यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में रूस के बढ़ते कदम अब रुक-से गए हैं क्योंकि जानमाल की भारी हानि रूस को भी हुई है। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यह समझ नहीं आ रहा है कि वह करें तो क्या करें। दरअसल, 2014 में क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद से ही रूस पश्चिमी देशों की ओर से लगाये गये तमाम प्रतिबंधों का सामना कर रहा था। यूक्रेन के खिलाफ युद्ध शुरू होने के बाद रूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध और बढ़ गये जिससे रूस की अर्थव्यवस्था भारी दबाव में आ गयी। इसके साथ ही पुतिन की सोच के विपरीत युद्ध लंबा खिंचता चला जा रहा है जिससे रूस का नुकसान बढ़ता ही जा रहा है। देखा जाये तो शुरू में रूस ने एक छोटा सैन्य अभियान समझ कर जो युद्ध शुरू किया था वह अब अंतहीन होता दिख रहा है। रूस के लिए यह संघर्ष एक लंबा और महंगा युद्ध बन गया है।
युद्ध का खर्च
द इकोनॉमिस्ट ने अनुमान लगाया है कि रूस का सैन्य खर्च एक वर्ष में पांच खरब रूबल (£49 अरब पाउंड) या उसके सकल घरेलू उत्पाद का तीन प्रतिशत है। हालांकि जर्मन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस (जीडीएपी) का अनुमान है कि युद्ध में रूस का सैन्य खर्च यूएसडी 90 अरब (£72 अरब पाउंड), या जीडीपी के पांच प्रतिशत से अधिक है। युद्ध में जिस तरह बेहिसाब खर्च हो रहा है उससे अब रूसियों का हौसला भी जवाब देने लगा है।
युद्ध ऐसे ही चलता रहा तो क्या होगा?
जहां तक अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की बात है तो उसने रूस की अर्थव्यवस्था को बहुत भारी नुकसान पहुंचाया है। प्रतिबंधों ने अंतरराष्ट्रीय बाजारों, विदेशी मुद्रा और उत्पादों तक रूस की पहुंच की क्षमता को प्रभावित किया है। साथ ही जिस दर से रूसी सेना को इस समय रक्षा उपकरण और गोला-बारूद मित्र देशों से मिल रहा है, वह भी देश के रक्षा उद्योग पर दबाव डाल रहा है। इस स्थिति से उबरने के लिए रूस के सामने विकल्प यह है कि वह एक बार में निर्णायक सफलता हासिल करने के लिए अपने सैन्य प्रयासों को बड़े पैमाने पर बढ़ाये। अगर युद्ध ऐसे ही चलता रहा तो यूक्रेन को दुनिया से मदद मिलती रहेगी क्योंकि यह युद्ध भले दो देश लड़ रहे हों मगर इससे वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हो रही हैं। ऐसे में रूस को रोकने और यूक्रेन को जिताने के लिए दुनिया के बड़े देश यूक्रेन को समर्थन देते रहेंगे।
रूस ने क्या-क्या खोया?
