भारतीय जनता पार्टी में मोदी युग की शुरुआत के बाद कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। बीजेपी की पिछले करीब एक दशक की राजनीति पर नजर दौड़ाई जाए तो यह कहा जा सकता है कि उसमें कभी पार्टी की विचारधारा सर्वोपरि हुआ करती थी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की मर्जी के बिना पार्टी में कोई फैसला नहीं लिया जाता था। संघ के कई नेता बीजेपी में आकर संघ की विचारधारा को आगे बढ़ाते थे। पार्टी के भीतर पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं को पूरा सम्मान मिलता था। समय-समय पर उन्हीं में से किसी नेता/कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाया जाता था। ऐसी परम्परागत भारतीय जनता पार्टी में आज की तारीख में विचारधारा की बात गायब हो गई है। अब चुनाव में प्रत्याशी के चयन का आधार उसकी सोच से नहीं उसकी चुनाव जिताऊ क्षमता से तय किया जाता है। इसी प्रकार से अन्य दलों की तरह बीजेपी में भी अब किसी नेता के ‘कद’ का निर्धारण उसकी विचारधारा और काबलियत से अधिक उसकी आक्रामकता से तय किया जाता है। मौजूदा बीजेपी के लिए वो ही नेता ‘काम’ का होता है जो सच-झूठ सब बोलने की क्षमता के साथ-साथ मतदाता तक अपनी बात सलीके से पहुंचाने में महारथ रखता हो, इसके साथ-साथ वोट बैंक की सियासत में फिट बैठता हो। पार्टी में अब ऐसा नेता ही आगे बढ़ता है। इसी वजह से पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली से लेकर राज्यों तक की बीजपी इकाई में आयातित नेताओं के साथ-साथ पूर्व नौकरशाहों का भी दबदबा बढ़ा है, जबकि बदलती राजनीति में बीजेपी के लिए अपना पूरा जीवन खपा देने वाले कई दिग्गज नेता हाशिये पर चले गए हैं।
इसी क्रम में पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश भाजपा की सियासत में भी पूर्व नौकरशाहों और मौकापरस्त नेताओं की बड़े पैमाने पर इंट्री हो चुकी है। खासकर बीते 6-7 वर्षों में बीजेपी ने बाहर से आने वाले ब्राह्मण नेताओं को कुछ ज्यादा ही तरजीह दी है। इसमें से कई आयातित ब्राह्मण नेता और नौकरशाह तो पार्टी और सरकार में उच्च पदों पर आसीन हो गए हैं, जबकि पार्टी के कई पुराने ब्राह्मण नेता और कार्यकर्ता इस दौरान हाशिये पर चले गए हैं। बीजेपी में आयातित ब्राह्मण नेताओं में बृजेश पाठक डिप्टी सीएम के साथ स्वास्थ्य विभाग, जितिन प्रसाद लोक निर्माण विभाग के कैबिनेट मंत्री और रजनी तिवारी एवं प्रतिभा शुक्ला राज्य मंत्री हैं। इसमें से जितिन प्रसाद कांग्रेस से और बाकी नेताओं ने 2017 के विधान सभा चुनाव से पूर्व बसपा छोड़कर बीजेपी ज्वॉइन की थी। वहीं गुजरात के पूर्व नौकरशाह एसके शर्मा भी योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं और नगर विकास और ऊर्जा जैसा महत्वपूर्ण विभाग उनके पास है। एके शर्मा को पीएम मोदी का काफी खास बताया जाता है।
खैर, बीजेपी ज्वॉइन करने के बाद सबसे बड़ा उछाल कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी से होते हुए भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने वाले बृजेश पाठक की राजनीति में देखने को मिला, जो पिछले छह साल में भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरा बन गए हैं। उन्होंने पार्टी के पुराने ब्राह्मण चेहरों को काफी पीछे छोड़ दिया है। उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक 2017 के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले बीजेपी में शामिल हुए थे। इसके पहले वह बहुजन समाज पार्टी में थे। योगी सरकार बनने के बाद पाठक के कंधों पर न्याय और कानून का विभाग सौंपा गया था। इस दौरान लगातार उनकी