दिल्ली: भारत के दो बड़े राज्यों में चुनावी शोर मचा हुआ है. एक उत्तर भारत का राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सूबा उत्तर प्रदेश है, तो दूसरा दक्षिण भारत की राजनीति में बड़ा हिस्सा रखने वाला कर्नाटक. यूपी में निकाय चुनाव को लेकर राजनीतिक माहौल बना हुआ है, तो कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव हैं. दोनों ही चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक दल अपने-अपने नेताओं का मंझे हुए अंदाज में इस्तेमाल कर रहे हैं, खासकर बीजेपी. अगर आज बीजेपी का कोई नेता कर्नाटक में है तो कल वो यूपी में दिखाई देगा.
अब उत्तर भारतीय राजनीति के क्षेत्रीय दलों के नेता भी प्रचार की इस लंबी कूद में हिस्सा लेने लगे हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या बीजेपी की तरह उनकी भी स्थिति दोनों राज्यों में लाभ या हानि पाने की है, या सिर्फ किसी राजनीतिक हलचल को पैदा करने का उनका प्रयास, उन्हें यूपी से कर्नाटक ले जा रहा है. सबसे ज्यादा संशय की स्थिति मायावती ने पैदा की है कि इस कथन को लेकर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाएं या विस्मयादिबोधक.
उत्तर भारत की राजनीति से आगाज कर देश भर में दलितों के प्रतिनिधित्व का जिम्मा लेने वाली मायावती का असली किला तो यूपी ही रहा है, जहां से धीरे-धीरे उनके विलुप्त होने की बातें राजनीतिक पंडित कर रहे हैं. तर्क में यूपी में हुए पिछले चुनावों के नतीजों का हवाला दिया जाता है. हाल ही में उनकी बहुजन समाज पार्टी का राष्ट्रीय दल से सिमट कर क्षेत्रीय दल बन जाने का चुनाव आयोग का ठप्पा भी गवाह है. लेकिन मायावती उसी यूपी में जनसभा करने से पीछे हट रही हैं और उन राज्यों में सभा के लिए जा रही हैं, जहां उनकी राजनीतिक हैसियत सिर्फ इतनी है कि दहाई के आंकड़े में सीट पहुंच गईं तो बम-बम.
बेंगलुरू में जनसभा को संबोधित करेंगी मायावती
जिस राज्य ने मायावती को चार बार मुख्यमंत्री बनाया वहां निकाय चुनाव हैं और मायावती ने प्रचार में एक भी सभा या रैली यहां नहीं की है. जबकी भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी है. इन पार्टियों के प्रमुख नेता कार्यकर्ताओं से मुलाकात और रैलियों में जुटे हुए हैं. मायावती गायब हैं और कह रही हैं कि पदाधिकारी और कार्यकर्ता सब देख लेंगे. वहीं वो आज यानी शुक्रवार को कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में एक जनसभा को संबोधित करने वाली हैं.
कभी एक सहयोगी के तौर पर मायावती की बहुजन समाज पार्टी कर्नाटक की सरकार में एक समर्थक दल के तौर पर शामिल जरूर रही है, लेकिन वहां की राजनीति में पार्टी की वो हैसियत हरगिज नहीं है, जैसी उत्तर प्रदेश में है. ऐसे में उत्तर प्रदेश को दरकिनार कर कर्नाटक को तवज्जो देना, बेहतर राजनीतिक दांव तो हरगिज भी नहीं माना जा सकता. हालांकि इस बात का संशय जरूर जाहिर किया जा सकता है कि इस कदम से कर्नाटक में मजबूत दिख रही कांग्रेस को कुछ सीटों पर दलित वोट काटकर नुकसान पहुंचाने की कोशिश है.
सीएम योगी की 5 घंटों में ही 4 जनसभाएं
वहीं चुनावी मशीन कहलाने वाली भारतीय जनता पार्टी राज्य में कमजोर स्थिति होने के सभी दावों को दरकिनार कर पूरे जोश से कर्नाटक में प्रचार कर रही है. सीएम योगी इस दल के स्टार प्रचारक रहे हैं. कर्नाटक में सभाएं करने के बाद वो वापस अपने सूबे में लौट आए हैं. अब यहां वो ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं. शुक्रवार को ही जब मायावती कर्नाटक में होंगी तो उनके गढ़ कहलाने वाले पश्चिम उत्तर प्रदेश में सीएम योगी 5 घंटों में ही 4 जनसभाओं को संबोधित करेंगे.