UP Nikay Chunav 2023: उत्तर प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के प्रथम चरण का चुनाव प्रचार मंगलवार देर शाम थम गया. अब 4 मई को निकाय चुनाव के प्रथम चरण में सूबे के 37 जिलों में मतदान होगा. राज्य के सहारनपुर, मुरादाबाद, आगरा, झांसी, लखनऊ, देवीपाटन, गोरखपुर, प्रयागराज और वाराणसी मंडल के 2.40 करोड़ से अधिक मतदाता अपनी पसंद के नेता का चुनाव करेंगे. नगरीय निकाय के नेता चयन की इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया में राज्य के सीएम योगी आदित्यनाथ, समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव, बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती और योगी सरकार के कई मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है.
मंत्रियों की साख दांव पर इसलिए है, क्योंकि पार्टी ने मंत्रियों को अपने निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी प्रत्याशी को जिताने का दायित्व सौंपा है, जबकि अखिलेश और मायावती इस चुनाव में भाजपा और सीएम योगी के बढ़ते कदमों को रोक पाने में सफल होते हैं या नहीं? इस लेकर इन दोनों नेताओं के राजनीतिक कौशल की परीक्षा हो रही है. इसके साथ ही प्रथम चरण की 10 मेयर सीटों पर सीएम योगी फिर कमल खिलाने में सफल होंगे या नहीं इसे लेकर उनकी साख दांव पर लगी है. सीएम योगी की प्रतिष्ठा दांव पर लगे होने की एक वजह यह भी है कि वह निकाय चुनाव को लोकसभा चुनाव का पूर्वाभ्यास मानकर लड़ रहे हैं.
निकाय चुनाव के नतीजों का असर लोकसभा चुनाव पर!
राजनीतिक मामलों में लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार कुमार भवेश के कहते हैं कि इस निकाय चुनाव के नतीजों का असर लोकसभा चुनाव तक पड़ेगा. इस नाते सीएम योगी आदित्यनाथ और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने पार्टी ने सभी 17 नगर निगमों और जिला मुख्यालयों की नगर पालिका परिषदों में कब्जा जमाने का लक्ष्य रखा है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सभी 75 जिलों का चुनावी दौरा कर रहे हैं. यहीं नहीं योगी सरकार में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक भी हर दिन में दो से तीन जिलों में चुनावी सभाएं और संपर्क कर रहे हैं.
500 से अधिक बागी 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित
प्रदेश के बड़े नगर निगम और नगर पालिका परिषदों में सरकार के मंत्रियों को प्रभारी के रूप में तैनात किया है और उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र के साथ प्रभार वाले जिले में भी पार्टी प्रत्याशी को जिताने की जिम्मेदारी दी गई है. इस लक्ष्य को पूरा करने में बाधक बन रहे पार्टी के 500 से अधिक बागियों को छह साल के लिए पार्टी से बाहर निकाल दिया गया है, जिसके चलते अब यह कहा जा रहा है कि जो मंत्री अपने निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी प्रत्याशी को जिताने में सफल नहीं होंगे, उनके खिलाफ भी चुनाव बाद एक्शन लिया जाएगा.
मतलब उन्हें मंत्री पद छोड़ना भी पड़ सकता है, ताकि लोकसभा चुनावों में सूबे की सभी 80 सीटों को जिताने का टारगेट पूरा किया जा सके. भवेश का कहना है कि निकाय चुनाव के रिजल्ट का सबसे अधिक प्रभाव मंत्रियों पर ही पड़ेगा, क्योंकि हार ठीकरा राजा पर नहीं, उसके सिपहसालारों पर ही फूटता रहा है.
इन सीटों के परिणाम से बचेगी साख
निकाय चुनावों के पहले चरण में मेयर की तीन सीटें गोरखपुर, प्रयागराज और वाराणसी सबसे महत्वपूर्ण मानी जा रही हैं. गोरखपुर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि है. यहां भी पहले चरण में ही 4 मई को मतदान होना है. गोरखपुर में भाजपा ने डॉ. मंगलेश श्रीवास्तव को मेयर का प्रत्याशी बनाया है. मुख्यमंत्री ने गोरखपुर में चुनावी सभाएं की हैं, ताकि कोई उलटफेर न होने पाए. सीएम योगी के सबसे विश्वासपात्र कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना गोरखपुर के प्रभारी मंत्री हैं. इसी तरह प्रयागराज की मेयर सीट भी भाजपा के लिए बेहद अहम है. प्रयागराज में ही गैंगस्टर अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस कस्टडी में हत्या हुई और सीएम योगी अतीक अहमद के खात्मे को माफियावाद का खात्मा बताकर प्रदेश में प्रचार कर रहे हैं.