अब तक के युद्ध को देखें तो रूस ने बड़ी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद खो दिया है। मार्च 2023 में ब्रिटेन के सशस्त्र बलों के मंत्री जेम्स हेप्पी ने अनुमान लगाया था कि रूस ने 1,900 मुख्य युद्धक टैंक, 3,300 अन्य बख्तरबंद लड़ाकू वाहन, 73 चालक दल वाले फिक्स्ड विंग विमान, सभी प्रकार के कई सौ बिना चालक दल वाले हवाई वाहन (यूएवी), 78 हेलीकॉप्टर, 550 ट्यूब आर्टिलरी सिस्टम, 190 रॉकेट आर्टिलरी सिस्टम और आठ नौसैनिक जहाज खो दिए हैं। इसके अलावा, रूस को कई महत्वपूर्ण सैन्य और औद्योगिक चुनौतियों से भी जूझना पड़ रहा है। दरअसल सटीक निशाना लगाने वाले कई हथियारों के लिए रूस भी विदेशी तकनीक पर निर्भर है जोकि प्रतिबंधों के चलते अब उसे मिल नहीं रही है। इस तरह की भी रिपोर्टें हैं कि रूसी सेना द्वारा उपयोग किए जाने वाले अधिकांश उच्च तकनीक वाले इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद अमेरिकी कंपनियों द्वारा ही निर्मित होते हैं। शायद यही कारण है कि इस समय रूसी सेना निम्न श्रेणी के हथियारों का ज्यादा उपयोग कर रही है और अत्याधुनिक तकनीक वाले हथियारों का उपयोग संयम के साथ किया जा रहा है। रूस ऐसा इसलिए कर रहा है कि स्थिति ज्यादा बिगड़ती है तब इनसे असल काम लिया जा सके। ऐसा भी सामने आया है कि जिन तोपों के गोलों पर रूस को बहुत भरोसा था वह भी अब कम पड़ रहे हैं।
रूस पर वैश्विक प्रतिबंधों का कितना असर पड़ रहा है यह समझना है तो आप यूएस थिंकटैंक सेंटर फॉर सिक्योरिटी एंड इंटरनेशनल स्टडीज की रिपोर्ट को देख सकते हैं। इस रिपोर्ट में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के अनुमानों के हवाले से बताया गया है कि रूस इतना परेशान हो चुका है कि वह अपने जिन 6000 से अधिक सैन्य उपकरणों को बदलना या अपग्रेड करना चाहता था, उस काम को उसने रोक दिया है क्योंकि उसे विदेशी तकनीक और रक्षा उत्पादन से जुड़े साजो-सामान नहीं मिल पा रहे हैं। रूसी टैंकों और सैन्य विमानों का अपग्रेड भी इन प्रतिबंधों की वजह से रुक गया है।
अब क्या कर रहा है रूस?
रूस से जो रिपोर्टें सामने आ रही हैं वह दर्शा रही हैं कि अब पुतिन की सरकार घरेलू स्तर पर ही हथियारों को पूर्ण रूप से निर्मित करने पर जोर दे रही है। रूस की सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष दमित्री मेदवेदेव ने हाल ही में 1,500 आधुनिक टैंकों के उत्पादन की योजना पेश की है। रूसी संवाद समिति तास ने बताया है कि मेदवेदेव निगरानी ड्रोन के बड़े पैमाने पर उत्पादन की भी योजना बना रहे हैं। बताया जाता है कि सरकार हथियार निर्माताओं को पर्याप्त ऋण प्रदान कर रही है और यहां तक कि ऐसा करने के लिए बैंकों को आदेश भी जारी किया गया है। यह भी बताया जा रहा है कि कई रूसी हथियार संयंत्र सप्ताह में छह या सात दिन तक तीन शिफ्टों में काम कर रहे हैं और कर्मचारियों को अधिक वेतन की पेशकश भी कर रहे हैं। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि वे उन जैसी हथियार प्रणालियों का उत्पादन बढ़ा सकें जिनका रूस प्रतिबंधों के चलते आयात नहीं कर पा रहा है।
बहरहाल, रूस का बढ़ता सैन्य खर्च और खोती हुई साख दुनिया को भारत के उस संदेश का महत्व एक बार फिर बताती है जिसके तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि यह युद्ध का युग नहीं है। युद्ध से भले रूस ने यूक्रेन के कुछ इलाके जीत लिये हों लेकिन अपनी सैन्य ताकत का उसे जितना घमंड था वह चूर-चूर हो चुका है। एक छोटे-से देश की सीमित संसाधनों वाली सेना ने जिस तरह विश्व की एक महाशक्ति को डेढ़ साल से उलझा रखा है वह वैश्विक इतिहास की बड़ी घटनाओं में शुमार हो चुका है।