पटना: पूर्व सांसद आनंद मोहन समेत उन 27 कैदियों को बिहार सरकार ने रिहा करने का आदेश दिया है जिन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है. लेकिन, इसको लेकर बिहार की सियासत में उबाल है और नीतीश सरकार पर जहां विरोधी बसपा और भाजपा हमलावर है, वहीं सहयोगी पार्टी भाकपा-माले ने भी भदासी (अरवल) कांड के शेष बचे 6 टाडाबंदियों को रिहा नहीं किए जाने पर नाराजगी जताई है. हालांकि, बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने इसका बचाव करते हुए कहा है कि- इसमें क्या विवाद है? उन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है और उन्हें कानूनी रूप से रिहा किया जा रहा है.
तेजस्वी यादव की इस दलील से इतर महागठबंधन की सहयोगी पार्टी भाकपा माले ने सवाल उठाते हुए पूछा है कि बिहार सरकार ने 14 वर्ष से अधिक की सजा काट चुके 27 बंदियों की रिहाई का आदेश दिया तो बहुचर्चित भदासी कांड के टाडाबंदियों की रिहाई पर चुप क्यों हैं? पार्टी का कहना है कि ये शेष बचे सभी 6 टाडा बंदी दलित-अतिपिछड़े व पिछड़े समुदाय के हैं और इन्होंने कुल मिलाकर 22 साल की सजा काट ली है. भाकपा माले का कहना है कि परिहार के साल भी जोड़ लिए जाएं तो यह अवधि 30 साल से अधिक हो जाती है. सब के सब बूढ़े हो चुके हैं और गंभीर रूप से बीमार हैं.
भाकपा-माले विधायक दल ने विधानसभा सत्र के दौरान और कुछ दिन पहले ही टाडा बंदियों की रिहाई की मांग पर मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी और इससे संबंधित एक ज्ञापन भी सौंपा था. उम्मीद की जा रही थी कि सरकार उन्हें रिहा करेगी, लेकिन उसने उपेक्षा का रूख अपनाया. पार्टी ने कहा है कि सरकार के इस भेदभावपूर्ण फैसले से न्याय की उम्मीद में बैठे उनके परिजनों और हम सबको गहरी निराशा हुई है.
भाकपा माले की ओर से कहा जा रहा है कि वर्ष1988 में घटित दुर्भाग्यपूर्ण भदासी कांड में अधिकांशतः दलित-अतिपिछड़े समुदाय से आने वाले 14 निर्दोष लोगों को फंसा दिया गया था. उनके ऊपर जनविरोधी टाडा कानून उस वक्त लाद दिया गया था, जब पूरे देश में वह निरस्त हो चुका था. इस मामले में 4 अगस्त 2003 को सबको आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई थी. 14 में अब महज 6 लोग ही बचे हुए हैं, बाकी लोगों की उचित इलाज के अभाव में मौत हो चुकी है.
पार्टी ने कहा कि बचे हुए कैदियों में अरवल के लोकप्रिय नेता शाह चांद, मदन सिंह, सोहराई चौधरी, बालेश्वर चौधरी, महंगू चौधरी और माधव चौधरी के नाम शामिल हैं. माधव चौधरी की मौत अभी हाल ही में विगत 8 अप्रैल 2023 को इलाज के दौरान पीएमसीएच में हो गई. उनकी उम्र करीब 62 साल थी. इसी मामले में एक टाडा बंदी त्रिभुवन शर्मा की रिहाई पटना उच्च न्यायालय के आदेश से 2020 में हुई. इसका मतलब है कि सरकार के पास कोई कानूनी अड़चन भी नहीं है.
पार्टी के राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि हमने मुख्यमंत्री से साफ कहा था कि जिस आधार पर त्रिभुवन शर्मा की रिहाई हुई है, उसी आधार पर शेष टाडाबंदियों को भी रिहा किया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. कुणाल ने पत्रकारी से बात करते हुए कहा है किशेष बचे 6 लोगों में – डॉ. जगदीश यादव, चुरामन भगत, अरविंद चौधरी, अजित साव, श्याम चौधरी और लक्ष्मण साव में से पूरी संभावना है कि कुछ और लोगों की मौत जेल में ही हो जाए. फिलहाल डॉ. जगदीश यादव, चुरामन भगत व लक्ष्मण साव गंभीर रूप से बीमार हैं और लगातार हॉस्पिटल में भर्ती हैं.
बिहार सरकार पर भेदभावपूर्ण कार्रवाई का आरोप लगाते हुए इसके खिलाफ आगामी 28 अप्रैल को भाकपा-माले के सभी विधायक पटना में एक दिन का सांकेतिक धरना देंने की घोषणा की है. पार्टी ने कहा है कि धरना के माध्यम से शेष बचे 6 टाडाबंदियों की रिहाई की मांग उठाई जाएगी. साथ ही, भाकपा-माले ने 14 साल की सजा काट चुके सभी दलित-गरीबों और शराबबंदी कानून के तहत जेलों में बंद दलित-गरीब कैदियों की रिहाई की मांग भी सरकार से की है.