती है. उससे मिलने कौन-कौन आता है, इसकी भी मुखबिरी की जाती है. इसके बाद जब वो पेशी पर आता है, तो उसके बारे में सारी ख़बर अपराधियों या हमलावरों तक पहुंच चुकी होती है.
कोर्ट, कचहरी में असलहों के लाने का चलन बहुत पहले से है. हैरानी की बात ये है कि लोग अपनी जान का ख़तरा बताकर लाइसेंस बनवाकर हथियार लेते हैं, फिर उन्हीं हथियारों को लेकर कचहरी, वकीलों के चैंबर और यहां तक कि कोर्ट रूम के बाहर तक घूमते रहते हैं. ऐसे लोगों को कचहरी के बाहर ही रोक देने की कड़ी क़ानूनी पहल बहुत ज़रूरी है. इसके अलावा जेल से लेकर कोर्ट रूम तक हर स्तर पर क़ैदियों, गवाहों और किसी भी केस से जुड़े लोगों की सुरक्षा के लिए ठोस रणनीति बनानी होगी.