ये भारत में बसे सिखों की समझदारी ही कही जाएगी कि भारत में पूरी तरह शांति है जबकि कुछ खालिस्तान समर्थकों द्वारा भारत के बाहर खुराफात जारी है। भारत के बाहर कुछ जगह मंदिरों पर खालिस्तान समर्थक नारे लिखे जा रहे हैं। खालिस्तान के बैनर लगाए जा रहे हैं, भारत में जहां खालिस्तान बनाने की मांग चल रही है, वहां सब शांत है। पंजाब पुलिस ने आठ मार्च को अमृतपाल के खिलाफ कार्रवाई की। हालांकि अमृतपाल पुलिस गिरफ्त से निकल भागा, फिर भी पुलिस टीम ने न तो अतिरिक्त बल प्रयोग किया और न ही राज्य का माहौल बिगड़ने दिया। धीरे-धीरे अमृतपाल के करीबियों को गिरफ्त में लेते रहे और उसके चारों ओर शिकंजा कसते रहे। कुछ समय में उसके सारे विकल्प खत्म हो गए। केवल केंद्रीय एजेंसियों ने हर कदम पर पंजाब पुलिस के साथ सहयोग किया बल्कि राज्य और केंद्र सरकारों के बीच भी जबरदस्त तालमेल नजर आया। इसी के कारण वारिस पंजाब दे के प्रमुख अमृतपाल सिंह को पंजाब पुलिस ने 36 दिन की फरारी के बाद मोगा जिले में रोडे गांव के गुरुद्वारे से रविवार सुबह अरेस्ट कर लिया। इसके बाद पंजाब पुलिस उसे भठिंडा के एयरफोर्स स्टेशन ले गई। वहां से उसे असम ले जाया गया। उसने 23 फरवरी को अपने एक समर्थक की रिहाई के लिए पंजाब के अमृतसर जिले में अजनाला पुलिस थाने पर हमला किया था। उसके बाद से वह पुलिस के रडार पर आ गया था। 18 मार्च को पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी के लिए घेराबंदी की, लेकिन वह फरार हो गया था।
आठ मार्च को अमृतपाल की घेराबंदी और उसके फरार होने के बाद भारत के बाहर कई जगह खालिस्तान समर्थकों ने भारतीय दूतावासों पर हंगामें किए। लेकिन पंजाब और केंद्र सरकार के एकजुट प्रयास और पंजाब और भारत में बसे सिखों की समझदारी के कारण भारत में कही कोई विरोध नही हुआ, हांलाकि अमृतपाल की गिरफ्तारी को लेकर पंजाब सरकार ने व्यापक तैयारी की थीं। इतना ही नहीं कुछ देशों खालिस्तान के समर्थन में भारतीय दूतावास पर किए जा रहे प्रदर्शन का विरोध हुआ। अच्छा यह रहा कि प्रदर्शन वालों का सिख समाज इस आंदोलन के पीछे की कहानी जान गया है। वह यह जान गया है कि इस आंदोलन को बढ़ाने के पीछे पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था आईएसआई का हाथ है। यही कारण है कि वहां का सिख समाज इन आंदोलनकारियों के विरोध में उतर आया। उसने उन्हीं जगह पर भारत के समर्थन और खालिस्तान के विरोध में प्रदर्शन किया, जहां खालिस्तान के समर्थन में प्रदर्शन हुए थे। नई दिल्ली में ब्रिटिश हाई कमीशन के बाहर सिखों ने खालिस्तानियों के खिलाफ बैनर-पोस्टर लहराए और नारेबाजी की। इसके साथ ही कहा गया कि भारत हमारा स्वाभिमान है। इन सिखों के मुताबिक- तिरंगे का अपमान किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ऐसा ही सैन फ्रांसिस्को में हुआ!
नई दिल्ली में बड़ी तादाद में सिख ब्रिटिश हाई कमीशन के बाहर जुटे और खालिस्तानियों की हरकत का विरोध किया। उधर, अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में इंडियन कॉन्स्यूलेट पर हमला किया गया। इसका भी भारतीयों ने विरोध किया। विदेशों में बैठे कुछ खालिस्तान के पैरोकार भारत में अपनी दाल न गलती देख विदेशों में अपनी झुंझलाहट निकाल रहे हैं। रात को चोरी छिपे दूसरे कुछ देशों के मंदिरों का अपना निशाना बना रहे हैं।वे ये नही सोच रहे कि उनकी इस नादानी पूर्ण कार्रवाई से सिखी को ही नुकसान पंहुच रहा है । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 23 मई को प्रस्तावित यात्रा से पहले एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया में हिंदू मंदिरों को निशाना बनाया गया है। खालिस्तानी समर्थकों ने शुक्रवार को पश्चिमी सिडनी के उपनगर रोज हिल में स्थित श्री स्वामीनारायण मंदिर पर हमला किया है। खालिस्तानी समर्थकों ने मंदिर की दीवार पर स्प्रे पेंट से मोदी विरोधी नारे लिखे हैं। खालिस्तान समर्थक ये नही सोच रहे कि वे क्या कर रहे हैं। उससे सिखी का कितना नुकसान हो रहा है। हिंदू और सिख एक हैं। सिख धर्म की स्थापना मुस्लिम शासकों से हिंदुओं की रक्षा के लिए सिख गुरुओं ने की थी।उसी का परिणाम यह है कि बड़ी तादाद में हिंदू गुरुद्वारों में जाकर माथा टेकतें हैं। ये मंदिरों पर नारे लिखने वाले यह नही सोच रहे कि इन खालिस्तान समर्थकों की हिंदू मंदिरों पर लिखे जा रहे नारों और तोड़फोड़ से हिंदू नाराज हो जाएगा। वह गुरुद्वारों में जाने से बचने लगेगा।ऐसा होने से सिखी का ही नुकसान होगा। हिंदू और सिखों में दूरी बढेगी। अभी दिंसबर तक लेखक अमेरिका में था। लेखक ने अपने बेटे से वहां गुरुद्वारे में जाने की इच्छा जताई। बेटे के मित्र ने कहा कि कहां जा रहे हैं अंकल। वहां से खालिस्तान को बढ़ावा मिल रहा है। हांलाकि बेटे के दोस्त की बात मेरे मन में नही उतरी, क्योंकि अमृतपाल प्रकरण को लेकर सिख समाज ने खुद ही साबित कर दिया कि वह इसका पक्षधर नही है। विदेशों में भी खालिस्तान समर्थकों का सिखों ने ही विरोध किया। एक बात साफ है कि पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था चाहती है कि हिंदू और सिखों में दूरी बढ़े, इन कुछ खालिस्तान समर्थकों के प्रयास से कुछ समय के लिए दूरी हो सकती हैं, किंतु सदा के लिए हिंदू और सिखों को अलग नही किया जा सकता। ये दोनों आपस में मिले-जुले हैं।