अतीक ब्रदर्स शूटआउट के बाद मौन हो चुके हैं। दोनों भाई खूंखार अपराधी थे। इन दोनों को एक-दो बार नहीं दसियों बार भी फांसी पर लटकाया जाता तो भी इनका गुनाह खत्म नहीं होता, लेकिन शूटआउट के बाद उन लोगों ने जरूर राहत की सांस ली होगी जिनके अतीक के साथ व्यवसायिक-राजनैतिक और आपराधिक रिश्ते रहे होंगे। पुलिस कस्टडी में अतीक ब्रदर्स ऐसे कई राज खोल सकता था, जो कुछ रसूखदार लोगों के गले की फांस ही नहीं बन जाती, कइयों का तो न केवल कैरियर चौपट हो जाता, बल्कि पुलिस से पूछताछ के झमेले में भी पड़ सकते थे। इन रसूखदार लोगों में व्यवसायी, सरकारी नुमांइदे और राजनेता भी शामिल हैं। इस हकीकत से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि अतीक भाइयों की मौत पर भले ही विपक्ष योगी सरकार पर हमलावर हो, लेकिन सच्चाई यही है कि इन खूंखार अपराधी भाइयों की हत्या से योगी सरकार को फायदा कुछ नहीं मिला है, बल्कि सियासी रूप से नुकसान ही हुआ है। सब जानते हैं कि अतीक ब्रदर्स के संबंध किस नेता और दल के साथ सबसे अधिक प्रगाण रिश्ते हैं। अतीक भाई पूछताछ में मुंह खोलते तो नुकसान भाजपा को उतना नहीं होता जितना उसके मरने से होता हुआ दिखाई दे रहा है।
अतीक-अशफाक का जिंदा रहना यदि योगी सरकार के लिए फायदे का सौदा नहीं होता तो संभवता उमेश पाल हत्याकांड के बाद इन दोनों भाइयों के खिलाफ योगी सरकार का रवैया कुछ अलग और बदला हुआ नजर आता। इन भाइयों की भी गाड़ी पलट सकती थी, जिसकी काफी चर्चा चल रही थी। कहा जा रहा है कि उमेश पाल हत्याकांड में पूछताछ के लिए साबरमती जेल से प्रयागराज लाए गए अतीक अहमद ने पुलिस रिमांड के दौरान कई राज उगले हैं। अतीक अहमद की निशानदेही पर पुलिस ने कुछ जगहों पर छापेमारी भी की थी, जहां से उसे कुछ अवैध असलहे भी मिले थे। ईडी ने भी अतीक बंधुओं से पूछताछ की थी और प्रयागराज में कई जगहों पर छापेमारी भी हुई थी। यह बात भी सामने आई थी कि अतीक अहमद ने अपने साथ अपराध, राजनीति और व्यवसाय में शामिल जिन कुछ लोगों के नाम बताए थे, उससे तमाम लोगों में बेचैनी थी। हालांकि किन लोगों के नाम बताए थे, इसके बारे में किसी को कुछ नहीं पता है।
अतीक अहमद करीब चार दशक से अपराध की दुनिया में और करीब तीन दशक से राजनीति में भी सक्रिय था। राजनीति में आने के बाद अहमद के आपराधिक रिकॉर्ड भी बढ़े लेकिन यह उसका राजनीतिक कद भी बढ़ाता गया। इस दौरान वो कोई राजनीतिक पार्टियों में रहा और सभी राजनीतिक पार्टियों के बड़े नेताओं से उनके संबंध रहे। इस दौरान अतीक की दौलत भी हजारों करोड़ में पहुंच गई थी, जो उसने दहशत से कमाई थी। प्रयागराज में ऐसा शायद ही कोई बड़ा व्यवसायी या बड़ा बिल्डर होगा जिसके कारोबार में अतीक अहमद का प्रत्यक्ष या परोक्ष हाथ ना रहा हो। यही नहीं, पांच बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके अतीक अहमद का संबंध अपने आखिरी समय में भले ही बहुजन समाज पार्टी से रहा हो लेकिन निजी संबंध उनके सभी पार्टियों के नेताओं से थे, जिसमें बीजेपी के नेता भी शामिल थे। अतीक अहमद को करीब से जानने वाले कहते हैं अतीक का कुछ दलों और नेताओं से राजनीतिक विरोध जरूर था, लेकिन राजनीतिक दुश्मनी जैसी कोई बात थी नहीं।
इसीलिए अतीक ब्रदर्स की हत्या में दो ही एंगल दिख रहे हैं। एक तो राजनीतिक और दूसरा माफिया का। बिल्डर-व्यवसायी चाहे कितने भी उनके साथ काम कर रहे हों, इस तरह की हत्या में वे लोग शामिल होंगे, ऐसा लगता नहीं है। राजनीतिक लाभ और हानि से जुड़ा मसला जरूर हो सकता है जो जांच में ही सामने आएगा। उधर, अपराध जगत की खबरों पर पैनी नजर रखने वालों को लगता है कि योगी सरकार तो माफियाओ के खिलाफ सख्त तेवर अपना ही रहे हैं, लेकिन इसी आड़ में यूपी के कुछ दूसरे माफिया भी अपने विरोधियों को निपटाने में जुटे हैं ताकि इस क्षेत्र में उनका वर्चस्व कायम हो सके।
सिर्फ माफिया या नेता ही नहीं बल्कि अतीक के बेटे असद की मौत के बाद पुलिस वालों को भी खौफ था कि अतीक का रहना उनके लिए भी खतरनाक हो सकता है। अतीक के करीबी कहते हैं कि असद के एनकाउंटर के बाद पेशी के दौरान अतीक ने अपने कुछ लोगों के सामने यह बात कही थी कि उन्हें पता है कि असद को मारने वालों के पीछे कौन हैं। शायद देख लेने की धमकी भी दी थी। ऐसे में जो पुलिस वाले भी शामिल रहे होंगे, तो उन्हें अतीक अहमद के बचे रहने का खौफ जरूर रहा होगा।