कर्नाटक विधानसभा चुनाव के 224 सीटों के लिए वोटिंग जारी है। कर्नाटक में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा की जनता दल (सेक्युलर) के बीच त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है। हर चुनाव की तरह कर्नाटक के रण में बयानों के तीर जमकर एक दूसरे पर चलाए गए। चाहे वह दूध और हल्दी हो, सांप और विषकन्या, या बजरंग बली और बजरंग दल जैसे मुद्दे इस चुनाव में प्रमुखता से उभर कर सामने आए हैं। ऐसे में आपको इस बार के कर्नाटक में कैसा रहा चुनावी अभियान और एबीसीडीई फैक्टर से कितना प्रभावित होगा मतदान, इसके बारे में बताएंगे।
दूध पर संग्राम
अमूल बनाम नंदिनी डेयरी की लड़ाई तो हर किसी को याद होगा। चुनाव प्रचार की शुरुआत में ही सत्तारूढ़ बीजेपी और कांग्रेस के बीच देसी डेयरी ब्रांड नंदिनी को लेकर भिड़ंत हो गई थी। भाजपा, विपक्षी कांग्रेस और जद (एस) के बीच वाकयुद्ध छिड़ गया। विपक्ष ने कहा कि राज्य में अमूल के प्रवेश से कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के डेयरी ब्रांड नंदिनी को खतरा होगा। मामला इतना बढ़ गया कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी आइसक्रीम खरीदने के लिए नंदिनी के एक आउटलेट पर पहुंच गए और ब्रांड को कर्नाटक का गौरव करार दिया। बाद में, भाजपा ने अपने घोषणापत्र में राज्य में गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के प्रत्येक परिवार को 0.5 लीटर नंदिनी दूध देने का वादा करके एक मास्टरस्ट्रोक खेला।
जहरीला सांप
आगे चलकर दूध के मुद्दे पर सांप का जहर भारी पड़ गया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लियार्जुन खड़गे ने पीएम मोदी को जहरीला सांप कह दिया। कांग्रेस प्रमुख ने कहा कहा था कि मोदी एक जहरीले सांप की तरह हैं। अगर आपको लगता है कि यह जहर है या नहीं और आप इसे चाटते हैं, तो आप मर जाएंगे। फिर क्या था खुद पर हुई टिप्पणी को पीएम मोदी ने लपकते हुए इसे अपने पक्ष में मोड़ लिया। पीएम मोदी ने एक चुनावी रैली में कहा, उन्होंने मुझे सांप कहा। सांप भगवान शिव के गले में लिपटा रहता है। मैं इस देश और कर्नाटक के लोगों को शिव मानता हूं। इसलिए मैं इस (खड़गे के) बयान का स्वागत करूंगा। कर्नाटक के भाजपा विधायक बासनगौड़ा द्वारा कांग्रेस की पूर्व प्रमुख सोनिया गांधी को विषकन्या (जहरीली युवती) कहे जाने के बाद राजनीतिक ताने और अधिक तीखे हो गए।
हल्दी का सेवन
कोविड-19 महामारी के दौरान इम्युनिटी बूस्टर के रूप में हल्दी को बढ़ावा देने के लिए उनका मज़ाक उड़ाने का आरोप लगाते हुए पीएम मोदी ने कांग्रेस पर भी जमकर निशाना साधा। पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने मेरा मज़ाक उड़ाया जब मैंने कहा कि कोविड के दौरान हल्दी एक इम्युनिटी बूस्टर है। उन्होंने मेरा नहीं बल्कि हल्दी किसानों का अपमान किया है। बजरंग बली पर युद्ध
बजरंग बली
कांग्रेस द्वारा अपना चुनावी घोषणापत्र जारी करने और विश्व हिंदू परिषद की युवा शाखा बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का वादा करने के बाद चुनाव प्रचार ने एक बड़ा मोड़ ले लिया। कांग्रेस द्वारा अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी करने के कुछ घंटों बाद, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने के अपने वादे को लेकर उस पर जमकर निशाना साधा। पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस भगवान हनुमान की पूजा करने वालों को बंद करने की कोशिश करार दिया।
