उत्तर प्रदेश में कानपुर नगर की मेयर सीट पर बीजेपी लगातार परचम फहरा रही थी, लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी ने इस लड़ाई को काफी रोचक बना दिया है. पिछली बार सपा यहां तीसरे स्थान पर थी, इस बार बीजेपी को कड़ी टक्कर देती नजर आ रही है. वहीं कांग्रेस और बसपा क्रमशः तीसरे-चौथे नंबर पर संघर्ष करती नजर आ रही हैं. महिलाओं के लिए आरक्षित इस सीट पर बीजेपी ने अपनी मौजूदा मेयर प्रमिला पाण्डेय को ही दोबारा मौका दिया है. लेकिन बताया जा रहा है कि स्थानीय सांसद ही उनके खिलाफ हैं.
अब तक वह खुद अपनी बेटी के लिए टिकट मांग रहे थे, लेकिन पार्टी ने प्रमिला पाण्डेय पर भरोसा जताया है. इससे नाराज सांसद प्रमिला के नामांकन में भी नहीं पहुंचे. पार्टी उन्हें मनाने का प्रयास भी कर रही है. लेकिन अब तक वह पार्टी का इतना नुकसान कर चुके हैं कि शायद ही उसकी भरपायी हो सके. इधर, बीजेपी के इस अंदरूनी लड़ाई का लाभ सपा उठाती नजर आ रही है. सपा प्रत्याशी वंदना बाजपेयी, जो स्थानीय विधायक अमिताभ बाजपेई की पत्नी है. यही उनकी ताकत है और यही कमजोरी भी. वह पति के चुनावों में भी काफी सक्रिय रही हैं. लेकिन उनका अपना कोई राजनीतिक करियर नहीं है. वह पहली बार चुनाव मैदान में हैं.
उनके समर्थकों की माने तो शहर में सात लाख ब्राह्मण, 3.5 लाख मुस्लिम, इतने ही व्यापारी, तीन लाख ओबीसी और चार लाख दलित मतदाता है. एमएलए के रूप में अमिताभ बाजपेई ने लोगों के दिलों में जगह बनाई है. ब्राह्मण तो हैं ही, ऐसे में हर वर्ग का थोड़ा-थोड़ा प्यार भी मिलेगा तो वे बीजेपी कैंडीडेट को आसानी से शिकस्त दे सकेंगे. हालांकि बीजेपी के नेता सपा के जीत के दावे को दिवास्वप्न बता रहे हैं. उल्लेखनीय है कि कानपुर लंबे समय से बीजेपी का गढ़ रहा है. व्यापारी और ब्राह्मण के अलावा दलित, ओबीसी का एक नया कांबिनेशन हर बार माहौल बनाने का काम करता है.
कानपुर की राजनीति को समझने वालों के मुताबिक फ्री राशन और अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ इस चुनाव में प्रमिला पाण्डेय को मिलेगा. वहीं स्थानीय सांसद के विरोध का कोई असर नहीं होगा. पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर रही कांग्रेस ने इस बार आशनी अवस्थी को मैदान में उतारा है. इनका भी कोई बहुत पुराना राजनीतिक करियर नहीं है. लेकिन कांग्रेस के काडर वोट और भाजपा शासन से नाराज लोगों के सहारे उन्हें जीत का भरोसा है. कांग्रेस का मानना है कि उन्हें हर जाति-धर्म का वोट मिलेगा. लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि शहर के सबसे कद्दावर नेता श्रीप्रकाश जायसवाल सक्रिय नहीं हैं.
बसपा ने फिर से पिछले चुनाव में कैंडीडेट रही अर्चना निषाद को दोबारा मैदान में उतारा है. पिछली बार वह महज 82 हजार से अधिक वोट पाकर चौथे नंबर पर रहीं थीं. बसपा को भरोसा है कि पिछली बार दलित वोट में विभाजन हो गया था. इस बार दलित, मुस्लिम का वोट थोक भाव में मिलेगा. हालांकि इस चुनाव में बसपा की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि सभी वार्डों में उसके प्रत्याशी नहीं हैं. यहां से मैदान में उतरे तमाम निर्दलीय प्रत्याशियों के भी अपने अपने तर्क हैं. उल्लेखनीय है कि कानपुर नगर सीट पर कुल 22 लाख से अधिक मतदाता है.