छवि ब्राह्मण नेता के तौर पर मजबूत होती गई। बीजेपी के आलाकमान को उनके काम करने का तरीका भी पसंद आया। योगी सरकार की सत्ता में वापसी होने पर उन्हें दिनेश शर्मा की जगह डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठाया गया। पिछली बार के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा को योगी टू सरकार के कैबिनेट में जगह नहीं मिली। इसी तरह अन्य ब्राह्मण नेताओं में नीलकंठ तिवारी वाराणसी की विधानसभा सीट से दूसरी बार जीते थे। वे पूर्वांचल का बड़ा चेहरा हैं, लेकिन इस बार उनकी जगह पहली बार विधायक बनते ही गाजीपुर के दयाशंकर मिश्रा कैबिनेट में चुन लिए गए। योगी सरकार टू में सबसे आश्चर्यजनक रूप से डॉ. दिनेश शर्मा की विदाई हुई।
दरअसल, दिनेश शर्मा डिप्टी सीएम के तौर पर अपनी वैसी आक्रामक छवि नहीं बना पाए जिसकी उनसे अपेक्षा थी। बीते वर्ष विधान सभा चुनाव कैंपेन के दौरान योगी सरकार पर ब्राह्मण विरोधी होने के आरोप लगे थे। विपक्ष ने उन पर तीखा हमला किया। दिनेश शर्मा इन हमलों का जवाब देने में पूरी तरह नाकाम साबित हुए। वहीं ब्रजेश पाठक पूरी तरह से मुस्तैद दिखाई दिए। यही वजह थी बीजेपी और स्वयं योगी को भी दिनेश शर्मा के बजाय ब्रजेश पाठक में वो खूबियां दिखाई देने लगीं जिसकी उन्हें जरूरत थी। पाठक ब्राह्मणों के मुद्दों पर बीजेपी विरोधी नेताओं के खिलाफ ज्यादा आक्रामक रहे, जिसका इनाम उन्हें डॉ. दिनेश शर्मा को हटा कर उनकी जगह डिप्टी सीएम के रूप में मिला
ज्ञातव्य हो कि पिछले पांच साल में ऐसे कई मौके आए जब दिनेश शर्मा सुस्त दिखाई दिए। वहीं, ब्रजेश पाठक के तेवर तीखे नजर आए। यूपी विधान सभा चुनाव से पूर्व की लखीमपुर खीरी की घटना को ही लेते हैं। इसमें गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी और उनके बेटे आशीष मिश्रा विपक्ष और भारतीय किसान यूनियन के निशाने पर थे। किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में यहां हुए बवाल में आठ लोगों की मौत हो गई थी। इनमें चार किसानों के साथ अन्य चार बीजेपी कार्यकर्ता थे। ये सभी ब्राह्मण थे। माहौल देख तब सब ने चुप्पी साध रखी थी। हालांकि, ब्रजेश मिश्रा इन कार्यकर्ताओं के घर पहुंचे थे। उनके परिजनों को सांत्वना दी थी कि उन्हें न्याय मिलेगा। सीएम योगी आदित्यनाथ पर तब भी हमले हुए थे जब माफिया विकास दुबे का एनकाउंटर हुआ था। तब माहौल बनाने की कोशिश की गई थी कि योगी आदित्यनाथ ब्राह्मण विरोधी हैं। उस वक्त भी ब्रजेश पाठक योगी के समर्थन में खुलकर खड़े रहे थे।
ब्रजेश पाठक ने विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान विपक्षी समाजवादी पार्टी पर जमकर प्रहार किया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने जब-जब भाजपा को ब्राह्मण विरोधी बताया, तो इसके प्रतिरोध में पाठक ने पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश पर पलटवार किया। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, भाजपा ने पाठक को उनके इसी काम के लिए पुरस्कृत करते हुए उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाया था। ब्रजेश पाठक के राजनैतिक सफर की बात कि जाए ता हरदोई जिले के रहने वाले ब्रजेश पाठक लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रसंघ की राजनीति में सक्रिय रहे और 1989 में छात्र संघ उपाध्यक्ष चुने गये। इसके बाद 1990 में वह छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गये। पाठक को 2002 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने हरदोई के मल्लावां क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया था और वह लगभग सवा सौ मतों