अल कादिर ट्रस्ट घोटाले में पाकिस्तान रैंजर्स द्वारा आनन फानन में गिरफ्तार किये गए पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को रिहाई का आदेश देकर पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने फिर दिखाया है कि देश में सेना की निंरकुशता और सरकार की मनमानी के खिलाफ उसे कानून के रास्ते पर डटना आता है. पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने ये साबित किया है कि जहां तक न्याय की बात है तो उसमें वह काफी हद तक निष्पक्ष और बगैर दबाव के काम करने वाली संस्था है. सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई की शाम इमरान की गिरफ्तारी को गैरकानूनी करार देते हुए रिहाई के आदेश दे दिए.
पाकिस्तान के अखबार ‘द डॉन’ के मुताबिक- अल कादिर ट्रस्ट घोटाला 50 अरब रुपये से ज्यादा का है और इसका फायदा इमरान, पत्नी बुशरा बीबी और बुशरा की दोस्त फराह गोगी ने उठाया. ये एक यूनिवर्सिटी से जुड़ा मामला है. इसमें इमरान को गिरफ्तार किया गया. इसके बाद इमरान का आरोप था कि ये गिरफ्तारी ना केवल गैरकानूनी है बल्कि गिरफ्तारी के बाद उनसे बदसलूकी भी की गई.
पाकिस्तान में अजीब सी स्थिति रहती आई है. लोकतांत्रिक और चुनी गईं सरकारें आमतौर पर कमजोर रही हैं तो ना जाने कितनी बार सेना तख्तापलट कर चुकी है. सेना बहुत ताकतवर है. ऐसे में पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट बेधड़क होकर हर बार कैसे फैसला देता है. ये वाकई सोचने वाली बात है. कई बार सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर मामले में संविधान का उल्लंघन करने पर स्वतः संज्ञान (सुओ मोतो) लेते हुए तुरत-फुरत कार्रवाई भी की है. सुप्रीम कोर्ट ने अब भी अपनी ताकत और मजबूती के साथ विश्वास बना रखा है.
आखिर क्या वजह है कि चरमराते लोकतंत्र और लगातार सैन्य विद्रोह के जरिए तख्तापलट के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने अपने वजूद को बना रखा है. पाकिस्तान में जो संस्थाएं अब भी मजबूत बनी हुई हैं और जनता जिस पर भरोसा करती है, उनमें एक वहां की सुप्रीम कोर्ट भी है.
कैसा है पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट का ढांचा
पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट का ढांचा कमोवेश भारतीय सुप्रीम कोर्ट की तरह ही है. दरअसल बंटवारे के बाद दोनों ही देशों ने ब्रिटिश न्याय संस्कृति और वैसे ही ढांचे की एडाप्ट किया. जिस तरह भारत में सुप्रीम कोर्ट न्याय के क्षेत्र में सर्वोच्च और स्वायत्तशासी संस्था है, उसी तरह पाकिस्तान में भी है.
कैसे होती है सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति
पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट का गठन 14 अगस्त 1947 के दिन हुआ था. तब ये लाहौर से संचालित होती थी लेकिन फिर ये अपने नए भवन में इस्लामाबाद में शिफ्ट हो गई. पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट भी देशभर में अदालतों को नियंत्रित करने वाली संस्था भी है. सुप्रीम कोर्ट पाकिस्तान में एक मुख्य न्यायाधीश होता है, जिसकी नियुक्ति पर प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति मुहर लगाता है. हालांकि भारत की ही तरह पाकिस्तान में भी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति और सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की प्रक्रिया एक जैसी ही है.
सुप्रीम कोर्ट क्या सुनिश्चित करती है
सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश के अलावा 16 जज होते हैं. फिलहाल उनकी संख्या 15 है. वो देश में संविधान के पालन को सुनिश्चित करती है. कभी अगर उसको लगता है कि कुछ संविधान के हिसाब से नहीं चल रहा है तो खुद सुओ मोतो ले सकती है, जैसा अविश्वास प्रस्ताव मामले में इमरान खान सरकार के मामले में हुआ.