A) एंटी इनकमबेंसी: कर्नाटक को बरकरार रखना भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण सवाल के रूप में इसलिए भी देखा जा रहा है क्योंकि 1985 के बाद से कभी भी कोई सत्तारूढ़ पार्टी सत्ता में नहीं लौट सकी है। भाजपा ने इस चुनाव में युवाओं पर भरोसा जताया है और बड़ी संख्या में ऐसे उम्मीदवारों को टिकट भी दिया है। अपने इस प्रयास में भाजपा ने अपने कई वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी भी की। पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टर जैसे कुछ नेताओं ने तो विद्रोह करते हुए कांग्रेस का दामन तक थाम लिया। दक्षिणी राज्य में हार भाजपा के लिए एक झटका भी हो सकती है क्योंकि वह हर चुनाव पूरे दमखम से लड़ती रही है। हालांकि ध्यान देने वाली बात यह है कि भाजपा को 2018 के राज्य विधानसभा चुनाव में भी बहुमत नहीं मिला था और कांग्रेस और जद (एस) ने मिलकर सरकार बनाया था।
B) बजरंग बली फैक्टर: कांग्रेस के घोषणापत्र में बजरंग दल और पहले से ही प्रतिबंधित कट्टरपंथी इस्लामी निकाय पीएफआई जैसे संगठनों पर प्रतिबंध सहित कड़ी कार्रवाई, और मुसलमानों के लिए चार प्रतिशत कोटा बहाल करने जैसे वादों ने भाजपा को इन्हें अपने पक्ष में भुनाने का मौका दे दिया। इसी उम्मीद में भाजपा ने हिंदुत्व के अपने मुद्दे को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दो मई को कांग्रेस का घोषणापत्र जारी होने के बाद भाजपा ने दोनों मुद्दों को चुनाव के केंद्र में ला दिया। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्षी पार्टी पर आरोप लगाया कि वह भगवान हनुमान और उनकी महिमा के नारे लगाने वालों को ‘बंद’ करने की कोशिश कर रही है। मोदी की रैलियों में ‘बजरंग बली की जय’ के नारे बुलंद होने लगे तो भाजपा नेताओं ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उस पर ‘तुष्टिकरण की राजनीति’ के आरोप लगाए।
C) कास्ट फैक्टर: कर्नाटक चुनाव में इस बार जाति फैक्टर सबसे अहम भूमिका निभा सकता है। जो अपने-अपने कोर वोटर को वोटिंग के दिन बूथ तक पहुंचाने में सफल होगा वही अंतिम विजेता के रूप में उभरेगा। कांग्रेस ने लिंगायत वोट में सेंध लगाने की पूरी की, जो बीजेपी का कोर वोट है। कर्नाटक ने 2017-18 में की गई जातिगत जनगणना के आंकड़ों को जारी नहीं किया गया है। लेकिन गैर आधिकारिक अनुमानों के अनुसार लिंगायत मतदाता सूबे की आबादी का 14-18 फीसदी हिस्सा हैं और वोक्कलिगा समुदाय के मतदाता कुल आबादी के 11-16 फीसदी हैं।
D) देवगौड़ा फैक्टर: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सभी की नजरें पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा नीत जनता दल सेक्यूलर पर टिकी है। ये चुनाव उनके राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई होगी या पार्टी एक बार फिर से किंग या किंगमेकर जैसा कि 2018 में त्रिशंकु जनादेश की स्थिति में बनकर उभरने में कामयाब हो पाएगी? दलबदल और आंतरिक कलह से त्रस्त एक पारिवारिक पार्टी होने की छवि के साथ देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी ने एक तरह से अकेले अपने दम पर राज्य भर में जेडीएस के लिए प्रचार का प्रबंधन किया है। इस बार पार्टी ने कुल 224 सीट में से कम से कम 123 सीट जीतकर अपने दम पर सरकार बनाने के लिए मिशन 123 का एक महत्वकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है।
E) इलेक्शन मैनेजमेंट: कर्नाटक विधानसभा चुनाव चुनावी प्रबंधन का भी माना जाता है। राज्य में तीनों राजनीतिक दलों के पास मजबूत काडर है। राज्य में वोटिंग का ट्रेंड बहुत अनियमित होता रहा हैछ बैंगलुरु जैसे शहर में जहां 50 फीसदी से भी कम वोटिंग हो जाती है वहीं गांवों में यह आंकड़ा 70 फीसदी तक पहुंच जाता है। ऐसे में इस बार वोटिंग प्रतिशत बहुत बड़ी भूमिका हो निभा सकती है।