Mafia Dons of Uttar Pradesh: कहते हैं कि पुलिस की मार से भूत भी या तो भाग जाते हैं या फिर तोते की मानिंद बोलने लगते हैं. ऐसी पुलिस को अगर कोई माफिया डॉन जेल के भीतर बंद रहकर भी मिट्टी में मिलाने की धमकी देने की कुव्वत रखने लगे तो उसको क्या कहेंगे? नाम है राजन तिवारी. वही राजन तिवारी, जिसके नाम की कल तक पूर्वांचल से लेकर बिहार और नेपाल सीमा तक तूती बोला करती थी. जिस राजन तिवारी से खाकी तक खौफ खाती थी. आज जेल की सलाखों में बंद राजन तिवारी नहीं समझ पा रहा है कि वो कानून और यूपी पुलिस से कैसे अपनी जान बचाए?
आइए जानते हैं जरायम की दुनिया में सबसे खतरनाक दौर का सामना कर रहे राजन तिवारी की कहानी. कहानी उस बाहुबली राजन तिवारी की, जिसने गैर-जमानती वारंट के बाद भी 17 साल तक अदालत के सामने पेश होना मुनासिब नहीं समझा. जिसे बीते साल अगस्त महीने में गोरखपुर पुलिस, यूपी एसटीएफ ने बिहार के रक्सौल (हरैया) पुलिस की मदद से घेर लिया. वही राजन तिवारी, जिसके खिलाफ यूपी पुलिस ने 24-25 साल पहले ही गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई कर दी थी. अब ऐसा बेखौफ कुख्यात बाहुबली भी तब से खौफ के साए में जीने को मजबूर है, जबसे योगी आदित्यनाथ की टेढ़ी नजर के इशारे पर उनकी पुलिस ने 61 मोस्ट वॉन्टेड माफियाओं की ब्लैक लिस्ट बनाई है. इसी ब्लैक लिस्ट में एक नाम शामिल है राजन तिवारी का.
भले ही राजन तिवारी पर खाकी और कानून का कोई खौफ असर न करता रहा हो. जबसे उसने जेल के सीखचों में बंद रहते हुए, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन अनिल नागर उर्फ अनिल दुजाना का जो खौफनाक अंत देखा सुना है. उसने राजन तिवारी के होश फाख्ता कर दिए हैं. एक राजन तिवारी ही नहीं उसके जैसे और भी कई तुर्रमखां बनने वाले, यूपी के मोस्ट वॉन्टेड माफिया अनिल दुजाना का अंत देखकर सहमे हुए हैं.
जिस तरह से अपनी 25वीं वर्षगांठ वाले दिन मेरठ में अनिल दुजाना को यूपी एसटीएफ ने ढेर करके, यूपी के 61 मोस्ट वॉन्टेड माफियाओं की बनी ब्लैक लिस्ट में से एक नंबर कम किया है. उसने सूबे के माफियाओं की जिंदगी के लाले डाल दिए हैं. वे अब बदमाशी के बलबूते खाने-कमाने की बजाए जिंदा बने रहने की जद्दोजहद से जूझ रहे हैं. यह सोचकर कि जिंदा बच गए तो बदमाशी तो बाद में भी कर लेंगे. अगर अनिल दुजाना की तरह निपटा दिए गए तो क्या होगा?
माफियाओं के खिलाफ सूबे में बने ऐसे खौफनाक माहौल में बात करें राजन तिवारी की तो हालत उसकी भी खराब है. पुलिस और कोर्ट कचहरियों में मौजूद फाइलें राजन तिवारी के बारे में काफी कुछ चुगली करती हैं. मसलन, साल 1998 में पहली बार कैंट थाने में कुख्यात गैंगस्टर शूटर श्रीप्रकाश शुक्ला, पूर्व विधायक राजन तिवारी, अनुज सिंह सहित 4 माफियाओं के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई हुई थी. उसी साल श्रीप्रकाश शुक्ला की खातिर बनी देश की पहली और यूपी पुलिस की एसटीएफ ने उसे, देश की राजधानी दिल्ली से सटे यूपी के गाजियाबाद जिले के के इंदिरापुरम इलाके में गोलियों से भूनकर निपटा डाला था.
उस दिन उसके साथ बदमाश अनुज भी ढेर हुआ था. राजन तिवारी पर 25 हजार का इनाम हुआ था. दिसंबर 2005 में यूपी की एक कोर्ट ने राजन तिवारी के खिलाफ गैर-जमानती वारंट निकाल दिया. उसके बाद भी वो करीब 24 साल तक कानून के हाथ नहीं लगा. बीते साल अगस्त महीने में उसे यूपी पुलिस ने तब घेर लिया, जब वो नेपााल भागने की जुगाड़ में था.
