तालिबान सिर्फ अफगानिस्तान में ही सत्ता संघर्ष में नहीं उलझा हुआ है बल्कि सत्ता से जुड़े हर प्रतिष्ठान पर कब्जे की यह लड़ाई अब विदेशों में स्थित दूतावासों तक भी जा पहुँची है। हम आपको बता दें कि तालिबान की ओर से एक अधिकारी ने दावा किया है कि दिल्ली के लिए नये राजदूत की नियुक्ति की गयी है लेकिन अफगानिस्तान की पूर्व सरकार द्वारा नियुक्त अफगानी राजदूत ने इस दावे को फर्जी बताया है। इस तरह की खबरें हैं कि विदेशों में अपना संपर्क ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने के लिए तालिबान शासन राजदूतों की नियुक्ति कर रहा है लेकिन उसके समक्ष दिक्कत यह है कि भारत समेत तमाम देशों ने तालिबान शासन को मान्यता ही नहीं दी है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि तालिबान द्वारा नियुक्त राजदूत आखिर कैसे विदेशों में कामकाज संभालेंगे?
इस पूरे विवाद पर विस्तार से बात करें तो आपको बता दें कि भारत में अफगानिस्तान दूतावास के मौजूदा प्रमुख फरीद मामुन्दजई की जगह तालिबान द्वारा प्रभारी प्रमुख नियुक्त किए जाने की खबरें आने के बाद दूतावास ने कहा है कि मिशन के नेतृत्व में कोई बदलाव नहीं हुआ है। हम आपको बता दें कि फरीद मामुन्दजई को पिछली अशरफ गनी सरकार द्वारा नियुक्त किया गया था और वह अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद भी अफगान दूत के रूप में काम कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि वर्ष 2000 से अफगान दूतावास में ‘ट्रेड काउंसलर’ के रूप में काम कर रहे कादिर शाह ने पिछले महीने भारतीय विदेश मंत्रालय को पत्र लिखकर दावा किया था कि उन्हें तालिबान द्वारा दूतावास प्रभारी के रूप में नियुक्त किया गया है।
इस बीच, फरीद मामुन्दजई के नेतृत्व वाले दूतावास ने एक बयान में कहा, ‘‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान का दूतावास तालिबान के इशारे पर नयी दिल्ली में मिशन की कमान संभालने के संबंध में एक व्यक्ति के दावों को स्पष्ट रूप से खारिज करता है।’’ बयान में कहा गया, ‘‘दूतावास अफगान लोगों के हितों का समर्थन करने के साथ काबुल में तालिबान शासन को मान्यता नहीं देने के भारत सरकार के निरंतर एक रुख की सराहना करता है, जैसा कि दुनिया भर में लोकतांत्रिक सरकारों के मामले में रहा है।’’
दूतावास ने अपने बयान में कहा कि जिस व्यक्ति ने दावा किया है कि तालिबान ने उसे दूतावास प्रभारी बनाया है, वह एक अहस्ताक्षरित पत्र के आधार पर ‘‘गलत सूचना फैलाने और मिशन के अधिकारियों के खिलाफ निराधार अभियान चलाने के लिए जिम्मेदार है, जिसमें भ्रष्टाचार के पूरी तरह से मनगढ़ंत आरोप भी शामिल हैं।’’ उल्लेखनीय है कि अफगान मीडिया में दूतावास के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के बारे में कुछ खबरें आई थीं। दूतावास ने कहा, ‘‘मिशन विशेष रूप से इस कठिन समय में अफगान नागरिकों के वास्तविक हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और इसने मानवीय प्रयासों पर भारतीय अधिकारियों के साथ मिलकर काम किया है, जिसमें कोविड-19 रोधी टीकों, दवाओं और खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति शामिल है।’’ बयान में कहा गया, ‘‘दूतावास अफगान नागरिकों को यह भी सूचित करना चाहता है कि मिशन सामान्य रूप से काम कर रहा है और भारत में उनके हितों के लिए काम कर रहा है।’’
वहीं, कादिर शाह के दावे पर भारत सरकार की ओर से कोई टिप्पणी नहीं की गई है। सूत्रों ने कहा कि कादिर शाह ने विदेश मंत्रालय को पत्र फरीद मामुन्दजई की अनुपस्थिति में लिखा था क्योंकि वह भारत से बाहर गए थे। हम आपको बता दें कि पिछले साल जून में, भारत ने अफगानिस्तान की राजधानी में अपने दूतावास में एक ‘‘तकनीकी टीम’’ तैनात करके काबुल में अपनी राजनयिक उपस्थिति फिर से स्थापित की थी। तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के मद्देनजर सुरक्षा को लेकर चिंता के बाद भारत ने दूतावास से अपने अधिकारियों को वापस बुला लिया था। हम आपको यह भी बता दें कि इस प्रकार की भी खबरें हैं कि तालिबान ने कई मौकों पर नयी दिल्ली को सूचित किया कि भारत में अफगान दूतावास के राजनयिक अब काबुल का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। तालिबान शासन पर भारत के रुख की बात करें तो आपको बता दें कि भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है और वह काबुल में समावेशी सरकार के गठन के लिए जोर दे रहा है। भारत ने यह भी कहा है कि किसी भी देश के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के लिए अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। भारत हालांकि अफगानिस्तान के साथ अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को हमेशा प्राथमिकता देता रहा है और अफगान लोगों की भरसक मदद करता रहा है। साथ ही भारत अफगानिस्तान के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की वार्ताओं में भी शामिल होता रहा है।