फिल्म द केरल स्टोरी के डिस्क्लेमर में इसे एक काल्पनिक संस्करण बताया गया है, इसलिए फिल्म को लेकर जिस तरह की राजनीति की जा रही है वह सर्वथा गलत है। पश्चिम बंगाल सरकार ने इस फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया है तो कुछ भाजपा शासित राज्यों में इसे टैक्स फ्री घोषित कर दिया गया है वहीं कुछ राज्यों में इस फिल्म पर अघोषित प्रतिबंध की वजह से सिनेमाघर मालिक इस फिल्म को लगाने से कतरा रहे हैं। सवाल उठता है कि यदि अब राजनीतिक दल या राज्यों के मुख्यमंत्री तय करेंगे कि कौन-सी फिल्म दिखाई जाये या कौन-सी नहीं तो केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को बनाये रखने का औचित्य ही क्या है?
भारत एक लोकतांत्रिक देश है, यहां सभी को अभिव्यक्ति की पूरी आजादी है इसलिए जब कोई फिल्म केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से प्रमाणित होकर प्रदर्शन के लिए सिनेमाघरों पर लगी है तो फिल्म के प्रदर्शन को बाधित करना, फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा देना, फिल्म देखने आये लोगों को हिरासत में ले लेना, फिल्म के निर्माता को सार्वजनिक रूप से फांसी देने की मांग करना सर्वथा अनुचित है। सवाल यह भी उठता है कि जब उच्चतम न्यायालय और केरल उच्च न्यायालय ने भी फिल्म के प्रदर्शन को हरी झंडी दे दी फिर भी कुछ लोग आपत्ति जता कर क्या न्यायालय की अवमानना नहीं कर रहे हैं? सवाल यह भी उठता है कि आखिर जब भी देश में किसी सामाजिक बुराई के खिलाफ लड़ने या जागरूक करने की बात होती है तो उसका विरोध क्यों होने लगता है? तीन तलाक और बहुविवाह रोकने की बात हो, धर्म के आधार पर आरक्षण खत्म करने की बात हो, लव जिहाद विरोधी कानून बनाने की बात हो, जबरन धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने की बात हो, समान नागरिक संहिता लाने की बात हो, सीएए के नियम और एनआरसी लाने की बात हो, जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की बात हो...तब एकदम से कुछ लोगों को मिर्ची क्यों लगने लगती है?
बहरहाल, जो लोग केरल की स्टोरी का विरोध कर रहे हैं उनको हम बता दें कि उनके विरोध ने इस फिल्म को पहले ही हफ्ते में सुपरहिट करवा दिया है। इस फिल्म ने समाज में खासकर लड़कियों में जागरूकता पैदा करने का जो काम किया है यह उसी की परिणति है कि सिनेमाघरों में जय श्री राम के नारे लग रहे हैं। वैसे तो भाजपा शासित कुछ राज्यों ने इस फिल्म को टैक्स फ्री घोषित कर दिया है लेकिन जरूरत इस बात की है कि इसे हर राज्य में टैक्स फ्री घोषित किया जाये ताकि किसी और लड़की को उस पीड़ा से ना गुजरना पड़े जिससे केरल की लड़कियां गुजरी थीं।
इसके अलावा, जिस तरह से कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों के नेता इस फिल्म का विरोध कर रहे हैं वह दर्शा रहा है कि जैसे द कश्मीर फाइल्स का विरोध किया गया था उसी तर्ज पर द केरल स्टोरी के विरोध की भी पटकथा पहले ही लिख ली गयी थी। द केरल स्टोरी का विरोध यह भी दर्शाता है कि टूलकिट गैंग की सोच में कितना विरोधाभास है। अभी कुछ दिनों पहले गुजरात दंगों पर एक एजेंडा के तहत बनाई गयी बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को टूलकिट गैंग से जुड़े लोग जबरन हर विश्वविद्यालय और हर मोहल्ले में दिखाने पर आमादा थे लेकिन अब द केरल स्टोरी पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। देखा जाये तो केरल में आईएस विचारधारा की उपस्थिति और उसके पीड़ितों के होने की बात से इंकार करना सच को झुठलाने जैसा है। हैरानी इस बात पर भी है कि देशभर में जहां यह फिल्म पूरे उत्साह के साथ देखी जा रही है वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तुष्टिकरण की राजनीति के चलते द केरला स्टोरी के प्रदर्शन पर रोक लगाकर देश में एक नई बहस छेड़ दी है। इसलिए भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात वरिष्ठ अधिवक्ता श्री अश्विनी उपाध्याय ने कहा भी है कि अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देने वाले आखिर अभिव्यक्ति की आजादी क्यों छीनने लग गये हैं?