राजन तिवारी मूलत: यूपी के गोरखपुर जिले के गगहा के सौहगौरा गांव का रहने वाला है. करीब ढाई साल से उसका यूपी और बिहार में कोहराम है. जबसे यूपी पुलिस ने उसके ऊपर दबाव बनाया तभी से, वो यूपी को छोड़कर पूर्वी चंपारण (बिहार) इलाके में छिपने चला गया. राजन तिवारी का नाम सबसे ज्यादा तब उछला, जब उसने कुख्यात गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला का दामन थामा. यह बात है 1990 के दशक के मध्य की.
यह वही राजन तिवारी है, जिसका नाम यूपी के महाराजगंज की लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से विधायक रहे वीरेंद्र प्रताप शाही पर हमले में भी आया था. वीरेंद्र प्रताप शाही पर हुए हमले में श्रीप्रकाश संग राजन तिवारी का नाम भी आया था. हालांकि साल 2014 आते-आते राजन तिवारी को वीरेंद्र प्रताप शाही के मुकदमे से कोर्ट ने बरी कर दिया था. यह क्राइम कुंडली उसी मोस्ट वॉन्टेड सफेदपोश माफिया डॉन की है जो, कभी गोविंदगंज विधानसभा से विधायक रह चुका है.
यूपी को छोड़कर राजन तिवारी जैसे ही बिहार के पूर्वी चंपारण में पहुंचा तो उसके खौफ का सिक्का वहां भी चलने लगा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक तो इसका नाम कई साल पहले बिहार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद के कत्ल में भी खूब उछला था. उस मामले में राजन तिवारी को निचली अदालत ने मुजरिम करार देते हुए उम्रकैद की सजा मुकर्रर कर दी, जिसमें बाद में उसे पटना हाईकोर्ट ने बरी कर दिया. राजन तिवारी का नाम माकपा विधायक अजीत सरकार हत्याकांड में भी खूब उछल चुका है. बाद में पटना हाईकोर्ट से उसमें भी वो बरी कर दिया गया. इस हत्याकांड में आरोपी रहे पप्पू यादव ने कई साल जेल काटी.
राजन तिवारी के बारे में कहा जाता है कि उसने, अपराध और राजनीति का जबरदस्त “कॉकटेल” बना रखा है. जिसके चलते वो साल 2004 में लोकसभा में पहुंचने के लिए भी भाग्य आजमा चुका है. साल 2016 में उसने बिहार में रहते हुए ही बीएसपी (बहुजन समाज पार्टी) ज्वाइन कर ली. मगर मतलब परस्त राजन तिवारी ने मौका देखते ही साल 2019 में लोकसभा चुनाव से ऐन टाइम पहले लखनऊ में भाजपा ज्वाइन कर ली. हालांकि, तुरंत ही बवाल कटने पर उसे बीजेपी ने साइड लाइन पर कर दिया.
यह अलग बात है कि जिस बीजेपी की सीढ़ी पर चढ़कर ‘कद्दावर नेता’ बनने की प्रबल इच्छा हमेशा राजन तिवारी के दिल-ओ-जेहन में बलबती रही. उसी बीजीपी में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने दूसरे कार्यकाल में, राजन तिवारी की मैली हसरतों के ताबूत में कीलें ठोंकना शुरू कर दीं. उसे अपने 61 मोस्ट वॉन्टेड माफियाओं की काली सूची में नामजद करके.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ समय पहले गोरखपुर जोन के अपर पुलिस महानिदेशक अखिल कुमार ने इसकी क्राइम कुंडली मंगवाई थी. तब पता चला कि 8 से ज्यादा तो इसके ऊपर कत्ल के ही मुकदमे हैं. इसके अलावा बाकी बची करीब 35-40 मुकदमों की संख्या में अपहरण, रंगदारी वसूली से लेकर अन्य तमाम संगीन धाराएं लगी थीं. अब बीते साल अगस्त में उसे 2005 के एक गैर-जमानती वारंट के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया.
अगर राजन तिवारी के काले-पीले इतिहास के और भी ज्यादा पुराने पन्नों को पलटें तो पढ़ने को मिलता है कि वो दो भाइयों के साथ गोरखपुर में रहता था, वहीं से उसने पढ़ाई की. गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव के दौरान अध्यक्ष प्रत्याशी के समर्थन में राजन ने जमकर बवाल काटा था. मगर, अपराध की दुनिया में उसकी खुलकर चर्चा तब हुई हुई थी, जब 24 अक्टूबर 1996 को गोरखपुर कैंट से विधायक रहे वीरेंद्र प्रताप शाही हत्याकांड में उसका नाम आया