के कम अंतर से पराजित हो गये थे। इसके करीब दो वर्ष बाद वह कांग्रेस छोड़ कर बसपा में शामिल हो गए। उन्हें 2004 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने उन्नाव संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया और वह चुनाव जीत गये। इसके बाद बसपा प्रमुख मायावती ने उन्हें 2009 में राज्यसभा भेज दिया था। पाठक, 2014 में उन्नाव से दोबारा लोकसभा चुनाव में बसपा से उम्मीदवार बनाए गए, लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। इसके बाद 2016 में वह भाजपा में शामिल हो गए। भारतीय जनता पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में पाठक को लखनऊ मध्य क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया। उस चुनाव में पाठक ने समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री रविदास मेहरोत्रा को पराजित कर यह सीट जीत ली और 19 मार्च 2017 को योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बनी सरकार में कानून मंत्री बनाए गए थे और अबकी बार डिप्टी सीएम बन गए।
योगी टू में डिप्टी सीएम बनने से रह गए डॉ. दिनेश शर्मा ब्रजेश पाठक के मुकाबले बीजेपी और संघ के काफी पुराने चेहरे हैं। उन्होंने लम्बे समय तक निस्वार्थ पार्टी के लिए काम किया। डॉ. दिनेश शर्मा भारतीय राजनीति में एक पुराने नाम हैं, अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों को आत्मसात किया। लखनऊ यूनिवर्सिटी में वाणिज्य विभाग में प्रोफ़ेसर शर्मा लम्बे समय से बीजेपी की विचारधाराओं को आगे बढ़ा रहे हैं। दिनेश शर्मा मिलनसार प्रवृति के व्यक्ति हैं। इस वजह से ये आम जनता में काफी लोकप्रिय हुए और हर धर्म और हर तबके के लोगों ने इन्हें पसंद किया। ब्राह्मण परिवार से तालुक होते हुए भी वो मुस्लिम समुदाय में लोकप्रिय हैं। डॉ. शर्मा पहली बार लखनऊ में मेयर पद के लिए 2008 में चुने गए। वे 2006-2011 में उत्तर प्रदेश मेयर के अध्यक्ष भी रहे।
जब अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ के सांसद थे तब दिनेश शर्मा को उनके काफी करीब माना जाता था। 2014 में जब अमित साह पार्टी अध्यक्ष बने उस समय भारतीय जनता पार्टी की सदस्यों की संख्या बढ़ाने में दिनेश शर्मा ने अहम् भूमिका निभाई, तब से वे अमित साह के पसंदीदा बन गए। हालाँकि बीजेपी में उनका राजनीतिक समय सिर्फ ज्यादा पुराना नहीं है, लेकिन बजरंग दल और वीएचपी से वो बहुत पहले से जुडे रहे। अमित साह के पार्टी अध्यक्ष बनते ही उन्होंने दिनेश शर्मा को गुजरात का प्रभारी बना दिया था। लेकिन बाद में कहीं न कहीं वह मौजूदा सियासत में ब्रजेश पाठक से पिछड़ गए और उनकी जगह योगी ने ब्रजेश पाठक को डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी सौंप दी।
वैसे डॉ. दिनेश शर्मा इकलौते ब्राह्मण नेता नहीं हैं, जिनको बीजेपी ने उनकी काबलियत के अनुसार आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया था। एक समय में बीजेपी में मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्र, केसरी नाथ त्रिपाठी, रमापतिराम त्रिपाठी, ब्रह्मदत्त द्विवेदी, हिमाचल के राज्यपाल और यूपी के दिग्गज नेता शिव प्रताप शुक्ला, लक्ष्मीकांत वाजपेयी जैसे ब्राह्मण नेताओं पर कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ जैसे लीडरों को तवज्जो दी जाती थी। कल्याण और राजनाथ सिंह यूपी के सीएम की कुर्सी तक पर विराजमान हुए थे और योगी मौजूदा सीएम हैं। ब्राह्मण नेताओं के हिस्से में ज्यादा से ज्यादा उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष या केन्द्र में छोटे-मोटे विभाग का मंत्री पद ही अक्सर आता है।