वाराणसी के ज्ञानवापी में कथित शिवलिंग कार्बन डेटिंग में आज दूसरे दिन शुक्रवार को भी सुनवाई है। गुरुवार को हाईकोर्ट में ASI की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। जिस पर आज न्यायाधीश विचार करेंगे। आज होने वाली सुनवाई में यह तय हो सकता है कि कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग हो या न हो, या फिर कोर्ट नई तारीख भी दे सकती है।
क्या होती है कार्बन डेटिंग?
कार्बन डेटिंग विधि का इस्तेमाल कर के किसी भी वस्तु की उम्र का पता लगाया जा सकता है। इस विधि के माध्यम से लकड़ी, कोयला, बीजाणु, चमड़ी, बाल, कंकाल आदि की आयु की गणना की जा सकती है। इस विधि से ऐसी हर वो चीज जिसमें कार्बनिक अवशेष होते हैं, उनकी आयु की गणना की जा सकती है। कार्बन डेटिंग की विधि में कार्बन 12 और कार्बन 14 के बीच का अनुपात निकाला जाता है। किसी पत्थर या चट्टान की आयु का पता लगाने के लिए उसमें कार्बन 14 का होना जरूरी होता है।
अमूमन 50 हजार साल पुरानी चट्टानों में कार्बन 14 पाया ही जाता है पर अगर नहीं भी है तो इस पर मौजूद रेडियोएक्टिव आइसोटोप विधि से आयु का पता लगाया जा सकता है। कार्बन डेटिंग के विधि की खोज 1949 में अमेरिका के शिकागो यूनिवर्सिटी के विलियर्ड फ्रैंक लिबी और उनके साथियों ने किया था। इस उपलब्धि के लिए उन्हें 1960 में रसायन का नोबल पुरस्कार दिया गया था। कार्बन डेटिंग की मदद से पहली बार लकड़ी की उम्र का पता लगाया गया था।
हिंदू पक्ष के 6 बड़े दावे
मुकदमा सिर्फ मां श्रृंगार गौरी के दर्शन-पूजन के लिए दाखिल किया गया है। दर्शन-पूजन सिविल अधिकार है और इसे रोका नहीं जाना चाहिए।
मां श्रृंगार गौरी का मंदिर विवादित ज्ञानवापी परिसर के पीछे है। वहां अवैध निर्माण कर मस्जिद बनाई गई है।
वक्फ बोर्ड ये तय नहीं करेगा कि महादेव की पूजा कहां होगी। देश की आजादी के दिन से लेकर वर्ष 1993 तक मां श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा होती थी।
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट में आराजी नंबर-9130 देवता की जगह मानी गई है। सिविल प्रक्रिया संहिता में संपत्ति का मालिकाना हक खसरा या चौहद्दी से होता है।
हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के वुजूखाने में कथित शिवलिंग मिला है। वहीं, मुस्लिम पक्ष का दावा है कि वह शिवलिंग नहीं बल्कि पुराना पड़ा फव्वारा है।
वुजूखाने वाली जगह पर आदिविश्वेश्वर का सबसे पुराना शिवलिंग बताया था।