New Delhi: शरद पवार को जाणता राजा यूं ही नहीं कहते, इंदिरा से बगावत कर बनाया दल, सोनिया की खिलाफत के बाद NCP अस्तित्व में आई

New Delhi: शरद पवार को जाणता राजा यूं ही नहीं कहते, इंदिरा से बगावत कर बनाया दल, सोनिया की खिलाफत के बाद NCP अस्तित्व में आई

रामगोपाल वर्मा कभी आग बनाते थे तो कभी सरकार जैसी सुपरहिट फिल्में भी बनाते थे। जिसकी पहली स्क्रीन पर लिखा होता था कईयों की तरह मैं भी द गॉडफाडर से प्रेरित हूं। लेकिन सबको पता था कि वो असल में प्रेरित किससे थे। उस कॉर्टूनिस्ट से, जिसने शेर की सवारी करके, अस्मिता का नारा देकर महाराष्ट्र की सियासत को बदल दिया था। फिल्म थी सरकार 2005 में आई। पर्दे पर अमिताभ बच्चन सुभाष नागड़े लेकिन लोगों के लिए सरकार लेकिन आवाज किसकी गूंजती थी- बाल ठाकरे। फिक्शन को जब फैक्ट में प्रोजेक्ट करते हैं तो वो जो पूरा प्रोसेस होता था। सरकार फिल्म में कहते है कि नजदीक का फायदा देखने से पहले दूर का नुकसान सोचना चाहिए। बाल ठाकरे और महाराष्ट्र की सियासत से आने वाले एक और दिग्गज नेता शरद पवार के बीच का संबंध बड़ा ही अजीब सा रहा। वे सार्वजनिक रूप से पवार को आटे की बोरी कहकर उनका मजाक उड़ाते थे। लेकिन रात में उनको परिवार के साथ खाने पर भी बुला लेते थे। आज से 31 साल पहले शिव सेना के सुप्रिमो बाल ठाकरे ने भी इस्तीफे की पेशकश कर हर किसी को हैरान कर दिया था। बाल ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र सामना में लिखा था, ‘अगर एक भी शिवसैनिक मेरे और मेरे परिवार के खिलाफ खड़ा होकर कहता है कि मैंने आपकी वजह से शिवसेना छोड़ी या आपने हमें चोट पहुंचाई, तो मैं एक पल के लिए भी शिवसेना प्रमुख के रूप में बने रहने के लिए तैयार नहीं हूं। शिवसेना जिसे साठ के दशक से उन्होंने सींचा था, खड़ा किया था। लेकिन इसके बाद वह और मजबूत होकर उभरते हैं। मंत्री, पार्षद सब सुप्रीमो के पीछे और सबकी जुबान पर एक ही नारा कि हमें सरकार नहीं साहेब चाहिए। अब शरद पवार ने ठीक उसी तरह का ऐलान करते हुए अपनी पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की बात कर हर किसी को चौंका दिया। कई लोगों के लिए एक आश्चर्यजनक कदम के रूप में अनुभवी राजनीतिज्ञ शरद पवार ने मंगलवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, जिस राजनीतिक संगठन को उन्होंने दो दशक से अधिक समय पहले बनाया था। पवार ने अपनी आत्मकथा लोक भूलभुलैया संगति के दूसरे संस्करण के लॉन्च के मौके पर कहा कि मैंने एनसीपी के अध्यक्ष पद से हटने का फैसला किया है। महाराष्ट्र की राजनीति के एक दिग्गज, 82 वर्षीय पवार ने कहा कि वह अब चुनाव नहीं लड़ेंगे, क्योंकि दशकों के लंबे करियर के बाद, किसी को कहीं रुकने के बारे में सोचना चाहिए। 

छात्र राजनीति से ली एंट्री

शरद पवार ने छात्र जीवन से ही राजनीति में एंट्री की थी। साल 1964 में वो यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए थे। 50 साल से अधिक समय से राजनीति में एक्टिव रहे शरद पवार कोई चुनाव नहीं हारे हैं। शरद पवार ने अपने राजीनित गुरु यशवंत राव चव्हाण के मार्गदर्शन में पहली बार 1967 में महाराष्ट्र विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। पवार महज 38 साल की उम्र में सीएम बन गए थे। उन्होंने इंदिरा गांधी से बगावत करते हुए अलग दल बनाया था। हालांकि, 1980 में इंदिरा गांधी के सत्ता में वापसी के बाद उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था।

