कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता रहे जगदीश शेट्टार आखिरकार सोमवार को कांग्रेस में शामिल हो गए। शेट्टार के राजनीतिक कद का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उन्हें पार्टी में शामिल करने के लिए बेंगलुरु के पार्टी कार्यालय में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे स्वयं मौजूद रहे। भाजपा को भी उनके राजनीतिक कद का अंदाजा बखूबी था इसलिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उन्हें दिल्ली बुलाकर स्वयं समझाने का प्रयास किया। चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई तक कई दिग्गज नेता उन्हें लगातार मनाने का प्रयास करते रहे।
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने तो यहां तक कहा कि भाजपा ने उन्हें राजनीति से संन्यास लेने को नहीं कहा था बल्कि पार्टी उन्हें राज्य सभा भेजने और केंद्र में मंत्री बनाने तक को तैयार थी। यहां तक कि पार्टी शेट्टार के परिवार के किसी अन्य व्यक्ति को भी टिकट देने को तैयार हो गई थी लेकिन इसके बावजूद जगदीश शेट्टार स्वयं चुनाव लड़ने पर अड़े रहे और टिकट नहीं मिलने पर सोमवार को कांग्रेस में शामिल हो गए।
अब सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या जगदीश शेट्टार के कांग्रेस में शामिल होने से भाजपा को कर्नाटक में नुकसान होगा ? क्या शेट्टार के पार्टी में शामिल होने से कांग्रेस को फायदा होगा ? क्या शेट्टार का पार्टी छोड़कर जाना भाजपा के लिए इतना बड़ा झटका साबित हो सकता है कि उसे चुनाव हार कर राज्य की सत्ता से बाहर होना पड़े ?
दरअसल, इस बात में कोई शक नहीं है कि जगदीश शेट्टार कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं। शेट्टार, बीएस येदियुरप्पा के बाद राज्य में लिंगायत समुदाय के दूसरे सबसे बड़े नेता माने जाते हैं। उसी लिंगायत समुदाय के नेता, जिसके बारे में यह कहा जाता है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद का फैसला इसी समुदाय के वोट से होता है। यह समुदाय चुनाव में जीत भी दिला सकता है और हरवा भी सकता है।
यही वजह है कि भाजपा में उन्हें लगातार तवज्जो मिलती रही है। भाजपा के सचिव से लेकर उन्हें कर्नाटक भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष तक बनाया गया। शेट्टार छह बार विधायक रह चुके हैं, कई बार मंत्री के तौर पर बड़े-बड़े मंत्रालयों को संभाल चुके हैं। यहां तक कि विधान सभा अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री तक का बड़ा पद भाजपा ने उनके राजनीतिक प्रभाव को देखते हुए ही उन्हें दिया था।
यह बात सही है कि जगदीश शेट्टार लिंगायत समुदाय के बड़े नेता हैं और अगर कांग्रेस ने उनका सही उपयोग किया तो वो 20 से ज्यादा सीटों पर खासकर उत्तरी कर्नाटक की सीटों पर वे भाजपा उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और भाजपा को भी इसका अहसास बखूबी है। इसलिए यह माना जा रहा है कि भाजपा ने अपने अग्रेसिव इलेक्शन कैंपेन की खासियत के तहत इस नुकसान को भी कम करने की रणनीति तैयार कर ली होगी।
भाजपा चुनाव में आखिरी समय तक लड़ने के लिए मशहूर हो चुकी है इसलिए वो शेट्टार की वर्तमान विधानसभा सीट को भी जीतने की पूरी कोशिश करेगी। भाजपा को यह भी लगता है कि जगदीश शेट्टार के राजनीतिक गुरु बीएस येदियुरप्पा पूरी तरह से पार्टी के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं और जिस अंदाज में वो शेट्टार की आलोचना कर रहे हैं उसे देखते हुए लिंगायत समुदाय के उनके साथ जाने की संभावना बहुत कम है। पार्टी यह मान कर चल रही है कि राज्य में लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा हैं जो मजबूती के साथ भाजपा के साथ खड़े हैं और ऐसे में यह समुदाय भी भाजपा को ही वोट करेगा।
इसलिए कांग्रेस में शामिल होकर भाजपा को नुकसान पहुंचाने का मंसूबा पालने वाले जगदीश शेट्टार को इस बार अपने ही लिंगायत समर्थक मतदाताओं का वोट हासिल करने के लिए अपने ही राजनीतिक गुरु रहे बीएस येदियुरप्पा के आभामंडल, राजनीतिक प्रभुत्व और लोकप्रियता से लड़ाई लड़नी होगी और इसलिए भाजपा अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रही है। हालांकि किसकी सोच और रणनीति सही निकली, यह तो 13 मई को ही पता लगेगा जब ईवीएम की मतगणना के नतीजे सामने आएंगे।