बनी हुई है शीर्ष अदालत की विश्वसनीयता
पाकिस्तान में भी तमाम संस्थाओं के कमजोर हो जाने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने अपनी वो विश्वसनीयता और जगह बना रखी है कि सरकार और पुलिस उसके आदेशों का पालन करते हैं. यहां तक कि सेना भी कई बार सुप्रीम कोर्ट के कठघरे में खड़ी हो चुकी है. आखिर पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट के ताकतवर होने की वजह क्या है. कैसे उसके फैसलों को मानने के लिए आज भी सरकार, सेना और पुलिस बाध्य लगती है.
दबाव में नहीं आती बगैर पूर्वाग्रह के काम करती है
कैसे आखिर अब तक पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ये छवि बना रखी है कि वो केवल संविधान के अनुसार चलती है, बगैर किसी पूर्वाग्रह के न्याय के साथ रहती है. जनता से लेकर सरकार और सेना को लेकर किए गए उसके कई फैसले साबित कर चुके हैं कि पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट फिलहाल किसी के दबाव में नहीं आती.
कब आया टर्निंग प्वाइंट
दरअसल पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट का टर्निंग प्वाइंट भी तब आया जबकि जनरल परवेज मुशर्रफ द्वारा देश का राष्ट्रपति बनने के बाद संविधान बदला गया और न्यायपालिका पर भी दबाव बनाने की कोशिश हुई. तब सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों को नए संविधान के तहत शपथ पढ़ने को कहा गया. जजों ने इसका विरोध किया. मुशर्रफ ने मार्च 2007 में देश के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पद से हटा दिया. इसके बाद दूसरे जजों को भी हटाया गया.
मुशर्रफ को झुकना पड़ा तब
मुशर्रफ को लगा था कि वो ये सब कर डालेंगे लेकिन इसकी प्रतिक्रिया तीखी हुई. पूरे देश में वकीलों और जजों ने मिलकर अभूतपूर्व आंदोलन शुरू किया, जो करीब दो साल तक चलता रहा. इसमें वकीलों को जेल में भी डाला गया. लेकिन वर्ष 2009 में मुशर्रफ को ही झुकना पड़ा. उन्हें सुप्रीम कोर्ट की स्वायत्ता बहाल करनी पड़ी. उसमें खुद की अड़ंगेबाजी से वापस पैर खींचना पड़ा.
इस अग्निपरीक्षा ने और ताकत दी
इस अग्निपरीक्षा के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कभी ऐसा समय नहीं दिया कि कोई सरकार उससे कामों में हस्तक्षेप कर पाए. कहा जा सकता है कि आंदोलन ने उसे और ताकत ही दी. उसकी इमेज को इंडिपेंडेंट और निडर होने में मदद की. जनता का विश्वास भी न्यायपालिका ने जीता.
क्या लगता है कि पाकिस्तान की जनता को
अब पाकिस्तान में लोगों को लगता है कि बेशक उनकी लोकतांत्रिक सरकारें कमजोर हैं और सेना ने पूरे देश को कठपुतली बना लिया हो लेकिन सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में जाने पर उनको न्याय जरूर मिलेगा. हालांकि ये भी सही है कि सेना और सरकारों ने भी सुप्रीम कोर्ट की स्वायत्त इमेज का हमेशा ख्याल रखा है. सियासी तौर पर जजों को हटाने या नियुक्ति में सरकारों या सेना की अड़ंगेबाजी नहीं चलती.
सियासी पार्टियां भी चाहती हैं मजबूत रहे सुप्रीम कोर्ट
चूंकि पाकिस्तान में हमेशा से ही मजबूत नेताओं का अभाव रहा है, लिहाजा सुप्रीम कोर्ट बखूबी जनता की आंकाक्षाओं की खाली जगह को भी भरता रहा है. साथ ही सियासी पार्टियों को भी लगता है कि अगर सुप्रीम कोर्ट मजबूत रहा तो सेना के मुकाबले देश में कोई तो ऐसी संस्था होगी, जिसकी ओर वो खुद भी देख सकते हैं. वैसे पाकिस्तान चाहे जैसा देश हो लेकिन उनके जज आमतौर पर बेहतर नजरिए वाले, कानूनविद और प्रगतिशील विचारों वाले रहे हैं.