नई दिल्ली: इंटरनेट की दुनिया में 5G कनेक्टिविटी अब पूरी दुनिया में फैल चुकी है. अब फोकस इसके नेक्स्ट जेनेरेशन वायरलेस नेटवर्क यानी 6G कनेक्टिविटी पर है. 4G की तुलना में 5G कहीं बेहतर कनेक्टिविटी ऑफर करता है. 6G से और बेहतर स्पीड, स्पेक्ट्रम, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेफ्टी और एनर्जी मिलने की उम्मीद है. इस संबंध में, वायरलेस कम्युनिकेशन के फ्यूचर की क्षमता को समझने के लिए 5G और 6G के बीच अंतर को समझना जरूरी है.
जबकि 5G अभी भी ग्लोबल लेवल पर रोल आउट होने के प्रोसेस में है, 6G के लिए रिसर्च और डिवेलपमेंट पहले से ही चल रहा है. लेटेस्ट रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन अल्ट्रा-फास्ट वायरलेस इंटरनेट की टेस्टिंग कर रहा है, जिसकी डाउनलोड स्पीड 300Gbps है.
100Gbps तक सफल डेटा स्पीड
6जी के लिए दौड़ तेज होती जा रही है और अमेरिका को पिछड़ने का डर सता रहा है. पिछले शुक्रवार, व्हाइट हाउस ने नेक्स्ट जेनेरेशन वायरलेस कनेक्टिविटी पर चर्चा करने के लिए इंडस्ट्री लीडर्स से मुलाकात की. डर यह है कि बाकी देश 6जी कनेक्टिविटी के मामले में यूएस से आगे निकल सकते हैं. चीन की खबरें केवल अमेरिका की चिंताओं को जोड़ती हैं. चाइना एयरोस्पेस साइंस एंड इंडस्ट्री एकेडमी ने पहली बार टेराहर्ट्ज़ (THz) फ्रीक्वेंसी लेवल पर एक सफल वायरलेस ट्रांसमिशन की जानकारी दी, जिसने 100Gbps की डेटा स्पीड हासिल की
चीन और यूएस में टक्कर
यह टेक्नोलॉजी THz फ्रीक्वेंसी पर काम करती है. इस तकनीक में mmWave बैंड की तरह सिग्नल डिस्टेंस, क्लाउड/फॉग पेनिट्रेशन जैसी समस्या नहीं आती. 6G वायरलेस के 2030 तक लॉन्च होने की उम्मीद नहीं है, यह नई तकनीक एक महत्वपूर्ण विकास है जो मनोरंजन, ऑटोमोबाइल और हेल्थ सर्विसेज में कई नई फसेलिटीज दे सकती है. 6G टेक्नोलॉजी के मामले में आने वाले समय में चीन और अमेरिका के बीच कड़ा कॉम्पटिशन देखने को मिल सकता है.