विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा कि कोविड-19 अब अंतरराष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल नहीं रह गया है और अब ध्यान संक्रमण के दीर्घकालिक प्रबंधन पर होगा 31 दिसंबर, 2019 को चीन द्वारा वुहान से बिना किसी ज्ञात कारण के निमोनिया के मामलों की रिपोर्ट के बाद दुनिया के सामने नया वायरल संक्रमण आया था। जनवरी 2020 के अंत तक लगभग 10,000 मामले सामने आए थे, जिनमें 19 अन्य देशों में 100 से अधिक मामले शामिल थे। डब्ल्यूएचओ ने अपने उच्चतम स्तर की सतर्कता बढ़ाई और संक्रमण को अंतर्राष्ट्रीय चिंता का एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल करार दिया, एक पदनाम जो तीन वर्षों से अधिक समय तक बना रहा।
WHO ने कोविड-19 को महामारी क्यों घोषित किया?
सार्स-सीवोवी-2 एक नया वायरस था जिसके बारे में शुरुआती दिनों में बहुत कम जानकारी लोगों के पास थी। बाद में, जितने रोगी निमोनिया की शिकायत के साथ अस्पतालों में पहुँचे और उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत पड़ने लगी, फिर डॉक्टरों और शोधकर्ताओं ने पाया कि संक्रमण ने इम्युनिटी सिस्टम को बुरी तरह से प्रभावित किया। देखते ही देखते प्रतिरक्षा कोशिकाओं ने रोगी के अपने अंगों पर हमला करना शुरू कर दिया। इसने बुजुर्गों में और मधुमेह जैसी बीमारी से पीड़ित लोगों को तेजी से अपनी चपेट में लेना शुरू कर दियाहै। प्रतिष्ठित प्रोफेसर, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया और कोविड-19 टास्क फोर्स के पूर्व सदस्य डॉ के श्रीनाथ रेड्डी ने कहा कि किसी भी बीमारी को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित करने के लिए तीन शर्तें होती हैं। एक तो यह कई देशों में फैल रहा हो। दूसरा कि गंभीर बीमारी की वजह से अस्पताल में भर्ती होने और लोगों की मौतों का कारण बन रहा हो। तीसरा, बीमारी के कारण स्वास्थ्य प्रणालियों पर गंभीर असर पडे। कोविड-19 ने 2020 और 2021 में तीनों शर्तों को पूरा किया। भारत में अब तक कोविड-19 के 4.43 करोड़ मामले और 5.3 लाख मौतें हुई हैं। वैश्विक स्तर पर, संक्रमणों की संख्या 76.5 करोड़ को पार कर गई है और 69.2 लाख मौतें हुई हैं।
WHO ने अब क्यों हटा दिया है?
पिछले तीन वर्षों में डॉक्टरों और शोधकर्ताओं ने बहुत कुछ पता लगाया है। संचरण के तरीके, जिन्हें गंभीर बीमारी और मृत्यु का सबसे अधिक खतरा है। बेहतर, सस्ता और पॉइंट-ऑफ-केयर डायग्नोस्टिक्स; एक उपचार प्रोटोकॉल जो काम करता है; वायरल प्रतिकृति को रोकने के लिए दवाएं जो रोग की गंभीरता को कम करने में मदद कर सकती हैं। इन सबसे सबसे महत्वपूर्ण बात, वे कोविड रोधी टीके जो गंभीर बीमारी को रोक सकते हैं। सरकारों ने हेल्थ इंफ्रास्ट्रच्चर सिस्टम को मजबूत किया है और टीकाकरण अभियान शुरू किया है। भारत में 12 वर्ष से अधिक आयु के 90% से अधिक लोगों को उनकी दो प्राथमिक खुराकें मिल चुकी हैं। चूंकि बहुत से संक्रमित और टीका लगाए गए थे, जनसंख्या ने एक ड्यूल इम्युनिटी विकसित कर ली जो भविष्य में गंभीर बीमारी के खिलाफ बेहतर सुरक्षा प्रदान करने के लिए लाभदायक है।
भारत में महामारी कैसे फैली?
भारत ने कोविड-19 संक्रमण की तीन अलग-अलग लहरें देखीं। पहली लहर 2020 के मध्य से उस वर्ष के सितंबर के आसपास आई। यह तब था जब डॉक्टर हमारे उपचारों का अनुमान लगा रहे थे और इस दौरान दिशा-निर्देशों को बार-बार बदला भी जा रहा था। परीक्षण पुणे में सिर्फ एक प्रयोगशाला से बढ़कर देश भर में सैकड़ों केंद्रों तक पहुंच गया है। अप्रैल-मई 2021 में दूसरी लहर में छोटी अवधि में बड़ी संख्या में मामले और मौतें हुईं। कोरोना का ये प्रकोप डेल्टा वेरिएंट द्वारा संचालित किया गया था जिसके कारण फेफड़ों पर गहरा प्रभाव पड़ा और इसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन और वेंटिलेटर सपोर्ट की आवश्यकता वाले लोगों से अस्पताल पटे पड़े नजर आए। मेडिकल ऑक्सीजन की भारी कमी थी। ओमिक्रॉन वैरिएंट द्वारा संचालित तीसरी लहर, मामलों की संख्या और अस्पताल में भर्ती होने और मौतों के मामले में बेहद कम रही। जनवरी 2022 के मध्य में एक सप्ताह में 21 लाख मामले चरम पर थे, लेकिन मौतें लगभग 7,800 ही थीं। भारत ने तब से मामलों की संख्या में उतार-चढ़ाव देखा है, लेकिन देश भर में कोई लहर नहीं है। अस्पताल और स्वास्थ्य व्यवस्था को तैयार रखा गया है। स्थिति पर नजर रखने के लिए लगातार परीक्षण और जीनोमिक सीक्वेंसिंग की जा रही है। अप्रैल के माध्यम से मामलों में वृद्धि हुई, एक दिन में 12,000 से अधिक मामले सामने आए। हालाँकि, संख्या फिर से कम होने लगी।
WHO की घोषणा रोग प्रबंधन को कैसे बदलेगी?
कोई लॉकडाउन नहीं है, अंतर्राष्ट्रीय यात्रा, रेस्तरां और सिनेमाघरों में पाबंदियां भी समापप्त। देखा जाए तो पिछले कुछ समय से रोकथाम और नियंत्रण उपायों की आवश्यकता नहीं रही है। इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की घोषणा से जमीनी स्तर पर बहुत कुछ नहीं बदलेगा। फिलहाल आम आदमी पर इसका कोई व्यावहारिक प्रभाव नहीं है, लेकिन निगरानी बंद हो सकती है या बहुत कम हो सकती है। हमें निगरानी जारी रखने की जरूरत है। एक संभावना मौजूद है, हालांकि बहुत कम है, कि वायरस अधिक गंभीर बीमारी पैदा करने के लिए उत्परिवर्तित हो सकता है।
बीच-बीच में सर्विलांस जरूरी
कम्युनिटी मेडिसिन एक्सपर्ट डॉक्टर जुगल किशोर का कहना है कि अब धीरे-धीरे राज्य सरकार और हेल्थ डिपार्टमेंट को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए और अपने-अपने राज्यों की स्थिति के अनुसार इस पर काम करना चाहिए। हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि बीच-बीच में सर्विलांस जारी रखना चाहिए, ताकि अगर कुछ नया आए तो उस पर हमारा ध्यान जल्दी जा सके।