उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव के प्रथम चरण का चुनाव सम्पन्न हो चुका है। दूसरे और अंतिम चरण में 10 मई को वोट डाले जाएंगे। पहले चरण की बात की जाए तो ऐसा लग रहा है कि बहुजन समाज पार्टी ने कई सीटों पर समाजवादी पार्टी की जीत का गणित बिगाड़ दिया है। बसपा सुप्रीमो मायावती के निकाय चुनाव में मुस्लिम कार्ड खेलने से तो समाजवादी पार्टी को नुकसान होता दिख ही रहा है, इस नुकसान की भरपाई के लिए सचेत अखिलेश ने बसपा को भाजपा की बी टीम बताने का राग अलापना शुरू कर दिया है। एक तरफ बसपा से सपा को चुनौती मिल रही है तो दूसरी ओर सपा प्रमुख अखिलेश यादव पार्टी के भीतर की अंतकर्लह पर भी लगाम नहीं पाए। पार्टी के कई बड़े नेता मतदान से कुछ समय पूर्व तक अखिलेश के खिलाफ बगावत का झंडा उठाये रहे। इसमें संभल के सांसद अतीकुर्रहमान बर्क जैसे नेता शामिल हैं जो मुलायम सिंह के साथ समाजवादी पार्टी के गठन के समय से जुड़े हुए हैं। बर्क का पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में अच्छा खासा दबदबा है, वह पार्टी में आजम खान के कद के नेता हैं। इसके अलावा भी कई जिलों से सपा के बागी उम्मीदवार मैदान में कूद कर सपा का खेल बिगाड़ रहे हैं। यहां तक कि समाजवादी पार्टी के गढ़ इटावा में भी बगावत के सुर गूंज रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में बसपा सुप्रीमो मायावती ने 17 नगर निगमों में से 11 में मुस्लिम मेयर प्रत्याशी उतार कर इस वर्ग में बड़ी पैठ बनाने की कोशिश की है। इसके गहरे राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। समाजवादी पार्टी को सबसे बड़ा डर माय (मुस्लिम और यादव) समीकरण के टूटने का दिख रहा है। इस कारण सपा कुनबा और पार्टी के दिग्गज नेता टेंशन में दिख रहे हैं। यूपी में इस समय नगर निकाय चुनाव की सरगर्मी तेज है। इसके अलावा रामपुर के स्वार और मिर्जापुर के छानबे विधानसभा उप चुनाव में राजनीतिक माहौल गरमाया है। इन तमाम राजनीतिक उठापटक के बीच विपक्षी दलों के बीच वोट बैंक की राजनीति चरम पर है। मुस्लिम वोट बैंक के ध्रुवीकरण को लेकर तमाम विपक्षी दल अपनी रणनीति साधने में जुटे हैं। भारतीय जनता पार्टी की ओर से पसमांदा मुस्लिमों के मुद्दा को छेड़कर एक बड़े वर्ग को साधने की कोशिश की गई है।
निकाय चुनाव में एक बार फिर से यूपी चुनाव 2022 के दौरान भाजपा का दिया 80-20 का नारा भी खासी चर्चा में रहा था। भाजपा की ओर से दावा किया गया था कि 80 फीसदी वोट पार्टी को मिल रहे हैं। 20 फीसदी वोट ही विपक्षी दलों को जाएंगे। विपक्षी दलों की ओर से इस मुद्दे को हिंदू-मुस्लिम वोट बैंक से जोड़कर पेश किया गया। इस बीच यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने 75-25 का नया राग छेड़ दिया है। डिप्टी सीएम ने दावा किया है कि यूपी के 75 फीसदी वोट बैंक भारतीय जनता पार्टी के समर्थन में हैं। 25 फीसदी वोट बैंक तमाम दलों के बीच में बंट रहे हैं। केशव मौर्य का यह भी दावा है कि उन 25 फीसद वोट में से भी जो बंटवारा हो रहा है, उसमें भारतीय जनता पार्टी को वोट मिल रहे हैं। इस पर राजनीति शुरू हो गई है। केशव प्रसाद मौर्य के बयान का एक अलग ही मतलब निकाला जा रहा है।
