जापान के शहर हिरोशिमा में आयोजित जी7 शिखर सम्मेलन दुनिया के पहले परमाणु बम का दंश झेलने वाले शहर में प्रतीकात्मक दौरा करने वाले राष्ट्राध्यक्षों और हाई प्रोफाइल नेताओं के जमावड़े का गवाह बना है। G-7 के संयुक्त राज्य अमेरिका, इटली और पूर्व पश्चिम जर्मनी के राष्ट्राध्यक्षों ने पहले पश्चिमी जापान शहर का दौरा किया था। हालांकि कनाडा और परमाणु संपन्न ब्रिटेन और फ्रांस के नेताओं की ये पहली यात्रा है। शिखर सम्मेलन में आमंत्रित G-7 के बाहर के देशों में भारतीय नेता नरेंद्र मोदी की यात्रा 1974 में देश के सफलतापूर्वक परमाणु हथियार का परीक्षण करने के बाद से पहली है, हालांकि विदेश मंत्री ने 1995 में यहां का दौरा किया था।
जापानी सैनिकों की आक्रामकता देख भाग खड़े हुए चीनी सैनिक
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जापान एक्सिस पावर के खिलाफ था तथा ब्रिटेन का मुख्य सहयोगी थी। लेकिन 1930 के दशक के दौरान उसका नजरिया पूरी तरह से बदल गया। वो अपने प्राकृतिक संसाधनों की पूर्ति के लिए विस्तारवादी नीति पर चलने लगा। जैसा कि इन दिनों चीन की तरफ से अपनाया जा रहा है। 1931 में जापान ने मंचूरिया पर हमला किया, जो कि चीन का हिस्सा था। 1937 में जापान ने बाकी शेष चीन पर भी हमला शुरू कर दिया। हमले के दौरान लगभग 3 लाख आम चीनी नागरिकों की मौत हुई थी। इसे नाजजिंग नरसंहार का नाम दिया जाता है। 1937 दिसंबर में जापानी विमानों ने यांगसी नदी में एक पोत को डूबो दिए जिसमें तीन अमेरिकी नागरिकों की मौत हो गई। इससे अमेरिका का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। हालांकि जापान ने इसके लिए अमेरिका से माफी भी मांगी और इसे भूलवश हुई घटना बताया। 1940 में जापान, जर्मनी, इटली के साथ एक्सिस एलायंस का हिस्सा बन गया। जब जर्मनी ने फ्रांस को बुरी तरह हराया तो जापान ने फ्रांसिसी इंडो चाइना जिसे आज हम वियतनाम के नाम से जानते हैं, उसके कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया। जिसकी वजह से अमेरिका ने जापान के साथ सभी तरह के व्यापारों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। यहां गौर करने वाली बात ये थी कि जापान का लगभग 54 प्रतिशत आयात अमेरिका से ही होता था। जिसके बाद जापान आग बबूला हो उठा।
जब जापान ने अमैरिका पर कर दिया हमला, बदल गया विश्वयुद्ध का रुख़
वैसे तो अमेरिका द्वितीय विश्व युद्ध से बिल्कुल अलग था। लेकिन 7 दिसंबर 1941 की उस घटना ने अमेरिका को विश्व युद्ध की घटना में शामिल कर दिया। ये घटना किसी वर्ल्ड डिजास्टर से ज्यादा नहीं थी। ये घटना पर्ल हार्बर पर जापान द्वारा किया गया हमला, जिसने अमेरिका को पूरी तरह से हिलाकर रख दिया। प्रशांत महासागर के केंद्र में स्थिति पर्ल हार्बर जो अमेरिका से लगभग 2 हजार मील और जापान से लगभग चार हजार मिल दूर है। इसलिए किसी को उम्मीद भी नहीं थी कि जापान इन द्विपों पर हमला करेगा। लेकिन जापान तो कई महीनों पहले से ही इस हमले की योजना बना रहा था। जापान के इस हमले में 2400 से ज्यादा अमेरिकी जवान मारे गए थे और 19 जहाज जिसमें आठ जंगी जहाज थे वो भी नष्ट हो गए थे। इसके अलावा 328 अमेरिकी विमान भी या तो क्षतिग्रस्त हुए या फिर पूरी तरह से नष्ट हो गए थे। जापान ने एक घंटे और 15 मिनट तक पर्ल हार्बर पर बमबारी की थी
