Online Gaming: ऑनलाइन गेमों का फैलता जाल बच्चों के साथ ही महिलाओं को भी चपेट में ले रहा है

Online Gaming: ऑनलाइन गेमों का फैलता जाल बच्चों के साथ ही महिलाओं को भी चपेट में ले रहा है

ऑनलाइन गेमिंग के प्रति बढ़ता शौक बेहद गंभीर होने के साथ ही अत्यंत चिंतनीय भी है। वैसे तो ऑनलाइन गेमिंग की ग्रोथ रेट यानी कि इसके प्रति लोगों का रुझान 12 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रहा है। ऑनलाइन गेमिंग का कारोबार दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहा है। नित नए गेम मार्केट में आ रहे हैं तो दिन प्रतिदिन नए लोगों में इन गेमों की लत पड़ती जा रही है। बच्चे तो बच्चे अब तो महिलाएं भी पीछे नहीं हैं और लुमिकाई की हालिया रिपोर्ट के अनुसार ऑनलाइन गेमिंग में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ते-बढ़ते 43 फीसदी का आंकड़ा छू गई हैं। दरअसल ऑनलाइन गेमिंग से जहां बुद्धि कौशल विकास के फायदे बताए जा रहे हैं वहीं नुकसानों की गिनती की जाए तो वह कहीं ज्यादा है। यहां तक कि गेमिंग के चक्कर में कई बच्चे और युवा जिंदगी तक दांव पर लगा रहे हैं। यह वास्तव में चिंतनीय और गंभीर हो जाता है।

दरअसल 60 के दशक में जब रुडोल्फ हेनरिक बेयर ने ऑनलाइन गेमिंग की दिशा में कदम बढ़ाते हुए पहला गेम बनाया होगा तब शायद ही यह बात उनके जेहन में आई होगी कि कुछ ही समय में यह गेमिंग का सिलसिला इतना लोकप्रिय हो जाएगा कि पूरी तरह से बिजनेस का आकार ले लेगा। देखा जाए तो ऑनलाइन गेमिंग की सहज उपलब्धता ने भी इसे लोकप्रिय बना दिया। गेम कंसोल की बात करें तो प्लेस्टेशन, एक्सबॉक्स, निंटेंडों, पीसी, लेपटॉप, मोबाइल आदि में सहजता से खेलने की सुविधा होने से गेमों के प्रति लोगों की लोकप्रियता भी बढ़ी है। जानकारों का मानना है कि ऑनलाइन गेमिंग की दुनिया में आज कुछ सौ या हजार नहीं अपितु 8 लाख 31 हजार गेम प्रचलन में बताए जा रहे हैं।

एक मोटे अनुमान के अनुसार ऑनलाइन गेम्स का करोड़ों डॉलर का सालाना कारोबार 2025 तक 5 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है तो 28 से 30 प्रतिशत सालाना ग्रोथ रेट के साथ इस कारोबार में बढ़ोतरी की संभावना व्यक्त की जा रही है।

इसके अलावा, ऑनलाइन गेमिंग से अवैध गतिविधियों को भी बढ़ावा मिला है। चिंता का विषय यह है कि अब तक ऑनलाइन गेमिंग के जाल में बच्चे और युवाओं को ही पिसते हुए देखा जा रहा था पर जिस तरह से महिलाएं भी इस जंजाल में आती जा रही हैं वह और भी अधिक चिंतनीय हो जाता है। यदि हमारे देश की ही बात करें तो देश में करीब 50 करोड़ लोग इसकी जद में आ गए हैं। इनमें जहां 55 फीसदी पुरुष हैं तो महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ते बढ़ते 43 फीसदी हो गई है और केवल 2 प्रतिशत लोग ही अन्य हैं। हो सकता है यह अतिश्योक्ति पूर्ण आंकड़ा हो कि गत साल में महिलाओं की हिस्सेदारी दो गुनी रफ्तार से बढ़ी है पर इसमें कोई दो राय नहीं कि यह रफ्तार रही तेज ही है। दिक्कत यह है कि भले ही कुछ गेम मानसिक तनाव को कम करने या बुद्धि कौशल बढ़ाने में सहायक हों पर बहुत से गेम ऐसे भी हैं जो संवेदनशील बच्चों-युवाओं को मौत के मुंह में धकेल रहे हैं। कुछ गेम पूरी तरह से गैंबलिंग पर आधारित हैं और जानकारों की मानें तो इस तरह के गेमों में ठगी और छलावा भी तेजी से हो रहा है। एक तरह से इस तरह के गेम जुआ या लॉटरी जैसे ही हैं और ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे जिसमें गेम जीतने वालों को विजेता स्वरूप जो राशि मिलने का सपना दिखाया जाता है वह मिलता ही नहीं और जीतने के बाद भी लोग अपने को ठगा महसूस करते हैं। कुछ गेमों में टास्क दर टास्क इस कदर हावी हो जाता है कि गेम खेलने वाले सब कुछ भूल कर उसी में खो जाते हैं। यहां तक कि ऐसे मामलों में मौत को गले लगाने के समाचार भी आम हैं।

ऑनलाइन गेमिंग में महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी को लैंगिक असमानता के रूप में नहीं देखते हुए इससे होने वाले नुकसान या दुष्प्रभाव के आइने में देखना होगा। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि बहुत सारे इस तरह के गेम भी बाजार में आ रहे हैं जो मन पर विपरीत प्रभाव डालते हुए मनोदशा को प्रभावित करते हैं। यहां तक कि आक्रोश, हिंसा, कुंठा, संवेदनहीनता और क्रूरता जैसी भावनाएं बढ़ाते हैं। देखा जाए तो यह एक तरह का नशा है और इस तरह का नशा कहीं ना कहीं मनोदशा को बुरी तरह से प्रभावित करता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कुछ गेम रिलेक्स कराने या बुद्धि कौशल बढ़ाने में सहायक हैं पर हिंसा, जुआ, तनाव बढ़ाने वाले टास्क आदि से जुड़े गेमों पर विचार किया जाना आवश्यक हो जाता है। देखा जाए तो जिस तरह से फिल्में आदि जूरी की जांच से गुजरती हैं ठीक उसी तरह से गेम को बाजार में आने से पहले उसके प्रभाव को देखा जाना चाहिए। इसके लिए नियामक संस्था होनी चाहिए जो उसके गुणावगुण को देख कर सर्टिफिकेट जारी कर सके। इसी तरह से ईनाम पर आधारित गेमों और उनको संचालित करने वाली संस्था पर भी नजर रखने वाली संस्था होनी चाहिए ताकि लोगों को ठगी से बचाया जा सके। दरअसल गेम बाजार में उतरे, उससे पहले नियामक संस्था को उसे जांचना परखना चाहिए ताकि उससे होने वाले संभावित दुष्प्रभाव से रोका जा सके। अब यह अतिआवश्यक हो गया है। अन्यथा जिस तरह से ग्रोथ देखी जा रही है उस गति से इसके दुष्प्रभाव की ग्रोथ भी अच्छी खासी देखने को मिलेगी।

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