देश को अच्छा वातावरण देने के लिए भ्रष्टाचार मुक्त शासन प्रणाली की चाह हर किसी की होती है। क्योंकि भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरे तक समाती चली जा रही हैं। लेकिन यह भी एक बड़ा सच है कि जो भ्रष्टाचार का शिकार होता है, वह अनीति के मार्ग पर कदम बढ़ाने का दुस्साहसिक कार्य ही करता है। सैद्धांतिक तथ्य यह है कि जितना भ्रष्टाचार करने वाला दोषी है, उतना ही भ्रष्टाचार का शिकार होने वाला भी दोषी है, इसलिए दोनों का ही जीवन कुसंस्कार की बलि चढ़ जाता है। कहा जाता है कि जो परिश्रम करके खाता है, उसके जीवन में संतोष होता है, लेकिन जो भ्रष्टाचार करके खाता है, उसको कई लोगों के हृदय से उफनती हुई गालियों को झेलना होता है यानी उसको बद्दुआ ही मिलती है।
कांग्रेस के शासन काल के दौरान जिस प्रकार से भ्रष्टाचार के काले कारनामे उजागर होते जा रहे थे, उससे तो ऐसा ही लगता था कि अब देश से भ्रष्टाचार रूपी बुराई का अंत नहीं हो सकता, यह सामान्य अवधारणा के रूप में स्थापित हो चुका था कि यह देश का स्वभाव बन चुका है, लेकिन ध्यान देने वाली बात यह भी है कि जब से देश में नरेन्द्र मोदी की सरकार आई है, तब से केन्द्र सरकार पर किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है। इसका कारण स्पष्ट है कि केन्द्र सरकार की इस मामले में स्पष्ट नीति है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने प्रथम कार्यकाल में ही यह कहकर भ्रष्टाचार मिटाने की संकल्प लिया था कि न खाऊंगा और न खाने दूंगा। कहा जाता है कि जब शासनकर्ताओं की नीयत साफ होती है तो नीचे भी संदेश अच्छा ही जाता है। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के एक कार्यक्रम में एक बार फिर से इस आशय को स्पष्ट करते हुए कहा है कि देश में कोई भी भ्रष्टाचारी बचना नहीं चाहिए। यानी केन्द्र सरकार आज भी भ्रष्टाचार मिटाने के लिए संकल्पित है। वर्तमान में केन्द्र सरकार के स्तर से भ्रष्टाचार मिटाने की ठोस पहल की जा रही है। इतना ही नहीं आज केन्द्र सरकार ने देश में घर कर चुकी इस आम धारणा को बदला है कि भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लगाई जा सकती। लेकिन क्या भ्रष्टाचार मुक्त भारत केवल केन्द्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से ही संभव हो सकेगा। ऐसा नहीं हो सकता। इसके लिए देश की राज्य सरकारों को भी भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के लिए केन्द्र सरकार का भरपूर सहयोग करना चाहिए। इसके लिए सरकार को जांच एजेंसियों का सहयोग लेना चाहिए।
यह बात सही है कि देश में केन्द्रीय जांच ब्यूरो एक ऐसी संस्था है, जिस पर हर कोई विश्वास करता है। देश में किसी भी घटना में न्याय की उम्मीद नहीं दिखने पर लोग सीबीआई जांच की मांग भी इसलिए ही करते हैं, क्योंकि सीबीआई जांच के मामले में एक विश्वसनीय संस्था है। पिछले कुछ सालों में केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने ऐसे लोगों पर हाथ डालने का साहस दिखाया है, जिस पर हाथ डालने की किसी ने हिम्मत नहीं की। ऐसे लोगों द्वारा देश के धन पर एक प्रकार से डाका ही डाला था। सरकारी खजाने की लूट करने वाले इन भ्रष्टाचारियों पर अगर सीबीआई ने कार्रवाई की है, तो इसे भ्रष्टाचार को समाप्त करने वाला ठोस कदम ही माना जाना चाहिए, लेकिन देश में विपक्षी दलों की ओर से जिस प्रकार से केन्द्रीय जांच ब्यूरो की जांच को आधार बनाकर केन्द्र सरकार पर निशाना साधा गया, वह उनकी मानसिकता को उजागर करने के लिए काफी है। सवाल यह आता है कि अगर इन लोगों ने भ्रष्टाचार के रूप में कमाई नहीं की है तो इनको डर क्यों लग रहा है? डरता वही है, जो गलत होता है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पर दोष सिद्ध होने के बाद भी उनकी ओर से सीबीआई पर आरोप लगाना किसी भी प्रकार से उचित नहीं माना जा सकता, क्योंकि वे स्वयं भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की हवा खा चुके हैं, इसलिए वे भ्रष्टाचार के बारे में किसी भी प्रकार बातें करते हैं तो वे सार्थक नहीं कही जा सकती। ऐसा नहीं है कि ऐसी भाषा केवल लालू प्रसाद यादव ही बोलते हैं, इसके इतर भी विपक्ष के अन्य राजनेता भी उलटा चोर कोतवाल को डांटे वाली उक्ति को चरितार्थ करते दिखाई देते हैं।
जहां तक भ्रष्टाचार की बात है तो यह कहा जाना समीचीन होगा कि भ्रष्टाचार के कारण अपेक्षित विकास की राह में अवरोधक पैदा होते हैं। सरकार की योजनाएं धरातल पर उस तरीके से नहीं पहुंच पातीं, जैसा सरकार चाहती है। पहले योजनाओं के लिए जो पैसा आता था, वह अधिकतर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता था, लेकिन अब इसमें बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। जिस हितग्राही को एक हजार रुपए मिलना है, उसे पूरा एक हजार मिलता है। भ्रष्टाचार करने वालों का यही एक ऐसा दर्द है, जिसे केन्द्र सरकार ने करेले जैसे स्वभाव पर नीम चढ़ा दिया है। केन्द्र सरकार के इस अभियान को जिस प्रकार से जनता का समर्थन मिल रहा है, उस प्रकार से विपक्ष द्वारा भी समर्थन मिल जाए तो भ्रष्टाचार को पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है।
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने पिछले आठ वर्षों के दौरान जिस प्रकार से छापे मारी की है, उसमें कई बड़े लोगों के पास करोड़ों की अवैध संपत्ति मिली है। खास बात यह है कि यह ऐसे लोग हैं, जिनको स्वयं भी इस बात का अहसास नहीं था कि सीबीआई इन पर भी छापामार कार्रवाई कर सकती है। इसके पीछे राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण ही एक मात्र कारण था। अब इस प्रकार के संरक्षण में बहुत भारी कमी आई है। इसी के चलते सीबीआई बिना किसी संरक्षण के उन मठाधीशों पर कार्रवाई करने के लिए कदम बढ़ाती है, जिनके यहां काली कमाई के रूप में संपत्ति के संकेत मिलते हैं। भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए ऐसा करना आवश्यक भी है। इसलिए राज्यों को भी केन्द्र का सहयोग करने के लिए आगे आना चाहिए, क्योंकि इस प्रकार के कार्य आम जनता को राहत प्रदान करने वाले ही होंगे।