‘हासिल’ तिग्मांशु धुलिया की फिल्म है. तिगमांशु और इरफान बहुत अच्छे दोस्त थे. हासिल के पहले सीन में इरफान भागते दिखते हैं उनके पीछे दूसरे खेमें के लोग होते हैं. पकड़े जाने पर खूब पिटाई होती है. तभी आशुतोष राणा की एंट्री होती है. इस सीन में इरफान मुंह से खून की उल्टी करते हैं और हमें यकीन हो जाता है कि ये आदमी खून की उल्टी ही कर रहा है… इरफान की यही सबसे बड़ी खासियत है. इरफान को देखकर हर किसी को लगता है कि हम खुद को देख रहे हैं. एक ऐसे किरदार को देख रहे हैं जो हमारे बीच से अभी-अभी परदे पर गया है.ये इरफान का करिश्मा है और ऐसा काम वही कर सकते थे.
इरफान अब इस दुनिया में नहीं हैं. उनकी मौत से तीन दिन पहले उनकी मां का इंतकाल हुआ था . इरफान की पत्नी सुतापा सिकदर अपने दो बच्चों बाबिल और अयान के साथ रहती हैं. बाबिल ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत कर दी है. कला फिल्म में उनकी एक्टिंग की तारीफ हुई तो लोग उनकी तुलना इरफान से करने लगे. बाबिल को तो कुछ लोग इसलिए भी देखना चाहते थे कि वो एक बार इरफान की छाया बाबिल में देख सके. लोग अक्सर इरफान के बारे में कहा करते हैं कि उन्होंने वास्तव में एक्टिंग कभी की ही नहीं. ये सच्चाई भी है. बाबिल को अभी बहुत दूर जाना होगा. एक इंटरव्यू में सुतापा कहती भी हैं कि मैं हमेशा बाबिल से कहती हुं कि तुम्हारे पिता तुमसे 10 गुना ज्यादा मेहनत करते थे.
राजस्थान के छोटे से कस्बे टोंक से आने वाले इरफान पहले क्रिकेटर बनना चाहते थे. पठान परिवार में जन्म शाहबजादे इरफान अली खान को उनके पिता पंडित कहते थे. वो कहते थे कि पठान के घर ब्राह्मण ने पैदा ले लिया है. कारण ये था कि इरफान गोश्त नहीं खाते थे…जमींदार परिवार से आने वाले इरफान के पास अपने परिवार का टायर बिजनेस संभालने का विकल्प था लेकिन उन्हें किस्सों कहानियों में दिलचस्पी थी, नसीरउद्दीन शाह और दिलीप कुमार पसंद थे.किस्सों कहानियों की दुनिया में रहने वाले इरफान को एनएसडी में पढ़ते वक्त ही मीरा नायर ने सलाम बॉम्बे ऑफर कर दी थी. लेकिन बाद में उनका रोल बेहद छोटा हो गया..इस बात को लेकर वो खूब रोए थे-. हालांकि 18 साल बाद मीरा नायर ने इरफान को द नेमसेक में कास्ट कर कर्ज अदा किया.
ये 90 का दौर था. सलमान, शाहरुख आमिर खान उभर रहे थे साथ ही सिनेमा भी बदल रहा था. पैरलल सिनेमा एक तरह से कुंद होता जा रहा था. और परदे पर गिटार लिए हीरो धूम मचा रहे थे.इस दौर में तपन सिन्हा की फिल्म ‘एक डॉक्टर की मौत’ में इरफान, पंकज कपूर और शबाना आजमी के साथ दिखे थे लेकिन आर्ट फिल्मों के दिन ढल चुके थे इसलिए न किसी ने इरफान को नोटिस किया और न ही फिल्म की चर्चा हुई.
मुंबई सपनों की नगरी है यहां अगर रुक गए तो समझो खत्म हो गए. इरफान को तो बहुत आगे जाना था. सो उन्होंने फैसला किया कि चलो टीवी करते हैं. ‘चाणक्य’, ‘भारत एक खोज’, ‘सारा जहां हमारा’, ‘बनेगी अपनी बात’ और ‘चंद्रकांता’ जैसे कई शोज में काम किया. लेकिन कुछ हद तक पहचान मिली चंद्रकाता से. चाणक्य में भी उनके काम की तारीफ हुई. लेकिन इरफान को सही पहचान दिलाई आसिफ कपाडिया ने.
