जी7 ने अपने बयान में डी रिस्किंग की मांग की है। ये अमेरिका की चीन के लिए अपनाई जाने वाली डिकप्लिंग नीति का एक सॉफ्ट वर्जन है, जिसके तहत वो कूटनीति व्यापक समझौते और टेक्नॉलॉजी के क्षेत्र में कड़क रवैया अपनाते हैं। जी-7 मिनरल और सेमीकंडक्टर जैसे जरूरी सामने के सप्लाई चेन को मजबूत करने और डिजीटल इंफ्रास्ट्रक्चर को हैकिंग और टेक्नॉलॉजी की चोरी रोकने के लिए बुनियादी ढ़ांचे को मजबूत करने की तैयारी कर रहा है। ऐसा पहली बार नहीं है जब आर्थिक मामलों की बात पर चीन के लिए डी रिस्किंग शब्द का प्रयोग किया गया हो। इससे पहले भी कई मौकों पर इसका जिक्र हो चुका है। ऐसे में आइए आपको बताते हैं कि डी रिस्किंग क्या है और क्यों चीन के लिए बार-बार इस शब्द का प्रयोग किया जाता है।
डी-रिस्किंग का क्या अर्थ है?
अमेरिकी विदेश विभाग डी-रिस्किंग का वर्णन वित्तीय संस्थानों द्वारा ग्राहकों या ग्राहकों की श्रेणियों के साथ व्यावसायिक संबंधों को समाप्त करने या प्रतिबंधित करने की घटना के रूप में किया है, जिससे जोखिम को प्रबंधित करने के बजाय टाला जा सके। यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के नजरिे से देखा जाए तो इस शब्द का प्रयोग ऐसे वित्तीय संस्थान या ग्राहकों के साथ व्यावसायिक संबंध खत्म करने से होता है जो जोखिम का कारण बन सकते हैं। जब चीन की बात आती है, तो इसका मतलब व्यापार और वाणिज्य के व्यवधान के संभावित जोखिमों से बचने के लिए सामग्री की आपूर्ति या तैयार माल के बाजार के रूप में देश पर निर्भरता कम करना है। डी-रिस्किंग का उद्देश्य वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर बीजिंग के नियंत्रण को कम करना है लेकिन इसे पूरी तरह से अलग करना है। अक्सर ऐसे छोटे बैंक या संस्थानों से संबंध खत्म करने को लेकर विश्व बैंक भी इस शब्द का प्रयोग करता रहा है।
चीन को लेकर डी-रिस्किंग की बात क्यों हो रही है?
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि हम चीन से अलग होने के बारे में नहीं सोच रहे हैं। हम चीन के साथ अपने संबंधों को कम करने और विविधता लाने के लिए देख रहे हैं। बाइडेन ने समझाया इसका अर्थ है आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने के लिए आवश्यक उपाय करना। इसलिए हम आवश्यक उत्पादों के लिए किसी एक देश पर निर्भर नहीं हैं। इसका मतलब एक साथ मिलकर आर्थिक दबाव का विरोध करना और हमारे कर्मचारियों को चोट पहुँचाने वाली हानिकारक प्रथाओं का मुकाबला करना है। इसका मतलब हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण उन्नत प्रौद्योगिकियों के एक संकीर्ण समूह की रक्षा करना है। संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव और अन्य भू-राजनीतिक चुनौतियां वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित कर सकती हैं। इसलिए डी-रिस्किंग - माल के उत्पादन के लिए बीजिंग पर निर्भरता को कम करना आवश्यक है।
क्यों पड़ी इस कदम की जरूरत
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से वैश्विक व्यापार की स्थिति बदल गई है। रूस और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ रहे तनाव का फायदा चीन उठाना चाहता है। हाल ही में रूस के साथ व्यापार में चीनी युआन से भुगतान किया जाना इसकी रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा था। सामरिक मामलों के जानकार बताते हैं कि चीन की मंशा है कि किसी तरह अमेरिकी डॉलर को तोड़ा जाए। इसलिए चीन ने रूस को भुगतान में युआन का हिस्सा 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 23 प्रतिशत कर दिया था।
डी-जोखिम डीकूपिंग से अलग कैसे है?
फॉरेन पॉलिसी के अनुसार, डिकूप्लिंग का मतलब जानबूझकर खत्म करना - और कहीं और फिर से बनाना - सीमा पार आपूर्ति श्रृंखलाओं में से कुछ है, जिसने वैश्वीकरण को परिभाषित किया है। पत्रकार एलेक्स लो द साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट में निवेश से सादृश्य का उपयोग करते हुए दो शब्दों की व्याख्या करते हैं। डिकूप्लिंग का अर्थ है अपने पूरे पोर्टफोलियो को भुनाना, डी-रिस्किंग का मतलब है कि जिसे आप सबसे जोखिम वाली संपत्ति मानते हैं, उसे बेचना, अपने मार्जिन पर डीलीवरेज करना। डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में इस शब्द ने जोर पकड़ा। सबसे बड़ा खतरा तब आया जब चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ने मई 2020 में फॉक्स न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि हम पूरे रिश्ते को खत्म कर सकते हैं।
चीन ने कैसी प्रतिक्रिया दी है?
चीन बेशक जी7 शिखर सम्मेलन में दिए गए बयानों से नाराज है। चीन के विदेश मंत्रालय ने शनिवार को जी7 पर अंतर्राष्ट्रीय शांति में बाधा डालने, क्षेत्रीय स्थिरता को कम करने और अन्य देशों के विकास को रोकने" का आरोप लगाया। चीन के उप-विदेश मंत्री सन वेइदॉन्ग ने हिरोशिमा बैठक में चीन से संबंधित मुद्दों के बारे में प्रचार पर विरोध दर्ज कराने के लिए जापानी राजदूत को तलब किया। सन ने दावा किया कि जापान ने शिखर सम्मेलन में अन्य देशों के साथ गतिविधियों और संयुक्त घोषणाओं के माध्यम से ... चीन को बदनाम करने और चीन पर हमला करने, चीन के आंतरिक मामलों में व्यापक हस्तक्षेप के साथ सहयोग किया था।
भारत भी कर चुका है डी रिस्किंग का जिक्र
जी7 देशों और अमेरिका से पहले भारत भी डी-रिस्किंग की बात कर चुका है। हालांकि तब चीन का नाम नहीं लिया गया था। हाल में 16 मई को ईयू ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी काउंसिल (टीटीसी) में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि वैश्विक अस्थिरता के युग में इकॉनॉमी को जोखिम मुक्त रखने की जरूरत है।