Ayush Scam: भ्रष्टाचार के खिलाफ योगी सरकार जीरो टॉलरेंस की नीति पर कार्य करती है. बीते छह वर्षों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने हर भाषण में जीरो टॉलरेंस नीति उल्लेख करते रहे हैं. यहीं नहीं इस नीति के तहत सरकार ने भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए तमाम अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ एक्शन भी लिया है. मगर अब सूबे की सरकार ने आयुष कॉलेजों में हुए एडमिशन घोटाला की जांच सीबीआई से कराने को लेकर दिए गए हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने का मन बनाया है.
शासन के आला अफसरों के अनुसार आयुष कॉलेजों में हुए एडमिशन घोटाला की एसटीएफ द्वारा की गई जांच से सरकार संतुष्ट है. इस नाते सरकार इस घोटाले की जांच अब सीबीआई से कराने को तैयार नहीं है. इसलिए सरकार आयुष कॉलेजों में हुए एडमिशन घोटाले की जांच के हाई कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जल्दी ही याचिका दाखिल करेगी, ताकि सीबीआई इस मामले की जांच ना करे.
पिछले साल अक्टूबर में हुआ था घोटाले का खुलासा
फिलहाल सरकार की इस मंशा को लेकर सूबे के प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता आशुतोष वर्मा ने योगी सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी जीरो टॉलरेंस नीति पर सवाल उठाया है. उनका कहना है कि योगी सरकार के पहले शासनकाल में आयुष कॉलेजों में नियमों कायदों को ताक पर रखते हुये आठ सौ से अधिक बच्चों का एडमिशन किया गया था. इस घोटाले का खुलासा बीते साल अक्टूबर में हुआ, तो खुद सरकार की तरफ से यह कहा गया कि उक्त घोटाले की जांच सीबीआई से कराई जाएगी. लेकिन बाद में सरकार का मन बदल गया और नवंबर में एसटीएफ को इस मामले की जांच सौंप दी गई.
13 के खिलाफ STF ने पेश की थी चार्जशीट
एसटीएफ के अधिकारियों के अनुसार, बीते साल 04 नवंबर को तत्कालीन आयुष निदेशक प्रो. एसएन सिंह ने इस घोटाले की एफआईआर करायी और सरकार के आदेश पर एसटीएफ में इस मामले की जांच शुरू की. 06 नवंबर को सरकार ने आयुष निदेशक प्रो. एसएन सिंह, प्रभारी अधिकारी उमाकांत को निलंबित कर दिया.
सरकार के इस एक्शन के बाद 10 नवंबर को एसटीएफ ने प्रो. एसएन सिंह, उमाकान्त समेत 12 गिरफ्तार कर लिया. फिर गत 14 फरवरी को इस घोटाले में लिप्त 13 लोगों के खिलाफ कोर्ट में एसटीएफ ने पहली चार्जशीट पेश. इस मामले में गत 24 मई को हाईकोर्ट ने संतुष्टि आयुर्वेद कालेज की निदेशक रितु की याचिका पर सुनवाई करते हुए समूचे प्रकरण की सीबीआई को जांच का आदेश करने का आदेश दिया है.
हाईकोर्ट ने अगस्त में इस मामले की रिपोर्ट सीबीआई से मांगी है. हाईकोर्ट के इस आदेश की मुख्य वजह घोटाले में योगी सरकार के पूर्व मंत्री धर्म सिंह सैनी और सीनियर आईएएस प्रशांत त्रिवेदी पर घूस लेने का लगा आरोप रहा है. कहा जा रहा है कि इस आरोप के कारण ही योगी सरकार इस घोटाले की जांच सीबीआई से नहीं करना चाहती, क्योंकि जांच शुरू होने से यह मामला तूल पकड़ेगा. लोकसभा चुनावों के पहले ऐसा होने पर योगी सरकार की छवि पर असर पड़ेगा. इसलिए लिए अब सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने का मन बनाया है.
प्रशांत त्रिवेदी से बनाई गई दूरी
इसके साथ ही सरकार ने घूस लेने के आरोप से घिरे 1989 बैच के आईएएस अधिकारी प्रशांत त्रिवेदी से भी दूरी बनानी शुरू कर दी है. उन्हे अपर मुख्य सचिव वित्त के पद से हटा कर परिवहन निगम के अध्यक्ष पद पर तैनात कर दिया है. यहीं नहीं अब उन्हे मुख्यमंत्री के साथ मंच पर भी बैठने के लिए कुर्सी नहीं रखी जा रही है.
बीते दिनों मुख्यमंत्री आवास पर हुए परिवहन विभाग के कार्यक्रम में ऐसा हुआ और इसे सभी ने नोटिस में भी लिया. हालांकि प्रशांत त्रिवेदी सीएम के चहेते अफसर रहे हैं, लेकिन उन्हे लेकर सीएम की छवि खराब हो यह सरकार के आला अफसर नहीं चाहते है. इसलिए प्रशांत त्रिवेदी को किनारे करते हुए अब सीबीआई को इस घोटाले की जांच से रोकने में सरकार के आला अफसर सक्रिय हो गए हैं.
CBI ने अभी तक शुरू नहीं की जांच
हाईकोर्ट के आदेश के 11 दिन बीत जाने के बाद भी अभी तक सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू नहीं की है. सीबीआई अफसरों का कहना है कि केस दर्ज करने को लेकर सीबीआई मुख्यालय में विचार विमर्श हो रहा है और जल्दी ही न्यायालय आदेशानुसार कार्रवाई की जाएगी. वही सरकार भी सीबीआई के केस दर्ज करने के पहले ही सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई जांच के फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल करने की तैयारी में हैं.
आयुष कॉलेजों में एडमिशन घोटाला
आयुष एडमिशन घोटाला नीट 2021 की परीक्षा से जुड़ा है. मेरिट लिस्ट में गड़बड़ी कर कम मेरिट के 891 छात्रों को उत्तर प्रदेश के आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और यूनानी कॉलेज में एडमिशन दे दिया गया था. वर्ष नीट-2021 की मेरिट में जिन अभ्यर्थियों का नाम नहीं था, उन्हें भी आयुर्वेद, होम्योपैथिक व यूनानी कालेजों में स्नातक कोर्स में दाखिला दे दिया गया.
कम मेरिट वाले विद्यार्थियों को अच्छे कॉलेजों में दाखिला दिया गया. आयुष मंत्रालय ने यूपी के आयुष विभाग और आयुर्वेद निदेशालय को अलग-अलग पत्र भेजकर मामले की जांच करने के आदेश दिए तो घोटाले का पता चला. घोटाले के दोषी पकड़े गए तो मंत्री और अफसरों के घूस लेने की जानकारी भी सामने आई है.