मुजफ्फरनगर: बेटे के इलाज में पाई पाई खर्च हो गया. दवाई में घर का सामान तक बिक गया. मुजफ्फरनगर के श्मशान घाट के बाहर बेटे का शव रखकर बैठी महिला शारदा का कहना है कि अब बेटे की मौत के बाद हाथ में इतनी भी रकम नहीं कि कफन खरीद सकूं. उसकी बेबसी उसके चेहरे से झलक रही थी. इतने में एनजीओ साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट की अध्यक्ष शालू सैनी को सूचना मिली. उन्होंने तत्काल मौके पर पहुंच कर महिला के बेटे के अंतिम संस्कार का पूरा इंतजाम किया और खुद वहां मौजूद रहकर संस्कार कराए.
महिला शारदा ने बताया कि वह मूल रूप से आजमगढ़ की रहने वाली है. करीब एक साल पहले उनका बेटा राहुल यहां मुजफ्फरनगर स्थित एक फैक्ट्री में आकर काम करने लगा था. उसके साथ ही वह भी यहां आ गई थी. लेकिन कुछ दिनों पहले उसके फेफड़े में संक्रमण हो गया. जिसकी वजह से उसे दर्द के साथ सांस लेने में दिक्कत होने लगी. शारदा ने बताया कि उसने घर में जो जमा पूंजी थी, सब बेटे के इलाज के लिए बेच दिया, फिर भी वह उसे बचा नहीं पायी.
उसने बताया कि 20 मई की शाम को मेरठ के अस्पताल में इलाज के दौरान उसके बेटे की मौत हो गई. इसके बाद अस्पताल वालों ने शव बाहर निकाल दिया. बड़ी मुश्किल से वह बेटे का शव लेकर मुजफ्फरनगर के श्मशान घाट पहुंची, लेकिन यहां समस्या खड़ी हो गई कि बेटे के अंतिम संस्कार के लिए कफन और लकड़ी आदि की व्यवस्था कैसे हो. उसने बताया कि कई लोगों से उसने मदद की गुहार की, लेकिन ऐसे हालात में किसी ने भी हाथ नहीं बढ़ाया.
आखिर में लाचार होकर श्मशान घाट के बाहर बैठी थी, लेकिन साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट की शालू सैनी ने उसे सहारा दिया है. उन्होंने बताया कि शालू ने ही 21 मई को उसके बेटे के लिए कफन और अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी आदि का इंतजाम कराया. जिसके बाद शव का अंतिम संस्कार हो सका है. बता दें कि शालू सैनी की पहचान जिले भर में लावारिस लाशों के एक मात्र वारिश के रूप में जाना जाता है. अब तक वह एक हजार से अधिक शवों का अंतिम संस्कार करा चुकी है. खासतौर पर कोविड कॉल के दौरान जब लोग मरीज या शव देखकर भाग रहे थे, उन्होंने आगे बढ़ कर शवों का उनके धार्मिक रीति रिवाज के मुताबिक संस्कार कराया.