अफगानिस्तान छोड़ने के मामले में अमेरिकी रिपोर्ट के क्या हैं मायने?

अफगानिस्तान छोड़ने के मामले में अमेरिकी रिपोर्ट के क्या हैं मायने?

इसमें कोई संदेह नहीं हैं कि दुनिया के बहुत से लोकतंत्रों में कटुता बढ़ गई है और इसका उदाहरण भारत ही नहीं है, बल्कि अमेरिका भी है. जिस तरह से अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति पर अदालती कार्रवाई हो रही है, और वे उसका जवाब में बयान दे रहे हैं साफ झलक रहा है कि राजनैतिक प्रतिद्वंदता किस दिशा में जा रही है. हाल ही में वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन ने कुछ क्लासिफाइड रिपोर्ट की समीक्षा जारी की है जिसमें अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से बेतरतीब वापसी के लिए ट्रम्प को जिम्मेदार ठहराया है. इससे रिपब्लिकन सांसदों में नाराजगी है. इस समीक्षा का अमेरिका ही नहीं दुनिया पर भी असर पड़ सकता है.

बढ़ रही है प्रतिद्वंदता

अमेरिकी राजनीति में डेमोक्रैट और रिपब्लिकन के बीच में हाल ही में प्रतिद्वंदता बहुत बढ़ी है. ट्रम्प पर मुकदमा जहां उन्हें चर्चित करेगा, रिपब्लिकन भी यह सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि इसके ट्रम्प की उम्मीदवारी पर क्या असर हो सकता है. सच भी है कि अभी तक रिपब्लिकन ट्रम्प की लोकप्रियता को नजरअंदाज नहीं कर पा रहे हैं.

रिपब्लिकन की तीखी प्रतिक्रिया

ऐसे में अफगानिस्तान से सेनावापसी के तौर तरीके के लिए ट्रम्प पर हमला रिपब्लिकन सीधे खुद पर हमला मान रहे हैं. समीक्षा में साफ तौर पर कहा गया है कि ट्रम्प अमेरिकी सेना की वापसी की योजना में नाकाम रहे थे और उनके प्रशासन को कुछ भी नियोजित करने का समय नहीं मिला था. इससे रिपब्लिकन सांसदों में नाराजगी पैदा कर दी है और उन्होने दस्तावेजों की मांग की है जिससे वे खुद इसकी पड़ताल कर सकें.

रिपब्लिकन का आरोप

बाइडन प्रशासन की यह समीक्षाएं पैंटागन और अमेरिका के सीक्रेट स्टेट विभाग से निकाली गई है जिसे कांग्रेस को भेजा गया है. अमेरिका की प्रतिनिधि सभा की विदेशी संबंधों की कमेटी के रिपब्लिकन चैयरमैन माइकल मैकॉल ने डेमोक्रैट प्रशासन की तीखी आलोचना की है. उन्होंने एक बयान में कहा कि बाइडन ने ही वापसी का आदेश दिया था और वे ही इसके क्रियानन्वयन और नियोजन में भारी नाकामी के लिए जिम्मेदार हैं.

आरोप प्रत्यारोप का दौर

रिपब्लिकन जांच की निगरानी करने वाले मैकॉल का आरोप है कि पिछले साल उनके ही लगाए गए  लगातार आरोपों की वजह से ही पैंटागन और स्टेट विभाग की समीक्षा को कांग्रेस में भेजने के लिए डेम प्रशासन को मजबूर किया. समीक्षा के सार में लिखा गया है कि सेना वापसी कैसे नियोजित हो इसके चयन विकल्प उनके पूर्ववर्ती के द्वारा पैदा किए हालात ने बहुत ज्यादा सीमित कर दिए थे. जाने वाले प्रशासन ने कोई योजना नहीं दी थी जिससे तय किया जा सके कि अंतिम वापसी कैसे की जाए.

20 साल बाद यू टर्न

अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की 20 साल तक उपस्थिति थी और उसकी प्रमुख वजह वहां तालिबान का सिर उठाना था, लेकिन 20 साल बाद तालिबान ने वापस सिर उठाया और आधे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया और ट्रम्प प्रशासन ने अमेरिकी सेना को वापस बुलाने के लिए बातचीत की प्रक्रिया शुरू की और जब वापसी शुरू हुई तो तालिबान के काबुल हथियाने पर लाखों लोगों को अफगानिस्तान से पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा.

और एक नाकामी ये भी

12 पेज की इस रिपोर्ट में कुछ जिम्मेदारी अमेरिकी इंटेलिजेंस और सैन्य प्रतिष्ठानों की नाकामी बताई गई है जो तालिबान के अफगानिस्तान और काबुल पर कब्जे की गति का सही अंदाजा नहीं लगा सके थे. जिस अनियमित और अराजक स्थिति में अफगानिस्तान को छोड़ा गया था उससे अमेरिका और जो बाइडन पर सवालिया निशान छोड़ गया था.

इस मामले से दुनिया के साथ साथ भारत के लिए भी कई सबक हैं. ऐसी घटना जिसने पूरी दुनिया की भूरणनीतिक और राजनैतिक हालात को 20 साल तक प्रभावित कर रखा था उसका ऐसा अंजाम कम से कम अफगानिस्तान और भारत सहित आसपास के देशों के लिए तो अच्छा नहीं था और अब इस पर इस तरह की राजनीति चेताती है कि अमेरिकी राजनीति को लेकर कितना संभल कर चलने की जरूरत है. खुद रूस यूक्रेन युद्ध का फैसला अमेरिका के अगले राष्ट्रपति चुनाव पर निर्भर होता दिख रहा है जिसमें रिपब्लिकन की जीत शांति की उम्मीद जगा सकती है. ऐसे मे भारत का तालिबान के साथ अपने हितों के देखते हुए ही व्यस्त होना सही फैसला लगता है.

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