कपाडिया ने हॉलीवुड फिल्म ‘वॉरियर’ के लिए इरफान खान को कास्ट किया था. तब वे 34 साल के थे. आसिफ कपाडिया द गॉर्जियन से बात करते हुए कहते हैं- मैं पहली बार इरफान से मुंबई के एक होटल में मिला था तब उनकी उम्र 21 साल थी. जैसे ही इरफान कमरे में आए मुझे लगा यही मेरा एक्टर है,पहली नजर में वो एक ऐसे आदमी की तरह मुझे लगे जो अभी-अभी कई लोगों की कत्ल करके आया है और इस बात के लिए उसमें पछतावा भी है. हम पहाड़ों में और रेगिस्तानों में शूटिंग करने गए. पहली बार उसने पहाड़ों पर बर्फ देखी थी. साधारण लाइन को वो असाधारण बना देता था. उसकी एक्टिंग में एक इमोशन था ,वो सच में एक स्टार था.
इरफान की फिल्म ‘वॉरियर’ को लंदन फिल्म फेस्टिवल में बाफ्टा अवॉर्ड मिला था.किसी तकनीकी कारण से ये फिल्म ऑस्कर में फॉरेन भाषा के लिए अयोग्य घोषित कर दिया. इस बात ने इरफान को बहुत अपसेट किया.बाद में तो इरफान ने हॉलीवुड में धूम मचा दी. बहुत कम लोग ये जानते हैं कि हॉलीवुड की मूवी ‘ए माइटी हर्ट’ के लिए ब्रैड पिट ने इरफान का नाम रेकमंड किया था. ब्रैड पिट ने इरफान की डीवीडी फिल्म के डायरेक्टर को दिखाई थी. इरफान ने दो ऑस्कर जीतने वाली फिल्मों में काम किया. जुरासिक वर्ल्ड,इनफरनो और स्पाइडर मैन जैसी मेगा और कमर्शियल फिल्मों में भी काम किया.
इरफान की फिल्मों में और उनकी जिंदगी में एक चीज ऐसी थी जिसकी चर्चा सब करते हैं. उनको देखने वाले भी और उनके साथ काम करने वाले भी. वो थी उनकी इमानदारी.उन्होंने जो कुछ भी किया उसमें उनकी पूरी आत्मा होती थी,सच्चाई होती थी और यही इरफान होने का करिश्मा था. इसमें एक खास बात ये भी थी कि जैसे-जैसे उनका करियर आगे बढ़ता गया, बढ़ते कद के साथ वो वैसे ही बने रहे जैसे करियर की शुरुआत में थे. इसलिए वो हिन्दी और अंग्रेजी फिल्मों में बराबर उसी सहजता से काम करते गए.
वॉरियर के डायरेक्टर आसिफ कपाडिया कहते हैं-इरफान ने जैसे अपनी बीमारी की बात की इस तरह से मैंने पहले कभी किसी को कैंसर के बारे में बात करते नहीं सुना. वो सच में जानना चाहता था कि मेरे साथ हो क्या रहा है.
इरफान एक ऐसा अभिनेता के तौर पर याद किए जाते हैं जिनकी आंखों में 1 हजार से ज्यादा भावनाएं थी जिसे वो अपनी इच्छानुसार बदल सकते थे. ऐसा कोई जादूगर ही कर सकता है. मकबूल,नेमसेक, स्लमडॉग मिलेनियर, द लंच बॉक्स,पीकू,हिन्दी मीडियम, पान सिंह तोमर,लाइफ इन मेट्रो, तलवार..इन सब फिल्मों में इरफान ने जादू ही तो किया है. चाहे मेन स्ट्रीम फिल्में हों या आर्ट की, हर जोनर में इरफान ने कमाल किया है.
53 साल की उम्र में इरफान ने जब अलविदा कहा तो लोगों के लिए बहुत हैरानी की बात नहीं थी क्योंकि पहले ही उन्होंने सबकुछ साफ बता दिया था.एक भारतीय एक्टर के निधन पर दुनिया के प्रमुख अंग्रेजी अखबारों ने हेडलाइन बनाई थी. हॉलीवुड स्टार ने श्रद्धांजलि दी थी. ये किसी भारतीय अभिनेता के साथ पहले नहीं हुआ था. इरफान से पहले किसी भारतीय एक्टर को वेस्ट में इतनी लोकप्रियता नहीं मिली थी. इरफान की मौत पर सीएनएन लिखता है- द बॉलिवुड स्टार हू क्रैक्ड हॉलीवुड, वेस्ट के अखबारों ने उन्हें उन्हें ‘ए सिनेमेटिक इंडियन एवरी मैन’ का तमगा दिया. बीबीसी ने लिखा था- द बॉलीवुड स्टार लव्ड बाई हॉलीवुड.
