सहारनपुर में नगर निगम के महापौर का चुनाव में साइलेंट वोटरों ने दिग्गजों को धूल चटाने का काम किया है। योगी आदित्यनाथ की जनसभा वोटरों को एक धागे में पिरो गई। एक ओर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का रोड शो भी मुस्लिम वोटरों को डिगा नहीं पाया। दूसरी ओर काजी परिवार की सियासत को जिंदा रखने की कोशिश करने वाले इमरान मसूद की लीडरशिप बाबा के सामने चित होती दिखाई दी।
योगी की जनसभा का वोटरों पर चला जादू
24 अप्रैल को जनता रोड की एमएस फील्ड पर सीएम योगी आदित्यनाथ की विशाल जनसभा हुई। सीएम योगी ने नाराज वोटरों और कार्यकर्ता को एक धागे में पिरोने के लिए जमीन से लेकर आसमान तक विकास कार्यों का हवाला दिया। यूपी से गुंडागर्दी और बदमाशी के अलावा जीरो टॉलरेंस पर बात की। भाजपा से नाराज बड़े वर्ग की चर्चा कान पड़ी तो उसको मनाने को पंजाबी तक बोल गए।
जिसका असर मतदान पर साइलेंट रूप में दिखाई दिया और मतगणना में साफ तस्वीर दिखाई देने लगी। भाजपा ने सहारनपुर नगर निगम के अलावा देवबंद, नकुड़ और सुल्तानपुर चिलकाना की सीट पर अपना परचम लहराया। चिलकाना नगर पंचायत से मुस्लिम महिला फूलबानों ने भाजपा के विश्वास पर खरा उतरने का काम किया। 13 सदस्यों में नौ पर भाजपा ने जीत हासिल की और चार पर बसपा ने।
अखिलेश का रोड शो इमरान के किले को नहीं भेद सका
सपा विधायक आशु मलिक के भाई नूर हसन पर सपा ने ऐन वक्त पर अपना दांव खेला। तेली समाज के अधिक वोटर होने के कारण आशु मलिक भी अपने बिरादरी का हवाले देते रहे और एकजुट करने का दावा भी किया। नगर निगम में जुड़े 30 गांवों के वोटरों को अच्छी सुविधाएं दिलाने का दावा भी किया। जिस कारण सपा को निगम में जुड़े वोटरों ने भरोसा भी किया। इन गांवों से सपा को अच्छा खास वोट भी मिला। लेकिन शहर में बिरादरी वाद काम नहीं आ सका।
वहीं सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का 5 किलोमीटर का रोड शो भी मुस्लिम वोटरों नहीं रिझा सका। यह कहना गलत नहीं होगा, अखिलेश यादव बसपा के वरिष्ठ नेता इमरान मसूद के किले को भेदने में नाकाम रहे। यहीं कारण रहा सपा-बसपा के मुस्लिम वोटर बंट गए और भाजपा की नगर निगम पर विजय पताका फहरा गई।
दलित-मुस्लिम कार्ड खेलकर भी नहीं जीत सकी बसपा
मुस्लिम-दलित वोटरों के सहारे आंकड़ेबाजी लगाकर मेयर चुनाव जीतने का दावा करने वाले बसपा नेता इमरान मसूद चारों खाने चित हो गए है। एक ओर चुनाव के दौरान परिवार के लोगों पर लगने वाले मुकदमों ने विचलित कर दिया।
जिस कारण मतदान और मतगणना के दिन भी वह घर से बाहर भी नहीं निकले। ऐसे में मुस्लिम लीडरशिप को लेकर इमरान की मुसीबत बढ़ सकती है। हां, बार-बार फेसबुक पर लाइव होकर इमरान मसूद ने भाजपा और उनके अफसरों को पानी पी-पीकर कोसने का काम जरूर किया है।
लेकिन उनके कोसने का असर मुस्लिम वोटरों पर दिखाई भी दिया। मुस्लिम वोटर एकजुट हुआ और बसपा का बटन दबाकर इमरान को मजबूत करने का काम किया। लेकिन मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में पुलिस प्रशासन की सख्ती कहीं न कहीं सवालों के घेरे में भी खड़ी दिखाई दी।
वहीं हिंदू बाहुल्य इलाकों के बूथों पर वोटरों के सन्नाटा भी कहीं न कहीं मतदाताओं के विरोध को दर्ज करने का काम कर रही थी। लेकिन इसके बावजूद भी भाजपा प्रत्याशी डॉ.अजय सिंह के सिर पर जीत का सेहरा सजा।
सपा-बसपा की लड़ाई से भाजपा हुई मजबूत
भाजपा की आंकड़ेबाजी में सपा-बसपा का गणित फेल दिखाई दिया। बसपा ने दलित-मुस्लिम का अपना आंकड़ा सेट कर चुनावी मैदान में काजी परिवार की पुत्रवधु खदीजा मसूद को उतारा। बसपा के दलित-मुस्लिम फैक्टर ने कहीं न कहीं सपा को नुकसान पहुंचाने का काम किया।
लेकिन इमरान को मजबूत करने का काम किया। राजनीतिक टीकाकारों का कहना है, यदि इमरान मसूद परिवारवाद की राजनीति न करते और चुनाव अन्य किसी को लड़वाते तो कहीं न कहीं बसपा के हाथी को रफ्तार मिलती।
हो सकता था, बसपा मेयर चुनाव जीत सकती थी। लेकिन परिवारवाद की राजनीति कर इमरान चुनाव हार गए है, अब कहीं न कहीं उनको लोकसभा के चुनाव में इसका नुकसान होगा या फायदा। ये भविष्य के गर्भ में छुपा है।