दरअसल, पिछले दिनों मुस्लिम वोट बैंक को लेकर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के बीच जबरदस्त खींचतान दिखी थी। समाजवादी पार्टी की ओर से लगातार इस वोट बैंक को लुभाने की कोशिश की जा रही है। अखिलेश यादव और डिंपल यादव समेत तमाम पार्टी नेता मुस्लिमों के मुद्दे को जोरदार तरीके से उठा रहे हैं। योगी सरकार के बुलडोजर मॉडल से लेकर एनकाउंटर नीति तक का विरोध कर रहे हैं। वहीं, अखिलेश और डिंपल ने तो बसपा सुप्रीमो मायावती पर हमला कर और उन्हें भाजपा की बी टीम बताकर मुस्लिम वोट बैंक में बिखराव की आशंका के संकेत दे दिए हैं। एक तरफ बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारने में बड़ी दरियादिली दिखाई, वहीं पर समाजवादी पार्टी जो हमेशा मुसलमानों की सबसे आगे रहती है, वह इस बार मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने में अपने पुराने रिकॉर्ड से पीछे नजर आई। सपा ने मेयर पद के लिए मात्र चार मुस्लिम प्रत्याशियों को वोट दिए हैं, यही संख्या कांग्रेस की भी है। कम मुस्लिम प्रत्याशी उतारना समाजवादी की चुनावी रणनीति हो सकती है, लेकिन इस हकीकत को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि अब पहले की तरह मुसलमानों का समाजवादी पार्टी के प्रति विश्वास नहीं रह गया है। समाजवादी पार्टी के कई मुस्लिम नेता अखिलेश यादव से नाराज चल रहे हैं। यह नाराजगी आजम खान से शुरू हुई थी और अब संभल के सांसद शफीकउर रहमान बर्क तक पहुंच गई है। बर्क खुलेआम अखिलेश की आलोचना और बसपा की तारीफ कर रहे हैं। मुरादाबाद के सांसद एसटी हसन भी करीब-करीब बर्क के ही पद चिन्हों पर चलने नज़र आ रहे हैं।
बात मुस्लिम नेताओं तक ही सीमित नहीं है। मुस्लिम वोटर भी अखिलेश की नियत पर शक करने लगे हैं। अतीक अहमद के मामले में कई लोगों को लगता है कि अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भड़काने का काम ना किया होता तो योगी सरकार इतनी सख्त कार्रवाई अतीक अहमद के साथ नहीं करती। अतीक अहमद के जेल में बंद बेटे ने भी एक मैसेज के द्वारा मुस्लिम वोटरों से आह्वान किया था कि वह भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ समाजवादी के लिए भी वोट ना करें। इससे अतीक के परिवार की समाजवादी पार्टी के प्रति नाराजगी समझी जा सकती है। जिसका नुकसान निकाय चुनाव में समाजवादी पार्टी को उठाना पड़ सकता है।
बात कांग्रेस की कि जाए तो यूपी में भाजपा से पहले शहरी इलाके कांग्रेस के गढ़ हुआ करते थे। कांग्रेस निकाय चुनावों में अपने मेयर भी बनाती रहती थी, लेकिन पिछले चुनाव में खाता भी नहीं खोल सकी थी। इतना ही नहीं, नगर पालिका और नगर पंचायत के चुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन कोई खास नहीं रहा था। 2022 के विधानसभा चुनाव में 2.33 फीसदी वोट शेयर पाने वाली कांग्रेस निकाय चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के जरिए अपने खोए हुए सियासी जनाधार को दोबारा पाने की जद्दोजहद में है। उसकी भी पैनी नजर मुसलमानों पर है। कांग्रेस ने शहरी क्षेत्रों में मुस्लिम मतों को साधने के लिए रोजा इफ्तार का आयोजन भी आयोजन किया था। निकाय चुनाव में कांग्रेस ने 23 फीसदी टिकट मुस्लिमों को दिए हैं। नगर निगम की 4 सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं। कांग्रेस ने मुरादाबाद से रिजवान कुरैशी, मेरठ से नसीम कुरैशी फिरोजाबाद से नुजहत अंसारी और शाहजहांपुर से निकहत इकबाल को प्रत्याशी बनाया है। हालांकि, विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी यूपी नहीं आई हैं। ऐसे में देखना है कि कांग्रेस क्या निकाय चुनाव के जरिए वापसी कर पाएगी? उक्त दलों के अलावा ओवैसी की पार्टी ने भी दस नगर निगम में अपने मेयर प्रत्याशी खड़े किए हैं, लेकिन यह जीतने की जगह किसी की हार का कारण भर बन सकते हैं।