उत्तर प्रदेश में यह तय हो गया कि प्रदेश के विपक्षी दल एकला चलो की राह पर स्थानीय निकाय चुनाव में मैदान में उतर रहे हैं। इससे ऐसा लगता है कि इनके रवैये से भाजपा लाभ की स्थिति में रहेगी। सपा–रालोद का गठबंधन टूट जाने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मिल रही भाजपा को चुनौती अब खत्म हो सकती है। भाजपा उत्तर प्रदेश में सबसे मजबूत पार्टी मानकर चुनाव लड़ रही है। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो बहन मायावती पहले ही कह चुकी हैं कि वह किसी भी दल से गठबंधन नहीं करेंगी। पिछले विधानसभा चुनाव में दो बड़े दल समाजवादी पार्टी और रालोद का गठबंधन था। इस बार वह भी भंग हो गया। ये दोनों दल भी अब एकला चलो की यात्रा पर निकल लिए।
पहले सूचनाएं थीं कि मुरादाबाद मंडल में सीटों के बंटवारे के कारण गठबंधन टूट गया। अब पता चला कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गठबंधन भंग हो गया है। रालोद के बड़े नेता मुंशीराम पाल ने मुरादाबाद मंडल में गठबंधन भंग होने की बात स्वीकारी थी। कहा था कि दो−तीन सीट पर बंटवारे का विवाद होने के कारण रालोद ने मंडल में सभी स्थानीय निकायों में अपने प्रत्याशी उतारने का निर्णय लिया है। अब बताया गया कि रालोद अकेले दम पर सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगा। रालोद के राष्ट्रीय प्रवक्ता रोहित जाखड़ ने घोषणा की है कि आने वाले दो दिनों में अपने प्रत्याशियों की लिस्ट भी जारी करेगी। उन्होंने बताया कि विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर जो भेदभाव रालोद के साथ हुआ उसे हमने बर्दाश्त कर लिया। लेकिन निकाय चुनाव में वो भेदभाव दोहराया जा रहा है। उसे नहीं सहेंगे। रालोद दूसरे चरण के चुनाव में सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगा।
गठबंधन में दरार का कारण सपा द्वारा रालोद के हक वाली सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारना है। इसके बाद रालोद कार्यकर्ता भड़क गए। उन्होंने गठबंधन से स्पष्ट इंकार कर दिया है। गठबंधन में दरार सोमवार को उस वक्त शुरू हुई जब रालोद की सीटों पर सपा ने अपने प्रत्याशी उतार दिए। सोमवार को दूसरे चरण के चुनाव के लिए नामांकन का पहला दिन था। रालोद के सूत्रों के अनुसार मेरठ के मवाना और बागपत से खेकड़ा और बड़ौत तीनों सीटें गठबंधन में रालोद के हिस्से आई थीं। तय था कि जाट बाहुल्य क्षेत्र की इन तीनों सीटों पर रालोद प्रत्याशी अपने सिंबल पर चुनाव लड़ेंगे। लेकिन सोमवार को तीनों सीटों पर सपा ने अपने सिंबल पर अपने कैंडिडेट उतार दिए। सपा का यह रवैय्या देखकर रालोद नेता भी भड़क गए। रालोद के राष्ट्रीय प्रवक्ता रोहित जाखड़ का कहना है रालोद छोटी पार्टी नहीं है। रालोद का अपना कद है। पहले विधानसभा चुनाव और अब निकाय चुनाव में हमारे साथ धोखा हो रहा है। मेरठ की मेयर सीट रालोद मांग रही थी, इस पर सपा ने अपना प्रत्याशी उतार दिया। उन्होंने कहा कि यहां तक ठीक था लेकिन रालोद के लिए तय मवाना और बागपत की दो अन्य सीटों पर भी सपा ने अपने प्रत्याशी उतार दिए। हमने तय किया है अब गठबंधन से अलग चुनाव लड़ेंगे।
मेरठ की मवाना सीट पर अध्यक्ष पद के लिए रालोद ने दो दिन पहले ही अय्यूब मलिक को प्रत्याशी बनाया था। सोमवार को सपा के दीपक गिरी ने यहां से साइकिल चुनाव चिह्न पर नामांकन पत्र ले लिया। दीपक गिरी का कहना है कि उसे सपा प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल की तरफ से चुनाव लड़ने का आदेश मिला है। सिंबल भी मिला है। जबकि रालोद यहां पहले ही मुस्लिम चेहरे अय्यूब को टिकट दे चुका है। दीपक ने कहा कि उसे चुनाव लड़ने का आदेश मिला है, वह लड़ेगा। सपा में खेकड़ा से संगीता धामा, बड़ौत से रणधीर प्रधान ने भी सोमवार को नामांकन पत्र लिया है। दरअसल यह पहला मामला नहीं हैं। गठबंधन में शामिल दल समझौते का कहीं न कहीं पालन नहीं करते। परिणाम स्वरूप गठबंधन टूट जाता है। ऐसा ही इस मामले में हुआ।
बिजनौर में तो सपा से टिकट न मिलने पर सपा नेता शमशाद अंसारी ने भी पत्नी सहित अचानक रालोद ज्वाइन कर रालोद के सिंबल पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। शमशाद अंसारी की पत्नी सपा की निवर्तमान चेयरपर्सन रुखसाना परवीन सपा के टिकट पर निकाय चुनाव की प्रत्याशी थीं। लेकिन नामांकन के अंतिम दिन अचानक रुखसाना परवीन का टिकट काटकर पूर्व विधायक रुचि वीरा की बेटी स्वाति वीरा को दे दिया। पार्टी के निर्णय से नाराज रुखसाना परवीन और पति शमशाद अंसारी ने सपा छोड़कर रालोद थाम ली। रालोद के सिंबल पर पर्चा भर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने प्रेसवार्ता बुलाकर घोषणा कर दी कि जिले में सपा की सभी सीटों पर सपा का विरोध करूँगा।
दरअसल गठबंधन के दल एक-एक सीट पर अपने−अपने प्रत्याशी उतार रहे हैं किंतु बिजनौर में तो सपा से टिकट कटने पर सपा नेता ने रालोद के टिकट पर अपनी पत्नी की नामजदगी करा दी। जबकि गठबंधन का धर्म यह कहता है कि सपा से टिकट कट चुके व्यक्ति को गठबंधन का दूसरा दल टिकट न दे। किंतु रालोद ने टिकट दे दिया। इससे अब तय हो गया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अब तक त्रिकोणीय मुकाबला था। अब रालोद के गठबंधन से अलग हो जाने के कारण मुकाबला चार कोणीय हो गया है। एक चीज और, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद का प्रभाव है। रालोद-सपा मिलकर विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़ी चुनौती दे चुके हैं। इस बार इसके अलग−अलग होकर चुनाव लड़ने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा की राह सरल हो गई लगती है।