फिल्म हासिल से जुड़ा एक किस्सा है. इरफान और तुग्मांशु दोस्त थे. तिग्मांशु हासिल बना रहे थे लेकिन उनके दिमाग में इरफान कहीं नहीं थे. और इरफान को दोस्त को बोलना भी अजीब लग रहा था कि मुझे कास्ट कर लो. बाद में इरफान इस फिल्म का हिस्सा हुए लेकिन जब सेट पर पहुंचे तो उन्हें लगा कि किरदार खांटी इलाहाबादी है और वो हैं राजस्थान से .इरफान किरदार में ढलने के लिए इलाहाबाद निकल लिए. वहां लोगों से मिले. वहां का लहजा,वहां की बोली सब अपनाया और जब वापस लौटे तो खांटी रणविजय सिंह बन चुके थे.
बचपन में इरफान को मिथुन चक्रवर्ती बहुत पसंद थे. मिथुन के जैसे इरफान के लंबे बाल थे. इरफान को आंखों से अभिनय करने के लिए जाना जाता है. अपने किरदार में वो जो दर्द,मासुमियत,बगावत गुस्सा, प्यार और तिरस्कार लाते थे वो कमाल का होता था. मकबूल में अब्बा जी के प्रति वफादारी हो या फिर हैदर का रुहदार का किरदार सब सच्चे लगते हैं. लंच बॉक्स के साजन फर्नांडिस को संभवत: उनके द्वारा निभाया गया सबसे प्यारा किरदार कहा जा सकता है. नेमसेक में इरफान का अभिनय देखकर शर्मीला टैगोर ने इरफान से कहा था- अपने मां बाप का शुक्रिया कहना जिन्होंने तु्म्हें जन्म दिया.
इरफान अंत तक एक ऐसे व्यक्ति बने रहे जो मौत को सामने देखकर भी हंसना जानता हो. कैंसर के बारे में पता लगने के बाद उन्होंने कहा- मुझे नहीं पता था कि अलग और दुर्लभ कहानियों की खोज में मुझे एक दुर्लभ बीमारी मिल जाएगी. ये इरफान का अंदाज था. इरफान के लिए तो अभी वेस्ट का दरवाजा खुला ही था. पीकू देखने के बाद लोग कहे लगे थे कि इरफान का जादू चलना तो अब शुरु हुआ है.
इरफान को एक ऐसे अभिनेता के लिए भी याद किया जाएगा जिसने खुद मेहनत कर, अपना क्राफ्ट डेवलप किया अपने लिए नई जगह बनाई. स्क्रिप्ट चयन करना भी उनकी एक खूबी ही थी. हालांकि इस खूबी के बावजूद हॉलीवुड की कई फिल्मों को उन्होंने ठुकराया. कोई सोच सकता है कि इरफान ने क्रिस्टोफर नोलन को ना कहा होगा…लेकिन ये सच है. 2014 में इरफान ने क्रिस्टोफर नोलन की इंटरस्टेलर को द लंचबॉक्स के लिए ठुकरा दिया था. 2015 में उन्होंने रिडले स्कॉट की द मार्शियन में काम करने से इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि वो शूजित सरकार की पीकू करना चाहते थे. मशहूर हॉलीवुड डायरेक्टर रिडले स्कॉट की बॉडी ऑफ लाइज को भी इरफान ने 2008 में न कह दिया था.
जुरासिक वर्ल्ड के प्रमोशन में इरफान ने एक किस्सा बताया था- जब पहली जुरासिक पार्क 1993 में रिलीज हुई थी तो इरफान टीवी में काम करने के लिए संघर्ष कर रहे थे. उनके पास उतने पैसे नहीं थे कि वो जुरासिक पार्क का टिकट खरीद सकें.लेकिन धीरे-धीरे वो हॉलीवुड में इरफान एक ऐसे नाम हो गए जिनकी स्माइल पर एंजोलिना बात करती है और जिसके बारे में वेनम के एक्टर रिज अहमद कहते हैं कि इरफान, इस दौर के महानतम एक्टरों में से एक हैं.
इरफान की ऑस्कर वीनिंग फिल्म है लाइफ ऑफ पाई. इरफान ने एक बार कहा था कि मैं अपने नाम से खान हटा रहा हूं तब से वो खुद को इरफान ही लिखते थे. इरफान चले गए शायद वक्त से बहुत पहले.. लेकिन लोगों के दिलों में जैसे घर कर गए हों. हासिल में उनका एक डायलॉग है- तुमको हम याद रखेंगे गुरु