New Delhi: आसमानी बिजली को अपने अंदर कैसे समा लेता है तड़ित चालक? किस जगह पर लगाना होता है सबसे सुरक्षित?

New Delhi: आसमानी बिजली को अपने अंदर कैसे समा लेता है तड़ित चालक? किस जगह पर लगाना होता है सबसे सुरक्षित?

नई दिल्ली: बारिश के समय बिजली गिरने की घटनाएं आम हो जाती है. इससे कई लोगों की जान भी चली जाती है. इससे बचने के लिए लोग घरों या दफ्तरों में तड़ित चालक (Lightning Conductor) लगवाते हैं. क्योंकि, तड़ित चालक आसमानी बिजली से नुकसान होने से बचा जा सकता है. ऐसे में आज हम यहां जानेंगे कि ये काम कैसे करता है और इसे किस जगह पर लगाना चाहिए. साथ ही ये भी जानेंगे कि इसे घर पर लगवाने में कितना खर्च आता है.

बारिश में बिजली गिरने की वजह से न केवल इंसानों बल्कि मवेशियों और पेड़ों को भी नुकसान पहुंचता है. ऐसे किसी भी संभावित हादसे से बचने के लिए तड़ित चालक या लाइटनिंग रॉड लगवाना एक बेहतर ऑप्शन होता है. इसे आसानी से घर, मंदिर, भवन, दफ्तर या किसी भी इमारत में लगाया जा सकता है.

क्या होता है तड़ित चालक और ये कैसे करता है काम?

लाइटनिंग कंडक्टर एक ऐसा डिवाइस है जिसका उपयोग इमारतों को बिजली गिरने के प्रभाव से बचाने के किया जाता है. लाइटनिंग रॉड कॉपर की बनी रॉड होती है और ये दो हिस्सों में आता है. इसे भवन या घर निर्माण के दौरान दीवारों में इंस्टॉल किया जाता है. इसे लगाने की सही जगह घर या भवन की छत होती है और ये बिल्डिंग से भी ऊंचाई पर होता है.

इस रॉड का ऊपरी हिस्सा नुकीला या त्रिशूल के आकार का होता है और नीचे का हिस्सा मोटा होता है. इसे तारों के जरिए अर्थिंग कर गहरे जमीन में गाड़ दिया जाता है. ध्यान रहे कि ऐसी जगह पर नमी हो. नमी न होने पर गड्ढे को आपको मिट्टी और एक कैमिकल कमाउंड से भरना होता है. जब आसमानी बिजली गिरती है तो ये कंडक्टिव पाथ बनाता है, जिससे ये ऊपर से हाई वोल्टेज को अपने अंदर समा लेता है. इससे बिजली सीधे जमीन में चली जाती है. इसे सार्वजनिक जगहों पर भी लगवाया जाता है.

यानी इसका हिस्सा हवा में होता है और दूसरा जमीन के अंदर गहरे गड्ढे में होता है. रॉड इलेक्ट्रिक चार्ज को जमीन में ट्रांसफर होने के लिए एक आसान रास्ता देता है. इस प्रक्रिया को अर्थिंग कहा जाता है. ये कंडक्टर इंडक्शन के सिद्धांत पर काम करता है. जब एक चार्ज्ड बादल बिल्डिंग के पास से होकर गुजरता है, तब इंडक्शन प्रोसेस के जरिए कंडक्टर बादल के विपरीत चार्ज हो जाता है. फिर ये कलेक्टेड चार्ज अर्थिंग सिस्टम के जरिए धरती में चले जाते हैं.


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yhfee@chitthi.in, 10 June 2023

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