इंदिरा गांधी से बगावत कर बनाया अलग दल

वर्ष 1977 में लोकसभा होते हैं और जनता पार्टी की लहर में इंदिरा गांधी को पराजय हासिल होती है। महाराष्‍ट्र में भी कांग्रेस पार्टी को कई सीटें गंवानी पड़ती है। हार से आहत शंकर राव चव्‍हाण नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्‍यमंत्रीपद से इस्‍तीफा दे देते हैं। वसंतदादा पाटिल को उनकी जगह सीएम पद की कुर्सी मिलती है। आगे चलकर कांग्रेस में टूट हो जाती है और पार्टी दो खेमों यानी कांग्रेस (यू) और कांग्रेस (आई) में बंट जाती है। इस दौरान शरद पवार के गुरु कहे जाने वाले यशवंत राव पाटिल कांग्रेस (यू) में शामिल हो जाते हैं वहीं उनके साथ शरद पवार भी कांग्रेस (यू) का हिस्सा हो जाते हैं। वर्ष 1978 में महाराष्‍ट्र में विधानसभा चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस के दोनों विभाजित धड़ों ने अपना भाग्य आजमाया। जनता पार्टी को सत्‍ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस यू और कांग्रेस आई म‍िलकर सरकार बना लेते हैं और वसंतदादा पाटिल सूबे के मुखिया बनते हैं। इस सरकार में शरद पवार उद्योग और श्रम मंत्री बनाए जाते हैं। लेकिन फिर अचानक जुलाई 1978 में शरद पवार कांग्रेस (यू) से अलग होकर जनता पार्टी से मिल जाते हैं और महज 38 साल की उम्र में राज्‍य के सबसे युवा मुख्‍यमंत्री बन जाते हैं।  

पीएम बनते-बनते रह गए 

शरद पवार की जिंदगी से जुड़े किस्से को याद किया जाए तो बिना 1991 के उस दौर को याद किए पूरा नहीं किया जा सकता जिसकी टीस आज भी पवार को है। 1991 का वो साल था जब पवार को लगा कि वो हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री बनने के सबसे करीब हैं। ये राजीव गांधी के बाद का युग था और कांग्रेस सत्ता में आई थी। नरसिम्हा राव के नेतृत्व में उन्हें रक्षा मंत्री के पद से संतोष करना पड़ा।  

सोनिया की खिलाफत और एनसीपी का उदय

1999 का वो दौर था जब शरद पवार ने कांग्रेस से हटकर अपनी अलग पार्टी बनाई। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी। पवार ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्हें लग रहा था कि कांग्रेस में उनका ग्रोथ नहीं हो रहा था। ऐसे में वो देश के सबसे बड़े पद पर कांग्रेस में रहते हुए नहीं पहुंच सकेंगे। अपनी इसी महात्वकांक्षा के लिए उन्होंनेखुद की अलग पार्टी बना ली। उसी साल महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव भी थे। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ ये कहते हुए शरद पवार ने गठबंधन कर लिया कि सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा केंद्र पर लागू होता है, महाराष्ट्र पर नहीं। 

कोई हारे कोई जीते पवार हमेशा फायदे में रहते हैं 

 हिन्दुस्तान की राजनीति में शरद पवार को शतरंत का ऐसा उस्ताद माना जाता है जो दोनों ओर से खेलते हैं। कोई हारे या कोई जीते, शरद पवार हमेशा फायदे में रहते हैं। महाराष्ट्र में ढाई साल पहले हुए चुनाव में बीजेपी और शिवसेना गठबंधन को बहुमत मिला था, लेकिन शरद पवार की बातों में आकर उद्धव ठाकरे ने बीजेपी से रिश्ते तोड़ लिए और खुद सीएम बन गए। सीएम बनने के दौरान पिछले ढाई साल में वो बीजेपी से भिड़ते गए और शरद पवार को अपना ‘गुरु’ मान लिया। बाल ठाकरे के कट्टर शिवसैनिकों के लिए ये बर्दाश्त करना बेहद मुश्किल होता जा रहा था। विधायकों ने कई बार इसकी शिकायत की, लेकिन उद्धव ठाकरे से मुलाकात करना ही मुश्किल था। जनता से कटकर रहने वाले उद्धव को पता ही नहीं लगा कि एकनाथ शिंदे सभी विधायकों के इतने करीबी बन गए कि उनकी एक आवाज पर पूरी पार्टी उनके साथ चली गई। शिवसेना उद्धव गुट के पास बस ठाकरे सरनेम के अलावा न ही पार्टी बची, न सिंबल और नहीं नेता। वहीं जब अजित पवार की ओर से लगातार बीजेपी के साथ जाने की अटकलें वक्त दर वक्त प्रबल होती जा रही थी। ऐसे वक्त में पवार ने इस्तीफा वाला मास्टरस्ट्रोक खेला है। अब इसके पीछे उनका क्या दांव है ये तो वक्त के साथ पता चलेगा। क्या ये परिदृश्य से बाहर रहकर एनसीपी को बीजेपी के साथ जाने के लिए मौन सहमति है। या फिर भतीजे अजित को नवंबर 2019 जैसी किसी कदम उठाने से रोकने के लिए उठाया गया महत्वपूर्ण कदम। लेकिन जो भी हो शरद पवार को यूं ही नहीं जाणता राजा (समझदार नेता) कहते हैं। वो मोदी के भी खास बने हुए हैं, विपक्ष के भी महत्वपूर्ण नेता बने हुए हैं। 


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yhfee@chitthi.in, 10 June 2023

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