राजस्थान की जनता का अब तक यही राजनीतिक अंदाज रहा है कि यहां भाजपा और कांग्रेस को छोड़कर कभी भी कोई तीसरी पार्टी बहुत ज्यादा मजबूत नहीं हो पाई है। यदा-कदा बसपा और कुछ क्षेत्रीय नेताओं द्वारा बनाए गए दलों को कुछ सीटें जरूर मिलती रही हैं लेकिन सरकार और विपक्ष की भूमिका भाजपा और कांग्रेस ही निभाती आई हैं। इसमें से एक दल राजस्थान में सरकार चलाता है तो दूसरा विधानसभा में विपक्ष की भूमिका में रहता है।
लेकिन राजस्थान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और अशोक गहलोत सरकार में उपमुख्यमंत्री रह चुके सचिन पायलट के तेवरों से ऐसा लग रहा है कि वो राजस्थान में इस बार कुछ ऐसा करने जा रहे हैं जो इससे पहले कभी नहीं हो पाया था। ऐसा लग रहा है कि सचिन पायलट प्रदेश में तीसरा मोर्चा खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि उन्होंने खुल कर अभी इस बारे में कुछ नहीं कहा है लेकिन राजनीतिक संदेशों से ऐसा लग रहा है।
बताया जा रहा है कि राजस्थान की राजनीति में पीके के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर की एंट्री हो चुकी है। खबर आ रही है कि प्रशांत किशोर की कंपनी आईपैक को सचिन पायलट की राजनीति और भविष्य की रणनीति बनाने का जिम्मा सौंपा गया है और अगर यह खबर सच है तो इसका एक ही मतलब निकलता है कि सचिन पायलट इस बार कांग्रेस और भाजपा से अलग हटकर कुछ नया करने की योजना पर काम रहे हैं।
दरअसल, यह माना जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष जैसी बड़ी जिम्मेदारी देकर सचिन पायलट को राजस्थान भेजने वाले राहुल गांधी ने भी इस बार उन्हें अकेला छोड़ दिया है। महज कुछ साल पहले वर्ष 2018 में सचिन पायलट को कांग्रेस का उभरता हुआ सितारा बताया जा रहा था। राहुल गांधी ने बड़ी ही उम्मीदों के साथ उन्हें राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष बना कर जयपुर भेजा था। गांधी परिवार ने सचिन पायलट को राजस्थान की तत्कालीन वसुंधरा राजे सिंधिया की भाजपा सरकार को विधानसभा चुनाव में हराकर सत्ता से बाहर करने का दायित्व सौंपा था। उस समय अशोक गहलोत को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बनाया गया था जो कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष के बाद सबसे ज्यादा ताकतवर पद माना जाता है।
चुनाव के पहले तक यह तय माना जा रहा था कि अगर कांग्रेस राजस्थान में चुनाव जीतती है तो सचिन पायलट ही राज्य के मुख्यमंत्री बनेंगे, आखिर उनके सर पर उस समय में कांग्रेस के सबसे ताकतवर व्यक्ति और भविष्य के चेहरे राहुल गांधी का हाथ जो था। राहुल गांधी के भरोसे पर खरे उतरते हुए सचिन पायलट ने बतौर प्रदेश अध्यक्ष विधानसभा चुनाव में भाजपा को हरा कर वसुंधरा राजे सिंधिया को सत्ता से बाहर कर दिया। लेकिन जब मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी की बात आई तो जादूगर के नाम से मशहूर अशोक गहलोत ने दिल्ली छोड़कर जयपुर की ओर रुख कर लिया। उस समय नेताओं की एक लॉबी राहुल गांधी को यह समझाने में कामयाब हो गई कि पायलट अभी युवा हैं और उनके पास मुख्यमंत्री बनने के लिए अभी लंबा समय है। लेकिन 2018 से 2023 तक आते-आते कांग्रेस पार्टी में सचिन पायलट के लिए स्थिति लगातार असहज होती चली गई।
कांग्रेस पार्टी के रुख से अब यह साफ-साफ नजर आने लगा है कि सचिन पायलट को इस टर्म में सीएम का पद नहीं मिलने वाला है और भविष्य को लेकर भी फिलहाल उन्हें कोई ठोस आश्वासन नहीं मिल पा रहा है। सचिन पायलट के अनशन के खिलाफ जिस स्पष्ट तरीके से कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने अशोक गहलोत का साथ दिया और जिस तरह से प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के साथ मिलकर कांग्रेस विधायकों से वन-टू-वन फीडबैक ले रहे हैं , उससे भी यह स्पषट हो रहा है कि कांग्रेस गहलोत की अगुवाई में ही विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। वहीं दूसरी तरफ वसुंधरा राजे सिंधिया के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार के मामले की जांच की मांग को लेकर अनशन पर बैठकर फिलहाल उन्होंने भाजपा के लिए भी अपने दरवाजे बंद कर दिए हैं क्योंकि भाजपा भी चुनाव से पहले वसुंधरा राजे सिंधिया को नाराज कर सचिन पायलट को अपने पार्टी में शामिल करने का जोखिम नहीं उठा सकती है। पायलट को भी बखूबी इसका अंदाजा है इसलिए यह कहा जा रहा है कि वे अब प्रदेश की राजनीति में तीसरा मोर्चा खड़ा कर अपनी ताकत साबित करने का प्रयास कर सकते हैं।
राजस्थान से लोकसभा सांसद और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल तो पहले ही सचिन पायलट को कांग्रेस से इस्तीफा देकर तुरंत नई पार्टी बनाने की सलाह दे चुके हैं। बेनीवाल पायलट की नई पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने को तैयार है और उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने को भी तैयार हैं।
राष्ट्रीय पार्टी बनने के बाद आम आदमी पार्टी भी जोर-शोर से राजस्थान में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। जिस दिन सचिन पायलट अनशन पर बैठे थे, उस दिन सबसे पहले आम आदमी पार्टी ही उनके समर्थन में सामने आई थी। ऐसे में संभावना यह जताई जा रही है कि भ्रष्टाचार के नाम पर आम आदमी पार्टी भी पायलट के मोर्चे में शामिल हो सकती है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो सचिन पायलट, हनुमान बेनीवाल और केजरीवाल के साथ मिलकर अगर तीसरा मोर्चा बनाने में कामयाब हो जाते हैं तो सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि भाजपा के समीकरण को भी बिगाड़ सकते हैं लेकिन अगर मायावती की पार्टी बसपा भी उनके गठबंधन में शामिल हो जाती है तो फिर वे राजस्थान की राजनीति में नया इतिहास बना सकते हैं लेकिन अभी इसमें कई किंतु-परंतु भी लगे हुए हैं कि क्या सचिन पायलट कांग्रेस से अलग होकर अपने नए राजनीतिक दल का गठन करने जैसा बड़ा फैसला करने को तैयार हैं? हनुमान बेनीवाल तो उन्हें नेता मान चुके हैं लेकिन क्या मायावती और केजरीवाल राजस्थान में पायलट को नेता मानने को तैयार हैं ? इन सभी सवालों के जवाब फिलहाल भविष्य के गर्भ में ही छिपे हुए हैं।