अमेरिका ने लिया ऐसा भीषण बदला की कयामत आ गई
बाकी दुनिया उस वक्त जंग में घिरी थी, लेकिन अमेरिका इससे अलग था। जापान के इस हमले ने उसे हिला दिया और वो भी मित्र राष्ट्रों की ओर से युद्ध में लड़ने के लिए उतर गया। ये 1945 की बात है 6 अगस्त की तारीख और जापान में सुबह आठ बज रहे थे। एक जोर का धमाका हुआ और कुछ ही मिनटों के अंदर एक हंसता-खेलता शहर एक राख के ढेर में तब्दील हो गया। इसके ठीक तीन दिन बाद यानी 9अगस्त को दूसरा परमाणु बम नागासाकी पर गिरा और दुनिया हमेशा के लिए बदल गई। द्वितीय विश्व युद्ध 1939- 1945 तक चला था, जब दुनिया का पहला परमाणु बम तैनात किया गया था। जिसमें 9000 पाउंड से अधिक यूरेनियम -235 लोड किया गया था और जिसे यूएस बी-29 बॉम्बर एयरक्राफ्ट, एनोला गे द्वारा 6 अगस्त 1945 को जापानी शहर हिरोशिमा पर गिराया गया था। हिरोशिमा पर गिराए गए बम का नाम लिटिल ब्वॉय था। ये करीब चार हजार किलो वजन का था। नागासाकी शहर पर गिराए गए बम का नाम द फैट मैन था। इसका वजन 4500 किलो का था।
कैसा रहा प्रभाव
इस विस्फोट में लगभग 80,000 लोग मारे गए थे और बड़े पैमाने पर ढांचागत क्षति हुई थी। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 69 प्रतिशत इमारतें नष्ट हो गईं। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ था। जैसा कि सहयोगी युद्ध जीत रहे थे, चीन और जापान जैसे देशों को कई स्थानों से पीछे धकेल दिया गया था। हिरोशिमा पर गिराए गए लिटिल ब्वॉय ने 2.5 किमी के दायरे में इमारतों को समतल कर दिया। बाद के समय में कई हजार लोग बीमार पड़ने वाले प्रभाव से मारे गए और घायल हो गए।
और जो बच गए...
हिरोशिमा के पूर्वी इलाके में एक ट्रेन शहर की ओर बढ़ रही थी। लेकिन अचानक चलती ट्रेन को रोक कर सभी को उतर जाने को कहा गया। डब्बों को इंजन से अलग कर दिया गया। रेलवे लाइन पैदल शहर छोड़ जाने वाले लोगों से भरी हुई थी। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार उनमें से कुछ लोगों की त्वचा उनके चेहरे से लटक आई थी और कुछ की बाहें इस तरह से झूल रही थीं जिस तरह दीवार से आधा फटा पोस्टर झूलता है। कुछ लोग बहुत धीरे धीरे चल रहे थे और उनके मुंह से सिर्फ़ आवाज़ निकल रही थी, पानी, पानी। एटम बम विस्फोट से पैदा हुए बादलों की वजह से हिरोशिमा में तेज़ बारिश होने लगी थी। ये काली बारिश थी जिसमें गंदगी, धूल और विस्फोट से उत्पन्न हुए रेडियोएक्टिव तत्व मौजूद थे। वहीं नागासारी में गिराए गए फैट मैन की जगह से 500 मीटर दूर शिरोयामा प्राइमरी स्कूल में कंक्रीट के कंकाल के अलावा कुछ नहीं बचा।
आज कैसे हैं हिरोशिमा के हालात
परमाणु हमले से तबाह हुआ हिरोशिमा शहर जापान के सबसे बड़े द्वीप होंशू में स्थित है। तबाही के बाद दोबारा इस शहर को बसाने में जापान ने काफी मेहनत की है। वर्तमान दौर में ये एक अच्छा खासा विस्तारित शहर है। यहां की आबादी करीब 12 लाख है। यहां की आबादी काफी घनी बसी हुई है। लेकिन सिस्टमेटिक डेवलपमेंट और जल स्रोतों के बेहतर मैनेजमेंट की वजह से आज हिरोशिमा बेहद ही सुंदर शरह के रूप में नजर आता है।