मैसुरु: विदेश मंत्री एस. जयशंकर विरोधियों को तगड़ा और तत्काल जवाब देने के लिए जाने जाते हैं। विरोधी घरेलू स्तर पर हों या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, इससे जयशंकर को कोई फर्क नहीं पड़ता। कर्नाटक में इस समय विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार चल रहा है। सभी पार्टियों के नेता प्रचार कर रहे हैं और संवाद सत्रों में हिस्सा ले रहे हैं। इसी क्रम में भाजपा की ओर से विदेश मंत्री एस. जयशंकर मैसुरु में आयोजित मोदी सरकार की विदेश नीति पर आयोजित एक संवाद सत्र में हिस्सा लेने के लिए पहुँचे थे। यहां उन्होंने राहुल गांधी और शशि थरूर संबंधी सवालों के ऐसे जवाब दिये जिससे कांग्रेस नेताओं के छक्के छूट गये।
हम आपको बता दें कि कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ चुके शशि थरूर जोकि मनमोहन सरकार के दौरान विदेश राज्य मंत्री भी रह चुके हैं, उन्होंने हाल ही में विदेश मंत्री एस. जयशंकर को सलाह दी थी कि उन्हें थोड़ा कूल रहना चाहिए और हमेशा गुस्से में नहीं भड़के रहना चाहिए। इससे संबंधित सवाल जब जयशंकर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ब्रिटेन स्थित भारतीय दूतावास में लगे तिरंगे झंडे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश हुई तो क्या आपका खून नहीं खौला? उन्होंने कहा कि एक भारतीय होने के नाते अगर विश्व के किसी देश में तिरंगे का अपमान होगा तो क्या आप सहन कर पाएंगे? उन्होंने कहा कि मैं तो बिल्कुल सहन नहीं कर सकता। मेरी स्किन पतली है और अगर आपके देश का कोई अपमान करता है तो हम सभी को ये बात बुरी लगना स्वाभाविक है।
वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर कटाक्ष करते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि वह राहुल गांधी से आग्रह करना चाहते थे कि वह चीन के बारे में मुझे कुछ समझाएं। लेकिन फिर पता चला कि राहुल गांधी खुद ही चीनी राजदूत के संपर्क में हैं। जयशंकर ने कहा कि इसके बाद उन्होंने सोचा कि सीधे मूल स्रोत से ही संपर्क करना बेहतर होगा। उन्होंने दावा किया, ‘‘मैं राहुल गांधी से चीन पर ‘क्लास’ लेने की सोच रहा था लेकिन मुझे पता चला कि वह खुद ही चीनी राजदूत से चीन पर ‘क्लास’ ले रहे हैं।’’ हम आपको बता दें कि जयशंकर राहुल गांधी की इस आलोचना का जवाब दे रहे थे कि विदेश मंत्री को चीनी ख़तरे की सही समझ नहीं है।
मोदी सरकार की विदेश नीति पर आयोजित सवाल-जवाब के एक सत्र को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा कि विदेश में भारत की प्रतिष्ठा कम न हो यह सुनिश्चित करना सभी की सामूहिक ज़िम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन वर्षों में चीन पर काफी गलतबयानी की गयी है। उनसे यह भी पूछा गया कि देश में ही इस तरह की आलोचना से क्या अंतरराष्ट्रीय मंच पर बातचीत करने की भारत की क्षमता पर असर पड़ा है। उन्होंने कहा, ‘‘कुछ मुद्दों पर हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि कम से कम इस तरीके से बर्ताव करें कि विदेश में हमारी सामूहिक स्थिति कमजोर न हो। चीन पर पिछले तीन वर्षों में हमने देखा है कि काफी गलतबयानी हुई है।’’ इस संदर्भ में उन्होंने लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील पर चीन द्वारा निर्मित एक पुल के बारे में उठाए मुद्दों का जिक्र किया और एक उदाहरण दिया। जयशंकर ने कहा, ‘‘विपक्ष ने कहा कि ‘आपने क्षेत्र गंवा दिया है और वे एक पुल बना रहे हैं’ लेकिन सच्चाई यह थी कि उस क्षेत्र में सबसे पहले चीनी 1959 में आए थे और फिर उन्होंने 1962 में उस पर कब्जा जमा लिया।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह चीन द्वारा निर्मित कुछ तथाकथित आदर्श गांवों के मामले में भी हुआ, वे ऐसे इलाकों में बनाए गए जिन्हें हम 1962 या उससे पहले गंवा चुके थे।’’ ऐसे मुद्दों को राजनीतिक रंग देने की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि पूर्व में जो भी हुआ वह ‘‘एक सामूहिक नाकामी या जिम्मेदारी’’ थी। विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘जो कुछ हुआ सो हुआ। यह हमारी सामूहिक नाकामी या जिम्मेदारी थी। मैं इसे राजनीतिक रंग नहीं देना चाहता। मैं असल में चीन पर गंभीर संवाद चाहता हूं।’’ उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण रूप से विदेश नीति भी राजनीति का अखाड़ा बन गयी है।
जहां तक शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक के दौरान पाकिस्तान के खिलाफ उनकी सख्त टिप्पणियों संबंधी सवाल थे तो उनके जवाब में जयशंकर ने इसके लिए पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि उन्होंने ‘‘एससीओ के अलावा बाकी सभी चीजों’’ के बारे में बात की थी। जयशंकर ने कहा, ‘‘अगर आप देखें कि उन्होंने संवाददाता सम्मेलन तथा अन्य साक्षात्कारों में सार्वजनिक तौर पर क्या कहा था, उन्होंने कहीं भी एससीओ के बारे में बात नहीं की। उन्होंने भारत से जुड़ी हर चीज के बारे में बात की।’’ उन्होंने कहा कि जरदारी ने राजनीति के बारे में बात की, कश्मीर, जी20 तथा बीबीसी वृत्तचित्र पर टिप्पणियां कीं। हम आपको याद दिला दें कि जयशंकर ने एससीओ बैठक के दौरान गोवा में जरदारी की टिप्पणियों पर पलटवार करते हुए कहा था कि आतंकवाद के शिकार लोग आतंकवाद पर चर्चा करने के लिए आतंकवाद के अपराधियों के साथ नहीं बैठते हैं।