ऐसे में प्रयागराज के पार्टी के मेयर प्रत्याशी को जिताना सीएम योगी का मुख्य टारगेट है. प्रयागराज में पार्टी ने औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी की पत्नी अभिलाषा नंदी का टिकट काटकर महानगर अध्यक्ष उमेश चंद्र गणेश केसरवानी को प्रत्याशी बनाया है. उपमुख्यमंत्री केशव भी प्रयागराज से हैं. केशव प्रसाद मौर्य ने प्रयागराज में चुनाव की कमान संभालने के साथ पूरी ताकत झोंक रखी है. वहीं स्वतंत्र देव सिंह प्रयागराज के प्रभारी मंत्री हैं.
वाराणसी के चुनाव परिणाम पर सबकी नजर
इसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के चुनाव परिणाम को लेकर भी देश की नजर है. वाराणसी में पार्टी ने क्षेत्रीय मंत्री अशोक तिवारी को प्रत्याशी बनाया है. उन्हें जिताने के लिए आयुष मंत्री दयाशंकर मिश्रा दयालु, स्टांप एवं रजिस्ट्रेशन रवींद्र जायसवाल और श्रम कल्याण मंत्री अनिल राजभर की प्रतिष्ठा दांव पर है. पीएम नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के नाते मुख्यमंत्री, दोनों उपमुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह वहां पूरी ताकत लगाए हैं. वाराणसी में प्रभारी मंत्री जयवीर सिंह हैं, वह भी यहां पूरी ताकत लगा रहे हैं.
मुरादाबाद में भूपेंद्र चौधरी की प्रतिष्ठा दांव पर
इसी प्रकार पश्चिम यूपी में मुरादाबाद पर भाजपा नेताओं की नजर जमी है. पार्टी ने निर्वतमान महापौर विनोद अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का क्षेत्र होने के नाते यहां चौधरी की प्रतिष्ठा दांव पर है. पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सहारनपुर नगर निगम महापौर सीट पर भाजपा ने कुर्मी समाज के डॉ. अजय कुमार को प्रत्याशी बनाया है. इस सीट को जिताने की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी राज्यमंत्री ब्रजेश सिंह और राज्यमंत्री जसवंत सैनी पर डाली गई है. इस सीट पर भी तगड़ी फाइट है. इन दोनों राज्यमंत्री की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है.
मथुरा से विनोद अग्रवाल BJP की तरफ से मैदान में
मथुरा वृंदावन नगर निगम में भी भाजपा को कड़ी टक्कर मिल रही है. पार्टी ने वैश्य समाज के विनोद अग्रवाल को मेयर सीट का प्रत्याशी बनाया है. मथुरा से प्रदेश सरकार में गन्ना विकास मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण हैं, उनकी साख यहां दांव पर लगी है. इसी प्रकार अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित झांसी नगर निगम महापौर पद पर पार्टी ने बिहारी लाल आर्य को प्रत्याशी बनाया है. यहां महिला एवं बाल कल्याण मंत्री बेबी रानी मौर्य प्रभारी हैं. दलित बाहुल्य होने के नाते झांसी में बेबी रानी के राजनीतिक कौशल के साथ दलितों में पकड़ की भी परीक्षा है. आगरा में बीजेपी ने पूर्व एमएलए हेमलता दिवाकर को मैदान में उतारा है.
निकाय चुनाव हर दल के लिए महत्वपूर्ण
बता दें कि नगर विकास मंत्री एके शर्मा आगरा के प्रभारी मंत्री हैं. उन पर इस सीट को जिताने कर अपनी उपयोगिता साबित करने का दबाव है. लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल कहते हैं कि यह चुनाव हर दल के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इन चुनावों के रिजल्ट के आधार पर लोकसभा चुनावों की रणनीति तैयार की जाएगी. इसलिए योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव चुनाव प्रचार करने में जुटे हुए हैं, जबकि मायावती अपने फेल हो चुके पुराने फार्मूले मुस्लिम-दलित गठजोड़ की धार इस चुनाव में फिर परख रही हैं. फिलहाल पहले चरण के मतदान में जहां भाजपा मेयर की सभी 10 सीटों को जीतने के लक्ष्य के साथ उतर रही है, वहीं अखिलेश और मायावती भाजपा को इस टारगेट से दूर रखने का प्रयास करेंगे.