UP Nikay Chunav 2023: उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में समाजवादी पार्टी को अपने घर में तगड़ी चुनौती मिल रही है. इटावा, औरैया, कन्नौज, मैनपुरी और आसपास के जिलों में बड़ी संख्या में बागी मैदान में आ चुके हैं. अगर इन्होंने नाम वापस नहीं लिया तो अखिलेश यादव की घर के अंदर बड़ी किरकिरी होने वाली है. यूं भी सपा को जोर का झटका धीरे से भाजपा ने तब दे दिया, जब शाहजहांपुर मेयर प्रत्याशी ऐन मौके पर भाजपा में न केवल शामिल हो गईं. बल्कि जॉइन करने के कुछ घंटों बाद उन्हें मेयर का टिकट भी मिल गया.
पार्टी कार्यकर्ता कहने लगे हैं कि अपना घर संभल नहीं रहा है और अखिलेश भैया देश संभालने का ख्वाब देख रहे हैं. समाजवादी पार्टी ने पूर्व मंत्री रहे राम मूर्ति वर्मा की बहू अर्चना वर्मा को कई दिन पहले शाहजहांपुर से अपना मेयर प्रत्याशी घोषित किया था. 23 अप्रैल को वे अचानक लखनऊ पहुंचीं और भाजपा का दामन थाम लिया. कुछ घंटों बाद जारी भाजपा की सूची में वे मेयर प्रत्याशी घोषित की गईं. समाजवादी पार्टी के लिए यह बड़ा झटका है.
इटावा महिला सीट हुई तो पूर्व चेयरमैन रहे जहीर अंसारी ने अपने घर में टिकट की मांग की. नहीं मिला तो उन्होंने सपा छोड़ दी. कहां जा रहे हैं, इसका खुलासा होना अभी बाकी है. यहां से सपा ने अपने कार्यकर्ता इदरीश की बहू को टिकट दिया है. भरथना में मनोज पोरवाल ने बगावत कर दी है. उन्होंने अपनी बहू वर्तिका को बसपा के टिकट पर मैदान में उतार दिया है. यहां से सपा ने अजय यादव को टिकट दिया है. इटावा की लखना नगर पंचायत से सपा ने सतीश वर्मा का टिकट काट कर प्रदीप तिवारी को दे दिया तो सतीश हाथी पर सवार हो गए.
बकेवर में भी यही हुआ. पार्टी ने प्रत्याशी बदला तो पहले घोषित नाम अबरउल्ला ने निर्दल ताल ठोंक दी. भोंगांव में सपा ने किसी को प्रत्याशी ही नहीं बनाया. इससे पार्टी नेतृत्व की और किरकिरी हो रही है. औरैया में सपा ने पहले विपिन गुप्ता टिकट दिया. बाद में उनका टिकट काटकर ब्रह्मानन्द गुप्ता को दे दिया. नतीजा यह हुआ कि दोनों प्रत्याशी मैदान में हैं.
कन्नौज में भी बागी सपा को दे रहे चुनौती
कन्नौज में सपा ने यासमीन को टिकट दिया. अब यहां से पार्टी के कार्यकर्ता रहे हाजी रईस अहमद हाथी पर सवार हो गए. मैनपुरी में भी बागी सिर उठाए खड़े हैं. यहां सुमन को प्रत्याशी बनाने की घोषणा हुई तो पूर्व चेयरमैन रहीं साधना गुप्ता बागी हो गईं और निर्दल मैदान में कूद गईं. बहू नेहा को भी उन्होंने निर्दल नामांकन करवा रखा है.
अकबरपुर की कहानी और रोचक है. यहां पहले वंदना निगम को प्रत्याशी बनाया. फिर उनका टिकट उड़ाकर जितेंद्र सिंह को दे दिया. कुछ रोज बाद फिर से वंदना सपा प्रत्याशी हो गईं. नतीजा यह हुआ कि अब जितेंद्र सिंह बागी बने हुए हैं. यही हालत अन्य जिलों में भी बनी हुई है. बड़ी संख्या में बागी मैदान में आ चुके हैं, लेकिन कार्यकर्ता घर में बड़े पैमाने पर बागियों के आने से चिंतित हैं.
सपा को अपने ही गढ़ में बागियों का सामना करना पड़ रहा
इटावा, औरैया, मैनपुरी, कन्नौज, फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद सपा का गढ़ कहा जाता है. यहां से बागी उतरेंगे तो पार्टी को नुकसान जो होगा वह तो होगा ही, संदेश बहुत बुरा जाएगा. समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद यह पहला बड़ा चुनाव है. कार्यकर्ताओं का कहना है कि इसमें कामयाबी मिलती है तो लोकसभा चुनाव में संदेश बेहतर जाएगा. पर, अभी जो हालत बनी हुई है, उसमें घर में ही हम घिर गए हैं.
बागी पैदा करने के लिए सपा के पदाधिकारी जिम्मेदार
बागी अलग से घेरे हुए हैं और विरोधी दल अलग से. इसका फायदा किसी को मिले, लेकिन नुकसान तो सपा का ही होगा. टिकटों में बार-बार बदलाव और भांति-भांति का घालमेल यह संकेत देता है कि निकाय चुनाव को लेकर पार्टी के नताओं में तालमेल की कमी है. अन्यथा, बार-बार टिकट नहीं बदला जाता. एक-दो सीट पर चलता है, लेकिन यहां तो बड़ी संख्या में टिकटों में बदलाव सामने आया है. स्वाभाविक है कि बागी पैदा करने में सपा के ही पदाधिकारी जिम्मेदार हैं